नई दिल्ली: Eid al-Adha 2022: यह इस्लाम धर्म का सबसे पवित्र त्यौहार ईद उल अजहा जिसे बकरीद के नाम से जाना जाता है। ईद-उल फित्र के बाद मुसलमानों का ये दूसरा सबसे बड़ा त्योहार है इस मौके पर ईदगाह या मस्जिदों में खास नमाज अदा की जाती है। बकरीद इस्लाम धर्म में सबसे अधिक मनाये जाने वाले त्यौहारों में से एक हैं। जो कि रमजान के लगभग 70 दिनों के बाद मनाई जाती है। इस दिन इस्लाम से जुड़ा हर शख्स खुदा के सामने कुर्बान करता है।
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Eid al-Adha 2022: कब मनाई जाती है बकरीद?
इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक 12वें महीने धू-अल-हिज्जा की 10 तारीख को बकरीद मनाई जाती है। यह तारीख रमजान के पवित्र महीने के खत्म होने के लगभग 70 दिनों के बाद आती है। ईदगाह जाकर नमाज अदा करने का यह तरीका पैगंबर मोहम्मद के दौर में ही शुरू हुआ।
(Eid al-Adha 2022) कुर्बानी का सिलसिला कब शुरू हुआ?
इस्लाम धर्म की मान्यता के हिसाब से आखिरी पैगंबर (मैसेंजर) हजरत मोहम्मद हुए हैं। हजरत मोहम्मद के वक्त में ही इस्लाम ने पूर्ण रूप धारण किया और आज जो भी परंपराएं या तरीके मुसलमान अपनाते हैं वो पैगंबर मोहम्मद के वक्त के ही हैं। लेकिन पैगंबर मोहम्मद से पहले भी बड़ी संख्या में पैगंबर आए और उन्होंने इस्लाम का प्रचार-प्रसार किया। कुल 1 लाख 24 हजार पैगंबरों आए। जिसमें हजरत इब्राहिम भी थे इन्हीं के दौर से कुर्बानी का सिलसिला शुरू हुआ था।
कुर्बानी का महत्व?
बकरीद का दिन फर्ज-ए-कुर्बान का दिन होता है। इस्लाम में गरीबों और मजलूमों का खास ध्यान रखने की परंपरा है। इसी वजह से बकरीद पर भी गरीबों का विशेष ध्यान रखा जाता है। इस दिन कुर्बानी के बाद गोश्त के तीन हिस्से किए जाते हैं। इन तीनों हिस्सों में से एक हिस्सा खुद के लिए और शेष दो हिस्से समाज के गरीब और जरूरतमंद लोगों में बांट दिए जाते हैं।
बकरीद में कुर्बानी क्यों दी जाती है?
इस इस्लामिक त्यौहार के पीछे एक एतिहासिक तथ्य छिपा हुआ हैं जिसमे कुर्बानी की ऐसी दास्तान हैं जिसे सुनकर ही दिल कांप जाता हैं। खुदा ने हजरत मुहम्मद साहब का इम्तिहान लेने के लिए उन्हें यह आदेश दिया कि वे तब ही प्रसन्न होंगे जब हज़रत अपने बेइंतहा अज़ीज़ को अल्लाह के सामने कुर्बान करेंगे।
तब हज़रत इब्राहीम ने कुछ देर सोच कर निर्णय लिया और अपने अज़ीज़ को कुर्बान करने का तय किया। सबने यह जानना चाहा कि वो क्या चीज़ हैं जो हज़रत इब्राहीम को सबसे चहेती हैं जिसे वो आज कुर्बान करने वाले हैं। तब उन्हें पता चला कि वो अनमोल चीज़ उनका बेटा हजरत इस्माइल हैं जिसे वो आज अल्लाह के लिए कुर्बान करने जा रहे हैं।
कुर्बानी को अदा करने के लिए हज़रत इब्राहीम ने अपनी आँखों पर पट्टी बाँध ली और अपने बेटे की कुर्बानी दी। जब उन्होंने आँखों पर से पट्टी हटाई तब अपने बेटे को सुरक्षित देखा। तब ही से कुर्बानी का यह मंज़र चला आ रहा हैं जिसे बकरीद ईद-उल-जुहा के नाम से दुनियाँ जानती हैं।