भोपाल : कोरोना की दूसरी लहर में संक्रमितों का आक्सीजन लेवल गिर रहा है। ऐसे में अस्पतालों में आक्सीजन की किल्लत देखते हुए कुछ लोग घर पर ही बिना डाक्टर की सलाह के किसी तरह जुगाड़ कर आक्सीजन ले रहे हैं, लेकिन यह अभ्यास उन्हें ठीक करने की जगह और बीमार बना सकता है।
अपनाएं यह सुझाव
भोपाल के गांधी मेडिकल कालेज के पलमोनरी मेडिसिन विभाग के अध्यक्ष और कोरोना मामलों में मध्य प्रदेश सरकार के सलाहकार डा. लोकेंद्र दवे का कहना है कि कई लोगों को यह गलतफहमी है कि कोरोना संक्रमण होते ही आक्सीजन लेने से बीमारी जल्दी ठीक हो जाती है। हकीकत में ऐसा नहीं है। ऊपर से आक्सीजन तभी लेना चाहिए, जब आक्सीजन का स्तर 90 फीसद से नीचे आ गया हो।
जिन्हें पहले से फेफड़े की कोई तकलीफ है, उन्हें आक्सीजन का स्तर 92 फीसद होने पर भी आक्सीजन सपोर्ट दिया जाना चाहिए। जरूरत से ज्यादा आक्सीजन लेने पर शरीर में आक्सीडेंट फ्री रेडिकल्स बनते हैं। इस प्रक्रिया में शरीर की सामान्य कोशिकाएं ही ज्यादा आक्सीजन मिलने की वजह से खराब हो जाती हैं और फ्री रेडिकल्स बनकर पूरे शरीर में घूमते हैं। जिन-जिन अंगों में यह रेडिकल्स पहुंचते हैं, उन्हें नुकसान पहुंचता है। बिना जरूरत के ज्यादा दिन तक आक्सीजन सपोर्ट में रहने से सबसे ज्यादा नुकसान फेफड़े को होता है।
डॉ. लोकेन्द्र दवे के अनुसार
डा. लोकेंद्र दवे के मुताबिक आक्सीजन की जरूरत मरीज में बदलती रहती है। एक डाक्टर ही समझ सकता है कि कब किस मरीज को कितनी आक्सीजन की जरूरत है, इसलिए यदि कोई बिना डाक्टर की सलाह के आक्सीजन ले रहा है और तो यह खतरनाक हो सकता है। मरीज को जरूरत के हिसाब से ही आक्सीजन सपोर्ट दिया जाना चाहिए। 90 फीसद से कम आक्सीजन होने पर एक से चार लीटर प्रति मिनट तक आक्सीजन दी जा सकती है। नवजात बच्चों को ज्यादा आक्सीजन देने से उनकी आंखों की रक्त वाहिकाएं फटने लगती हैं।
COVID मरीजों में सामने आए ब्लैक फंगस इंफेक्शन के मामले, जानें क्या हैं लक्षण
डा. लोकेंद्र दवे बताते हैं कि वेंटिलेटर सपोर्ट रखे गए मरीजों को 25 लीटर प्रति मिनट की रफ्तार से आक्सीजन देनी पड़ती है। ऐसे में 10 से 15 दिन तक वेंटिलेटर पर रहने वाले मरीजों के फेफड़ों में भी फ्री रेडिकल बनने की वजह से स्थाई तौर पर कुछ क्षति हो ही जाती है।