कफ सिरप तस्करी मामले को लेकर हाल के दिनों में जो राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप तेज हुए हैं, उसी संदर्भ में जौनपुर के पूर्व सांसद धनंजय सिंह ने जनतंत्र टीवी से बातचीत में अपनी बात स्पष्ट की। उन्होंने कहा कि उनके नाम का बार-बार ज़िक्र केवल कुछ पुरानी फोटो और निजी संबंधों के आधार पर किया जा रहा है, जबकि इससे यह साबित नहीं होता कि वे किसी अवैध गतिविधि में शामिल हैं। उनका कहना था कि आलोक सिंह से उनका बचपन से पारिवारिक रिश्ता है, इसलिए स्वाभाविक तौर पर साथ तस्वीरें होंगी। इसी प्रकार, अमित टाटा उनके वकील के जूनियर रहे हैं, इस कारण उनसे भी पहचान है, लेकिन इसका मतलब अवैध कारोबार में शामिल होना नहीं होता।
धनंजय सिंह ने आरोप लगाया कि अखिलेश यादव उनकी पुरानी तस्वीरों को आधार बनाकर उन्हें गलत तरीके से घसीट रहे हैं। उन्होंने पलटकर कहा कि अगर तर्क सिर्फ फोटो का है, तो अखिलेश यादव के साथ भी आलोक सिंह की तस्वीरें हैं—तो क्या इसका मतलब हुआ कि वह भी ‘इन्वॉल्व’ हैं? उन्होंने कहा कि इस तरह की बयानबाज़ी से बचा जाना चाहिए और मुद्दे को राजनीतिक रंग देने के बजाय तथ्य आधारित जाँच को प्राथमिकता मिलनी चाहिए।
उन्होंने कहा कि यह मामला गंभीर है और इसमें गैरकानूनी दवा व्यापार, कफ सिरप की अवैध सप्लाई, और उससे जुड़ी संभावित मौतों पर सरकार को स्पष्ट रूप से बात करनी चाहिए। उनका आरोप था कि विपक्ष हाइप बनाकर इसे “बच्चों की मौतें” जैसा भावनात्मक मुद्दा बना रहा है, जबकि कोई ठोस रिपोर्ट सामने नहीं आई है। उन्होंने कहा कि यदि मौतों को लेकर झूठ बोले गए हैं तो पहले जनता से माफी मांगनी चाहिए।
धनंजय सिंह ने कहा कि विपक्ष को रचनात्मक मुद्दे उठाने चाहिए—जैसे कि दवाओं पर सख़्त रेगुलेशन, अधिक पारदर्शिता, दवाओं का कॉस्ट प्राइस और MRP अनिवार्य रूप से लिखवाना आदि—लेकिन राजनीतिक मंचों पर सिर्फ आरोप लगाना और हंसना संवेदनशीलता की कमी दिखाता है। उन्होंने यह भी कहा कि अखिलेश यादव इंजीनियरिंग और MBA कर चुके पढ़े-लिखे नेता हैं, उनसे अपेक्षा है कि वे गंभीर विषयों पर गंभीरता से बात करें उन्होंने दावा किया कि विपक्ष उनकी जातीय पहचान को मुद्दा बनाकर और उनका नाम उछालकर राजनीतिक लाभ उठाना चाहता है। उनके मुताबिक अखिलेश यादव पिछले कुछ वर्षों से क्षत्रिय समुदाय और कुछ नेताओं के खिलाफ लगातार बयान देते रहे हैं, जिसे वह राजनीतिक ध्रुवीकरण का प्रयास मानते हैं।
जब उनसे पूछा गया कि वह अब तक सामने क्यों नहीं आए, तो उन्होंने कहा कि वे चाह रहे थे कि पहले स्वास्थ्य विभाग और सरकार अपनी स्थिति स्पष्ट करे, क्योंकि आरोप सीधे उन्हीं पर लगाए जा रहे थे। उनका कहना था कि वह नहीं चाहते थे कि सरकार का आधिकारिक पक्ष आने से पहले मामला और उलझे।उन्होंने कहा कि वह इस मामले में अपने खिलाफ की गई कथित साज़िश के संदर्भ में स्पीकर ओम बिड़ला को पत्र लिखने की तैयारी कर रहे हैं। साथ ही उन्होंने स्पष्ट किया कि उनके और अखिलेश यादव के राजनीतिक मतभेद व्यक्तिगत दुश्मनी नहीं हैं—लोकतांत्रिक राजनीति में असहमति स्वाभाविक है।
अंत में उन्होंने कहा कि विपक्ष मुद्दों की कमी से परेशान है और बिहार में हार के बाद बौखलाहट में अनावश्यक विवाद खड़ा कर रहा है। उनका मानना है कि जाँच एजेंसियों को निष्पक्ष रूप से कार्रवाई करने देना चाहिए और जो भी दोषी होगा वह स्वतः सामने आ जाएगा।
अब सवाल यह है कि कफ सिरप कांड की सियासत में आरोपों और तस्वीरों की लड़ाई कब थमेगी? SIT की जांच किस निष्कर्ष पर पहुंचती है और क्या वाकई जिम्मेदारों पर कार्रवाई होती है—यह आने वाला वक्त ही बताएगा। फिलहाल, जनतंत्र टीवी पर धनंजय सिंह का यह बयान राजनीतिक हलकों में नई बहस जरूर छेड़ गया है।









