संघ के सह कार्यवाह भैया जी जोशी ने गोवा में ‘हिन्दुत्व’ को लेकर जो कुछ कहा उसके बाद ‘हिन्दुत्व’ को लेकर एक बार फिर चर्चा तेज हो गई है…वही ‘हिन्दुत्व’ जिसकी व्याख्या देश की सर्वोच्च अदालत से लेकर अलग-अलग राजनैतिक दल और सामाजिक सांस्कृतिक संगठन अपने-अपने ढंग से करते रहे हैं..1995 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर अगर नज़र डालें तो ‘हिन्दुत्व’ को किसी धर्म विशेष से नहीं जोड़ा जा सकता है क्योंकि ‘Hindutva is a way of Life’.
साल 1995 में अपने एक अहम फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि दरअसल हिंदुत्व कोई धर्म नहीं, बल्कि एक जीवनशैली है…तत्कालीन चीफ जस्टिस जे.एस वर्मा के नेतृत्व वाली खंडपीठ के इस जजमेंट की गूंज आज भी गाहे बगाहे सुनाई दे जाती है …खासकर बीजेपी और RSS नेताओं के भाषणों बयानों में जाने अनजाने इसकी झलक साफ दिखती है हालांकि कई मौकों पर पूर्व पीएम मनमोहन सिंह इस परिभाषा को गलत करार देते रहे लेकिन सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला आज भी कायम है..हालांकि हिन्दुत्व की ये परिभाषा गढ़ते वक्त सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा था कि धार्मिक भावनाएं जगा कर वोट लेना गलत है…
यहीं नहीं साल 2005 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले के दौरान हिन्दुत्व को नया विस्तार देते हुए कहा कि हिंदुत्व एक जीवनशैली है। हिंदू शब्द की कोई परिभाषा नहीं है। ऐसा शख्स भी हिंदू हो सकता है, जो धर्म से तो हिंदू हो, लेकिन मंदिर जाकर पूजा करने में विश्वास न रखता हो..यानि साफ है कि हिन्दुत्व कोई धर्म विशेष न होकर एक विचारधारा बन चुका है ।
वैसे तो किसी भी पंथ या धर्म को मानने वालों में या धर्म में हिंसा भेदभाव और देशहित के खिलाफ आचरण करने की इजाजत नहीं है..तकनीकी तौर पर अगर हम RSS की विचारधारा या नताओं के बयानों की समीक्षा करें तो उनके बयानों में भी सुप्रीम द्वारा परिभाषित ‘हिन्दुत्व’ की झलक मिलती है..
खासकर संघ प्रमुख मोहन भागवत वक्त वक्त पर संघ के स्वयंसेवकों के बीच हिन्दुत्व के मंत्र फूंकते रहे हैं। हाल ही में पश्चिम यूपी में उन्होने स्वयंसेवकों से आह्वान किया कि वो हर व्यक्ति के मन में हिंदुत्व का भाव जगाएं…उनकी मानें तो किसी भी व्यक्ति की पहचान उसकी जाति से नहीं बल्कि हिंदू से होने होनी चाहिए..लिहाजा लोगों को हिन्दू होन पर गर्व कराएं,….मोहन भागवत तो ये भी कहते हैं कि देश में 130 करोड़ जनसंख्या है। ये सभी भारतीय हिंदू हैं। उनके सभी के पूर्वज एक हैं
दिक्कत तब होती है जब किसी पंथ या धर्म की आड़ में दूसरे पंथ या धर्म के खिलाफ भेदभाव या हिंसा का सहारा लिया जाता है मसलन इस्लाम की आड़ में जब अफगानिस्तान में तालिबान ने बुद्ध की प्रतिमाओं को खंडित किया तो उसकी निंदा पूरी दुनिया ने की थी और इस्लाम को मानने वालों ने भी इस तालिबानी संस्कृति का विरोध किया था…इसीलिए धर्म औऱ राजनीति को अलग रखते हुए अगर कोई काम या फैसला देशहित में लिया जाता है तो उसकी स्वीकार्यता ज्यादा होगी।
- वासिन्द्र मिश्र