Assam: जब बुलडोजर का जिक्र होता है तो किस नेता का चेहरा आपके सामने आता है। मुझे लगता है सोचने की भी जरुरत नहीं है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का चेहरा सामने आता है। कानून तोड़ने वालों पर तुरंत एक्शन लेते हुए सजा के तौर पर आरोपी के घर पर बुलडोजर चलवाने का योगी का अंदाज लोगों को खास पसंद आ रहा है। लेकिन अब एक और नेता अपने बुलडोजर एक्शन को लेकर सुर्खियां बटोर रहे हैं। लोग उन्हें ‘बुलडोजर मैन’ कहने लगे है और वो है असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा। जिन्होंने असम में घुसपैठियों के खिलाफ बुलडोजर जंग छेड़ दी है।
2000 परिवारों पर पड़ सकता है असर
असम सरकार ने मंगलवार को गोलाघाट जिले के उरियामघाट में रेंगमा रिजर्व फॉरेस्ट में अब तक का सबसे बड़ा बेदखली अभियान शुरू किया है। इसका मक़सद 11000 बीघा यानी क़रीब 3600 एकड़ से अधिक जंगल की जमीन को अतिक्रमण से मुक्त कराना बताया गया है। इस अभियान में 1000 से अधिक पुलिसकर्मियों, केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल यानी सीआरपीएफ़ और वन विभाग के कर्मियों को तैनात किया गया है। इसके साथ ही 150 से अधिक बुलडोजर जैसी मशीनें लगाई गई हैं। इस अभियान से क़रीब 2000 परिवारों के विस्थापन की आशंका है, जिनमें अधिकांश बंगाली मूल के मुस्लिम परिवार हैं। तो क्या यह मुस्लिमों को निशाना बनाकर कार्रवाई की जा रही है? कम से कम विपक्षी दलों द्वारा आरोप तो यही लगाया जा रहा है।
असम सरकार ने उरियामघाट में रेंगमा रिजर्व फॉरेस्ट के 12 गांवों को टार्गेट पर लिया है। असम ट्रिब्यून की रिपोर्ट के अनुसार इन गाँवों में सोनारीबिल टॉप, दूसरा पिठाघाट, दूसरा दयालपुर, तीसरा दयालपुर, डोलोनपथार, खेरबारी, बिद्यापुर, बिद्यापुर मार्केट, दूसरा मधुपुर, अनादपुर, राजापुखुरी और गेलाजन शामिल हैं। इन गांवों में बस्तियों को अवैध अतिक्रमण माना गया है। अधिकारियों के अनुसार, इन क्षेत्रों में बंगाली मूल के मुस्लिम परिवारों ने बड़े पैमाने पर वन भूमि पर कब्जा कर लिया है और इसे सुपारी की खेती के लिए बदल दिया है। इसे सरकार ने ‘बेटल माफिया’ से जोड़ा है। मंगलवार सुबह शुरू हुए इस अभियान में भारी मशीनरी ने बिद्यापुर मार्केट से शुरुआत की। इससे क्षेत्र में दहशत फैल गई। वन विभाग ने क्षेत्र को नौ ब्लॉकों में विभाजित किया है और सभी निवासियों को सात दिन पहले नोटिस जारी कर खाली करने का आदेश दिया था। असम ट्रिब्यून ने एक एक वरिष्ठ वन अधिकारी के हवाले से रिपोर्ट दी है, ‘क़रीब 80-90% अतिक्रमणकारी पहले ही अपनी संपत्ति समेटकर चले गए हैं। हम केवल अवैध घरों को ध्वस्त कर रहे हैं। असम सरकार ने साफ़ किया है कि ‘अवैध’ ढाँचों के लिए कोई मुआवजा नहीं दिया जाएगा।
