
बिहार में हाल ही में एक अजीबोगरीब मामला सामने आया है, जो मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना (मुख्यमंत्री महिला उद्यमी योजना) से जुड़ा है। यह योजना विशेष रूप से महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए शुरू की गई थी, जिसमें जीविका स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी महिलाओं के बैंक खातों में 10,000 रुपये की पहली किस्त ट्रांसफर की गई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सितंबर 2025 में इस योजना की शुरुआत की थी, और बिहार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले करीब 1.5 करोड़ महिलाओं के खातों में यह राशि भेजी गई। योजना का उद्देश्य महिलाओं को स्वरोजगार शुरू करने में मदद करना था, जिसमें आगे चलकर और सहायता का प्रावधान भी है। लेकिन तकनीकी त्रुटि या डेटा एंट्री की गलती के कारण यह राशि कुछ पुरुषों के खातों में भी पहुंच गई। मुख्य रूप से दरभंगा जिले के जाले प्रखंड की अहियारी पंचायत में यह मामला उजागर हुआ, जहां दिव्यांग समूहों में पुरुष सदस्यों के खाते में भी पैसे ट्रांसफर हो गए। राज्य स्तर पर कुल 470 दिव्यांग पुरुषों को गलती से 10,000 रुपये मिल गए। जीविका अधिकारियों ने इसे ‘ग्रॉस एरर’ मानते हुए स्वीकार किया कि दिव्यांग समूहों में महिला-पुरुष दोनों सदस्य होने के कारण डेटा में चूक हुई।जब यह गलती सामने आई, तो जीविका के ब्लॉक प्रोजेक्ट मैनेजर ने प्रभावित पुरुषों को पत्र भेजकर राशि तत्काल वापस करने को कहा। पत्र में स्पष्ट लिखा गया कि योजना केवल महिलाओं के लिए है और यह राशि तकनीकी त्रुटि से भेजी गई है।
दरभंगा में कुछ पुरुषों जैसे नागेंद्र राम और बलराम सहनी ने बताया कि उन्होंने पैसे दिवाली-छठ में खर्च कर दिए या कर्ज चुकाने में इस्तेमाल कर लिया। गरीब महादलित परिवारों से आने वाले इन लोगों ने वापसी से इनकार कर दिया, कहते हुए कि अब उनके पास पैसे नहीं हैं। कुछ ने तो तंज कसा कि “पहले वोट वापस करो, फिर पैसे लो”, क्योंकि चुनाव में उन्होंने एनडीए को वोट दिया था।इस मामले ने राजनीतिक तूफान खड़ा कर दिया। विपक्षी दल राजद और कांग्रेस ने इसे चुनावी जल्दबाजी का नतीजा बताया। राजद ने आरोप लगाया कि वोट खरीदने की हड़बड़ी में इतनी बड़ी गड़बड़ी हुई कि महिलाओं की जगह पुरुषों के खातों में पैसे डाल दिए गए। उन्होंने इसे ‘लव लेटर’ कहकर व्यंग्य किया और कहा कि एनडीए की बेचैनी इतनी थी कि मशीनरी मैनेजमेंट तक फेल हो गया। विपक्ष का दावा है कि यह योजना चुनावी रिश्वतखोरी का हिस्सा थी।शुरुआत में रिकवरी के लिए नोटिस भेजे गए और कुछ जगहों पर 7-8 लोगों से पैसे वापस भी लिए गए। लेकिन गरीब लाभार्थियों की स्थिति और राजनीतिक दबाव को देखते हुए बिहार सरकार ने बड़ा फैसला लिया। ग्रामीण विकास मंत्री शरवन कुमार और जीविका सीईओ हिमांशु पांडे ने स्पष्ट किया कि इन 470 पुरुषों से जबरन या कोर्सिव एक्शन से राशि वसूल नहीं की जाएगी।
सरकार अपनी गलती की जिम्मेदारी लेते हुए इसे माफ करने का रुख अपनाएगी। यह ‘जुगाड़’ इसलिए अपनाया गया क्योंकि अधिकांश लाभार्थी गरीब और दिव्यांग हैं, और उन पर दबाव डालना मानवीय नहीं होता। साथ ही, योजना की मुख्य सफलता महिलाओं तक पहुंचने में रही, जहां करोड़ों महिलाओं को सही लाभ मिला।यह घटना सरकारी योजनाओं में तकनीकी सतर्कता की जरूरत को उजागर करती है। चुनावी समय में बड़ी योजनाएं चलाने पर सवाल उठते हैं, लेकिन सरकार का यह फैसला गरीबों के हित में दिखता है। कुल मिलाकर, यह मामला बिहार की राजनीति में कुछ दिनों का हंगामा तो बना, लेकिन अंत में मानवीय दृष्टिकोण से सुलझ गया।








