भारत सरकार ने 21 नवंबर को देश के 29 पुराने श्रम कानूनों को मिलाकर चार नए लेबर कोड जारी किए हैं। इनका उद्देश्य श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा करना, सामाजिक सुरक्षा को मजबूत बनाना और उद्योगों के लिए नियमों को सरल करना है। ये चार कोड हैं—वेज कोड, इंडस्ट्रियल रिलेशंस कोड, सोशल सिक्योरिटी कोड और ऑक्युपेशनल सेफ्टी, हेल्थ एंड वर्किंग कंडीशंस कोड। माना जा रहा है कि ये कोड 1 अप्रैल से लागू हो सकते हैं और इससे देश के करोड़ों कर्मचारियों की कार्यशैली पर असर पड़ेगा।
नए लेबर कोड्स में कर्मचारियों के लिए कई अहम लाभ जोड़े गए हैं। इसमें न्यूनतम वेतन की गारंटी, महिलाओं की सुरक्षा, सामाजिक सुरक्षा का विस्तार और ग्रेच्युटी से जुड़े नियमों में बदलाव शामिल हैं। सबसे बड़ा बदलाव यह है कि अब ग्रेच्युटी के लिए 5 साल की अनिवार्यता खत्म की जा सकती है और 1 साल की सेवा पर भी ग्रेच्युटी का लाभ मिल सकता है। इससे खासकर कॉन्ट्रैक्ट और निजी क्षेत्र के कर्मचारियों को राहत मिलने की उम्मीद है।
सबसे ज्यादा चर्चा में जो प्रावधान है, वह है 4 दिन का वर्क कल्चर। लेबर मंत्रालय के अनुसार, नया लेबर कोड यह अनुमति देता है कि अगर कोई कर्मचारी रोज़ 12 घंटे काम करता है, तो वह सप्ताह में केवल 4 दिन काम कर सकता है। इस स्थिति में सप्ताह के बाकी 3 दिन पेड हॉलिडे माने जा सकते हैं। हालांकि यह अनिवार्य नहीं है, बल्कि नियोक्ता और कर्मचारी की आपसी सहमति पर निर्भर करेगा।
यह व्यवस्था पूरी तरह से स्वैच्छिक है। यानी कंपनियों पर 4 दिन का वर्क वीक लागू करना जरूरी नहीं होगा। साथ ही कुल साप्ताहिक कार्य घंटे वही रहेंगे, जिन्हें अलग-अलग दिनों में समायोजित किया जा सकेगा। इसका मतलब यह नहीं है कि सभी कर्मचारियों को अपने आप 3 दिन की छुट्टी मिलने लगेगी।
निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि नया लेबर कोड भारत के श्रम कानूनों में एक बड़ा बदलाव है। 4 दिन काम और 3 दिन छुट्टी की व्यवस्था एक विकल्प के रूप में सामने आई है, न कि अधिकार के रूप में। अगर सही तरीके से लागू किया गया, तो यह कर्मचारियों के वर्क–लाइफ बैलेंस को बेहतर बना सकता है और भारतीय कार्यसंस्कृति में एक नया अध्याय जोड़ सकता है।













