नई दिल्ली: कोरोना महामारी वायरस का असर आज पुरे विश्व पर पड़ रहा है। दुनिया भर के लगभग 190 देश इसकी चपेट में आ चुके हैं और अर्थव्यवस्था बुरी तरह चरमराई हुई है, या यूँ कहें तो हम धीरे-धीरे एक वैश्विक मंदी कि तरफ बढ़ रहे हैं। एक छोटे से वायरस की वजह से न जानें कितने देशों में लॉकडाउन और कर्फ़्यू की स्थिति आ गई है। उद्योग जगत, सामाजिक आर्थिक क्षेत्र के साथ एक अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्र इस वायरस से बुरी तरह प्रभावित हो रहा है, वो है शिक्षा। भारत जैसे विकासशील देश में शिक्षा की एक महत्वपूर्ण भूमिका है ।
माध्यमिक स्कूलों के 24.7 करोड़ बच्चे प्रभावित
कोरोना के कहर के कारण लगाए गए लॉकडाउन के चलते पिछले वर्ष देश भर में स्कूल बंद हो गए थे। जिससे देश में बच्चों की शिक्षा पर काफी असर पड़ा है। कई बच्चों को ऑनलाइन पठन पाठन में दिक्कत हो रही है तो कई बच्चों के पास डिजिटल उपकरण और इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध ही नहीं है जिससे की वो ऑनलाइन क्लासेज ले सकें। यूनिसेफ की एक सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत में तकरीबन 15 लाख स्कूलों को बंद करने से प्राथमिक और माध्यमिक स्कूलों के 24.7 करोड़ बच्चे प्रभावित हुए हैं.
पंजाब में बढ़ते मामलों के चलते एक महीने टल गयी बोर्ड परीक्षाएं
आपको बतादें की लगभग 16.8 करोड़ बच्चे पिछले 1 साल से एक भी दिन स्कूल नहीं जा पाए हैं, और अब कोरोना का आलम ये है की बढ़ते मामलों के चलते पंजाब में बोर्ड परीक्षाएं एक महीने के लिए आगे बढ़ा दी गई हैं। ऐसे में आप अंदाज़ा लगा सकते हैं की पहले से एक तो छात्रों का साल बर्बाद हो गया उप्पर से आने वाले वक़्त में भी कुछ साफ नहीं है की क्या होगा ।
लड़कियों से ज़्यादा लड़कों को मिल रही है प्राथमिकता
वहीँ एक स्टडी में ये भी पता चला है कि लगभग 47% बच्चों के पास ही फोन की सुविधा है, जिनमें से 31% के पास स्मार्ट फोन है. इसमें भी ज्यादातर लड़कियों को पढ़ने के लिए फोन नहीं मिल पा रहा. असल में बात ये है कि मोबाइल और इंटरनेट की सुविधा अगर किसी घर में एक ही शख्स के पास है और पढ़ने वाले लड़के और लड़की दोनों ही हैं तो लड़के की पढ़ाई को प्राथमिकता मिलती है. ऐसे में लड़कियों का सत्र एक तरह से बेकार जा रहा है।
लॉकडाउन से बढ़ रहा है छात्रों पर मानसिक तनाव
इसमें एक और महत्वपूर्ण कड़ी है कि जो छात्र पहले खुल कर रहते थे, विभिन्न गतिविधियों जैसे खेल और मनोरंजन में अपने सहपाठियों के साथ खुलकर भाग लेते थे, आज वो बच्चे अपने घरों में कैद है, और सामाजिक दूरी बना रहे हैं। ऐसे में अगर ये लॉकडाउन और बढ़ा तो ये छात्र मानसिक तनाव का शिकार हो सकते हैं, वहीं टीवी लैपटॉप, मोबाइल का अधिक उपयोग भी उनकी मानसिक स्थिति पर बुरा प्रभाव डाल रहा है। मानसिक अवसाद की ऐसी अवस्था से छात्रों को बचाने के लिए मनोवैज्ञानिकों को आगे आना चाहिए एवम् उनका मार्गदर्शन करना चाहिए।
कोरोना काल में साथ मिलकर लड़ें
भविष्य को देखते हुए आवश्यकता है की सरकार, संस्थान, समाज, सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर एवम् स्वयं छात्रों को मिल जुल कर सभी छात्रों की समस्याओं को दूर करने के लिए एकजुट होकर प्रयास करना होगा, शिक्षा और शिक्षण पद्धति को बढ़ने के लिए नए विकल्प खोजने होंगे, जिसमे ऑनलाइन प्रोजेक्ट्स, असाइनमेंट्स अच्छे विकल्प साबित हो सकते हैं, इंडस्ट्रीज को आगे आना चाहिए एवम् वो छात्रों को प्लेसमेंट, प्रोजेक्ट्स इंटर्नशिप आदि देकर उन्हें तनाव से बाहर निकाल सकते हैं। वहीँ परिवार वालों की भी जिम्मेदारी है कि वो इस मुश्किल वक्त में अपने बच्चो का मनोबल बढ़ाएं और उन्हें सकारात्मकता के लिए प्रेरित करे।
ऑनलाइन क्लासेज़ के बावजूद देनी पड़ रही है पूरी फीस
इसके अलावा कई स्कूल और कॉलेजों में ऑनलाइन क्लासेज होने के बावजूद फीस की रकम अभी भी उतनी ही है जितनी ऑफलाइन क्लासेज होने पर होती थीं। जिसमे छात्रों की फीस में से लाइट बिल और क्लास के मेंटेनेंस के पैसे अभी भी लिए जा रहे है जबकि बच्चे स्कूल अथवा कालेज जा ही नहीं रहे हैं। इसके अलावा कई जगहों पर छात्रों से ज़्यादा फीस भी ली जा रही है ऐसेमें वो माँ बाप जिनकी इस महामारी में नौकरी जा चुकी है उनकी कमर मानो टूट सी गयी है क्योंकि अब तो आमदनी अठन्नी भी नहीं है और खर्चा रुपयों में हैं।