नई दिल्ली: टाइटैनिक जहाज समुद्री दुनिया का एक ऐसा जहाज जिसका नाम दुनिया के हर-एक इंसान को याद होगा। साल 1912 में ये जहाज एक आइसबर्ग से टकराकर समुद्र की गोद में समा गयी थी और हजारों लोगों लोगों को अपने साथ ले डूबी। अब टाइटैनिक जहाज बनाने वाली आयरलैंड की 158 साल पुरानी कंपनी हार्लेंड एंड वोल्फ शिपयॉर्ड बंद होने जा रही है। बीते कई सालों से लगातार घाटे में रहने के बाद कंपनी दिवालिया हो गयी है।
हार्लेंड एंड वोल्फ शिपयॉर्ड की शुरुआत साल 1861 में की गयी थी। 1935 में द्वितीय विश्व युद्ध से पहले कंपनी में 35 हजार लोग काम करते थे। अब कंपनी में सिर्फ महज 123 लोग बचे हैं। कंपनी ने टाइटैनिक जहाज के अलावा दूसरे विश्व युद्ध के दौरान 150 से ज्यादा युद्धपोत भी बनाए थे। 1945 के बाद से कंपनी जहाज निर्माण से दूर होते चली गई। 2003 के बाद इस कंपनी ने एक भी जहाज नहीं बनाए। हालांकि, इसने 2 फेरी बनाई है। बंद होने से पहले यह कंपनी Hydropower और समुद्री इंजीनियरिंग परियोजनाओं पर काम कर रही थी।
हार्लैंड एंड वुल्फ को पहचान टाइटैनिक जहाज से मिली। कंपनी ने इस जहाज को 1909 से 1911 के बीच बनाया था। इसे उत्तरी आयरलैंड के बेलफास्ट में 31 मार्च, 1911 को लॉन्च किया गया था। टाइटैनिक को उस समय के सबसे अनुभवी इंजीनियरों ने डिजाइन किया था। इसके निर्माण में उस वक्त की आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल किया गया था। अप्रैल 1912 में एक आइसबर्ग से टकराने से टाइटैनिक समुद्र में डूब गया। उस वक्त टाइटैनिक में 2,229 लोग सवार थे। लेकिन जहाज में लाइफबोट की क्षमता 1,178 लोगों की ही थी। जिसकी वजह से करीब 1,517 लोग समुद्र में डूब गये। इसे समुद्री इतिहास का सबसे भीषण दुर्घटना माना जाता है। 1 सितंबर 1985 को टाइटैनिक का मलबा खोजा गया।
डूबने के बाद हाईलाइट में आई थी कंपनी
टाइटैनिक के डूबने के बाद भी कंपनी हाईलाइट में आई। हालांकि, इससे कंपनी को ज्यादा नुकसान नहीं हुआ, लेकिन दूसरे विश्व युद्ध के बाद ट्रांस-अटलांटिक एयर ट्रैवल बढ़ने की वजह से शिप बिल्डिंग इंडस्ट्री सिमटने लगी। लागतार घाटा सहने के बाद हार्लैंड एंड वोल्प शिपिंग कंपनी ने खुद को दिवालिया घोषित कर दिया।