एक अधिकारी ने बताया, ‘‘बिद्यापुर क्षेत्र के मुख्य बाजार से अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई शुरू हुई है. हम धीरे-धीरे आवासीय क्षेत्रों की ओर बढ़ेंगे और अवैध रूप से बने मकानों को ध्वस्त करेंगे.” उन्होंने दावा किया कि लगभग 10,500 बीघा से 11,000 बीघा भूमि पर लोगों ने अतिक्रमण किया हुआ है। इन क्षेत्रों में लगभग 2,000 परिवार रह रहे हैं। जिनमें से अवैध रूप से रह रहे करीब 1,500 परिवारों को नोटिस भेजा गया है। बाकी परिवार यहां वनवासी हैं और उनके पास वन अधिकार समिति (FRC)के प्रमाणपत्र हैं।”
मुस्लिम समुदाय को बनाया जा रहा निशाना
इस अभियान पर मुस्लिम समुदाय के लोगों में गुस्सा है। ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट और कांग्रेस जैसे विपक्षी दलों ने इसे सामुदायिक भेदभाव करार देते हुए इसकी निंदा की है। एआईयूडीएफ़ नेता अमीनुल इस्लाम ने कहा, ‘यह पर्यावरण संरक्षण के नाम पर एक धार्मिक समुदाय को निशाना बनाने वाला सरकार प्रायोजित विस्थापन है।’
दूसरी ओर, स्थानीय बीजेपी विधायक बिस्वजीत फूकन ने अभियान का समर्थन करते हुए कहा,”यह कार्रवाई सिर्फ एक समुदाय को निशाना बनाकर की जा रही है तो उन्होनें जवाब दिया कि 90 प्रतिशत से ज्यादा लोगों ने अपना सामान हटा लिया है और चले गए हैं। बंगाली मुसलमानों के अलावा, 42 मणिपुरी मुस्लिम और 92 नेपाली परिवारों को भी इलाके से हटने के लिए कहा गया है।”
अभियान को देखते हुए अन्य राज्यों में भी अलर्ट
असम-नागालैंड सीमा पर स्थित उरियामघाट लंबे समय से दोनों राज्यों के बीच सीमा विवाद का केंद्र रहा है। इस अभियान के मद्देनजर नगालैंड सरकार ने अपनी सीमा पर पुलिस और जिला प्रशासन के कर्मियों को तैनात किया है ताकि विस्थापित लोग उनके क्षेत्र में प्रवेश न करें। मेघालय और मणिपुर ने भी निगरानी तेज कर दी है और मणिपुर ने विस्थापितों के लिए बायोमेट्रिक ट्रैकिंग और अस्थायी आश्रय की व्यवस्था की बात कही है। नगालैंड के संगठन एनएससीएन ने दावा किया है कि असम सरकार ‘अवैध बसने वालों’ के टैग का इस्तेमाल नगा भूमि पर कब्जा करने के लिए कर रही है, जिससे क्षेत्र में तनाव और बढ़ गया है।
बेदखली अभियान से मानवीय संकट पैदा हो गया है, क्योंकि कई परिवारों ने अपनी आजीविका और आवास गँवा दिया है। कई परिवारों ने पैसे की तंगी और दस्तावेजों की कमी के कारण स्थानांतरित होने में असमर्थता जताई है। कुछ रिपोर्टों के अनुसार गैर-सरकारी संगठनों ने भोजन, पानी और अस्थायी आश्रय जैसी आपातकालीन सहायता देना शुरू किया है।उरियामघाट बेदखली अभियान असम सरकार की वन और सरकारी भूमि को अतिक्रमण से मुक्त कराने की नीति का हिस्सा है। मुख्यमंत्री सरमा ने दावा किया है कि पिछले चार वर्षों में 1.29 लाख बीघा भूमि को अतिक्रमण से मुक्त कराया गया है, लेकिन अभी भी 29 लाख बीघा भूमि पर अतिक्रमण बाकी है। यह अभियान न केवल पर्यावरण संरक्षण और कानूनी शासन के सवाल उठाता है, बल्कि क्षेत्रीय तनाव, सामुदायिक भेदभाव और मानवीय संकट के मुद्दों को भी सामने लाता है।
असम में बुलडोजर एक्शन लगातार विवादों में भी घिरा हुआ है। इस पर लगातार सवाल भी उठाए जा रहे है। आरोप लग रहे है कि मुस्लिम समुदाय को ही निशाना बनाकर सीएम हेमंता बुलडोजर एक्शन चला रहे है। फिलहाल इसकी गूंज गोलाघाट के उरियामघाट में सुनाई दे रही है।















