कोरोना वायरस के संकट से सबसे ज्यादा अगर किसी देश में तबाही का मंजर आम है तो वो है खुद को सुपरपावर कहने वाला अमेरिका। उस पर राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की हर दिन बदलती नीतियों ने अमेरिकियों की जान आफत में डाल दी है। बात नीतियों की चल निकली है तो यहां भारत में भी कुछ ऐसा ही हाल है हर दिन नीतियों में बदलाव ने भारतीयों को हैरान परेशान कर रखा है। अब इस मामले में भारत अमेरिका के रास्ते पर कितना चल रहा है ? ये तो अलग चर्चा का विषय है, लेकिन राष्ट्रपति चुनाव के लिए तैयार हो रहे अमेरिका की सियासत में जरूर भारतीय राजनीति की झलक दिख रही है। कोरोना के खिलाफ जंग में मौजूदा ट्रंप प्रशासन लगभग नाकाम ही साबित हुआ है। लेकिन ट्रंप हैं कि इसे मानने और जरूरी कदम उठाने की बजाय अपनी हर आंतरिक विफलता को छिपाने के लिए चीन को ज़िम्मेदार ठहरा रहे हैं। ये और बात है कि हर अमेरिकी इस सियासी बाजीगरी को खूब समझ रहा है।
अमेरिका में इसी साल नवंबर में राष्ट्रपति के चुनाव होने हैं लेकिन पिछले चुनाव के दौरान किए गए वादों के पूरा होने का इंतजार पूरे देश को है। अब तो महज पांच महीने ही बचे हैं, लिहाजा चुनाव जीतने के लिए नये नारों की ज़रूरत है। कोरोना की महामारी के बीच अब ये अधूरे ही रहने वाले हैं, इसलिए वे हर मर्ज़ हर मुश्किल के लिए चीन को ज़िम्मेदार ठहरा रहे हैं और फिर वही अमेरिका फर्स्ट का राग अलाप रहे हैं। लेकिन कहते हैं कि काठ की हांडी एक बार ही चढ़ती है, लिहाजा कोरोना से बेहाल अमेरिका शायद ही इस बार राष्ट्रवाद की घुट्टी पीने को तैयार हो।
इस बात में कोई दो राय नहीं कि ट्रंप की लीडरशिप में अमेरिका हर मोर्चे पर कमज़ोर दिखायी दे रहा है, क्योंकि जानकार भी मानते हैं कि चुनावों तक अमेरिकी अर्थव्यवस्था ठीक नहीं हो पाएगी। बेरोजगारी की दर 13 फीसदी से ऊपर रहेगी और घरेलू इनकम 6 फीसदी से कम रहेगी। यहां तक कि अर्थव्यवस्था की हालत महामंदी से भी ज्यादा भयावह हो सकती है। अर्थव्यवस्था पर हुई चोट ने ट्रंप के दोबारा चुनकर आने के रास्ते को बेहद मुश्किल बना दिया है। ऐसे में सामाजिक विघटन और भड़काउ भाषणों के जरिए ही वो न केवल चुनाव में जाने की तैयारी में हैं बल्कि जीतने का दम भी भर रहे हैं। देखना दिलचस्प है कि अमेरिका इस चुनावी करतब को पसंद करता है या नहीं।
हालांकि ट्रंप के लिए बड़ी राहत की बात ये है कि अमेरिका में भी भारत की तरह विपक्ष की हालत बेहद कमज़ोर है। विपक्षी उम्मीदवार जो बिडेन ट्रंप को चुनौती तो पेश कर रहे हैं लेकिन गेम टर्निंग प्वाइंट ले ले ऐसे आसार कम ही दिख रहे हैं। तो क्या ट्रंप को TINA (there is no alternative) फैक्टर का फायदा मिल जाएगा ? हालांकि ऐसा भी होता नज़र नहीं आ रहा है, क्योंकि एक अमेरिकी स्टडी में खुलासा हुआ है कि डोनाल्ड ट्रंप इस साल नवंबर में होने वाले राष्ट्रपति चुनाव में बुरी तरह से हारने जा रहे हैं और ऐसा कोरोना वायरस के संकट और उसके बाद खराब अर्थव्यवस्था की वजह से होने वाला है। स्टडी के मुताबिक ट्रंप को सिर्फ 35 फीसदी पॉपुलर वोट हासिल होंगे, जबकि कोरोना के संक्रमण से पहले की गई स्टडी में ट्रंप को 55 फीसदी वोट मिलने की भविष्यवाणी की गई थी।
खुद ट्रंप भी इस जीत के लिए पूरी तरह से आश्वस्त हैं, ऐसा भी नहीं है। तभी तो उन्होने कहना भी शुरु कर दिया है कि चीन मुझे चुनाव हरवाना चाहता है और मेरे विरोधी जो बिडेन को राष्ट्रपति बनाना चाहता है। हाल ही में ट्वीट कर उन्होने कहा कि चीन ने लगातार गलत जानकारी फैलाना शुरू कर दिया है, क्योंकि वो चाहता है कि जो बिडेन राष्ट्रपति का चुनाव जीत जाए. ताकि चीन एक बार फिर अमेरिका को बर्बाद कर सके, वो लंबे वक्त से ऐसा ही करता आया है। लेकिन जब से मैं आया हूं वो ऐसा करने में नाकाम रहा है।
यानि अगर ट्रंप हारे भी तो जिम्मेदार चीन होगा, न कि उनकी वो गलत नीतियां जिन्होने कई बार अमेरिका को मुश्किल में डाला है। कोरोना वायरस की वजह से ट्रंप के चुनावी अभियान को तगड़ा झटका लगा है,लेकिन उससे भी बड़ा झटका अमेरिका को उनके कार्यकाल के दौरान लगा है। वैसे तो अमेरिका पहले भी ऐसे प्रशासन को सबक सिखाने के लिए जाना जाता रहा है। अब ट्रंप का दांव चुनाव में उनके लिए ट्रंप कार्ड साबित होगा या नहीं, ये नवंबर में साफ हो जाएगा।
– वासिन्द्र मिश्र