जनतंत्र डेस्क, नई दिल्ली: महिला दिवस पर महिलाओं के सशक्तिकरण की बात हो रही है होनी भी चाहिए। आज की नारी सशक्त और आत्मनिर्भर है। लेकिन आज भी भारत में लड़कियों के पैदा होते ही उनके साथ भेदभाव शुरू हो जाता है। जो उनके बुजुर्ग होने तक हर पड़ाव में साथ रहता है।
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महिला दिवस पर महिलाओं को ये जानना जरूरी है उनके पास कई अहम कानून हैं। जो उनकी हर प्रताड़ना के खिलाफ मदद करते हैं। जीवन के हर मोड़ पर ये कानून महिलाओं के काम आ सकते हैं। आइए जनते हैं इनके बारे में।
शिक्षा का मौलिक अधिकार
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा था कि एक आदमी को पढ़ाओगे तो एक व्यक्ति शिक्षित होगा। एक स्त्री को पढ़ाओगे तो पूरा परिवार शिक्षित होगा। जन्म से ही लड़कियों को कुछ मौलिक अधिकार मिलते हैं। जिसमें एक शिक्षा का अधिकार भी है। देश की हर लड़की को राइट टू एजूकेशन का अधिकार है। इस अधिकार के तहत जिन बच्चों को स्कूल में प्रवेश दिया जाता है उनमें 50 प्रतिशत तक बालिकाओं का होना अनिवार्य है।
राइट टू एजूकेशन में 6 साल से 14 साल की उम्र तक के बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार है।
बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006
भारत के कई हिस्सों में आज भी लड़कियों की कम उम्र में शादियां हो जाती हैं नतीजतन कई लड़कियां शारीरिक समस्या या गर्भावस्था के दौरान जान गंवा देती हैं। बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 के तहत किसी भी लड़की की शादी 18 साल से कम उम्र में नहीं की जा सकती है। पिछले साल 2021 में उम्र सीमा को बढ़ाकर 21 कर देने का विधेयक लोकसभा में पेश किया गया था। अगर उम्र सीमा से पहले लड़की की शादी कर दी जाती है तो अभिभावकों को दो साल तक की जेल हो सकती है। इसके अलावा नाबालिग का विवाह मान्य भी नहीं माना जाएगा।
पिता की जगह मां का नाम
भारत की महिलाओं के पास ये अधिकार है कि वे बच्चे के स्कूल में एडमिशन के दौरान पिता की जगह मां का नाम दर्ज करवा सकती हैं।
गर्भ में लिंग की जांच के खिलाफ कानून
आज भी औरतों पर लड़के पैदा करने का दवाब डाला जाता है जैसे औरतें कोई डिमांड पूरी करने वाली मशीन हों। इसके खिलाफ कन्या भ्रूण हत्या निषेध अधिनियम 1994 है। जिसमें प्रसव से पहले भ्रूण की जांच करना अपराध है। इसके लिए औरत को बाध्य करने पर 5 साल तक की जेल और 1 लाख तक का जुर्माना हो सकता है।
लिव इन में रह रही महिला को अधिकार
महिलाओं को अपने हिसाब से जीने की इजाजत कानून में दी जाती है। लिव इन में रह रहीं महिलाओं को भी कानूनी हक हैं। घरेलू हिंसा के खिलाफ वे घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत कार्रवाई कर सकती हैं। इसके अलावा वे संपत्ति में हकदार होती हैं और गुजारा भत्ता भी मांग सकती हैं। वहीं, उसकी संतान को भी संपत्ति में हक है।
दहेज के खिलाफ कानून
लड़की की शादी में या शादी के बाद दहेज की मांग की जा रही है तो लड़की इसके खिलाफ कानूनी एक्शन ले सकती है। दहेज प्रतिषेध अधिनियम में 5 साल तक की सजा हो सकती है।
मैटरनिटी लीव का हक
प्रसूति लाभ अधिनियम 2017 के तहत कामकाजी महिला को प्रेग्नेंसी के बाद तीन महिला की पेड लीव लेने का अधिकार है।
हिंदू एडॉप्शन एक्ट एंड सेक्शन के तहत अविवाहित महिला को भी बच्चा गोद लेने का अधिकार है।
महिला का अपने पति की संपत्ति पर पूरा हक होता है
तलाक के बाद भी महिला अपने पति से हक मांग सकती है अगर उसके पास रहने के लिए कोई जगह नहीं है तो वह ससुराल में भी रह सकती है।
मुस्लिम विधवा महिलाएं भी तलाक के बाद गुजारा भत्ता की हकदार होती हैं। वे ससुर से भी गुजारा भत्ता मांग सकती हैं।
वृद्धावस्था में अनदेखी नहीं कर सकती संतान
बुजुर्ग महिला का अपने पति की संपत्ति में हक के साथ साथ बच्चों पर भी अधिकार होता है। बुजुर्ग होने पर बच्चे माता-पिता को अनदेखा नहीं कर सकते। माता-पिता की देख-रेख के लिए मेंटेनेस एंड वेलफेयर ऑफ पैरेंट्स एंड सीनियर सिटिजन एक्ट 2007 लागू है।
विधवा महिला का अपने पति के हक की संपत्ति में अधिकार है। पति की मौत के बाद वह उसकी संपत्ति की अधिकारी है। अगर विधवा महिला किसी और से भी शादी कर लेती है तो भी यह अधिकार रहेगा।
पति से विवाद होने पर भी महिला उसकी संपत्ति में हिस्सेदार है। हिंदू सक्सेशन एक्ट और हिंदू मैरिज एक्ट में ये प्रावधान है। पति पत्नी की संयुक्त संपत्ति में हिंदू विवाह अधिनियम 27 के तहत महिला अपना हक मांग सकती है।
कामकाजी महिला को उसके ऑफिस में परेशान किया जा रहा है या भद्दे कमेंट कर रहे हो या शोषण किया जा रहा है तो इसके खिलाफ IPC की धारा 294 और 509 के तहत कार्रवाई हो सकती है।
इसके अलावा समान वेतन का अधिकार है
महिला को गलत संदेश भेजने पर IPC की धारा 66ए के तहत सजा हो सकती है।
अगर लड़की की फोटो का गलत इस्तेमाल होता है और फोटो चुराकर इस्तेमाल की जाती है तो 66ए के तहत कार्रवाई हो सकती है।
सभी महिलाओं को अपने पिता और पति की संपत्ति में बराबर हिस्सेदारी का हक है।