रश्मि सिंह|Article 370 Abrogation: सोमवार यानी 11 दिसंबर का दिन पूरे देश के लिए बेहद ही अहम रहने वाला है। देश की सबसे बड़ी अदालत यानी सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद 370 पर अपना फैसला सुनाने वाली है। वहीं, अनुच्छेद 370 पर फैसला सुनाने से पहले कश्मीर के नेताओं और लोगों के बीच उम्मीद और उदासी दोनों ही है। अनुच्छेद 370 को हटाने के बाद ही जम्मू-कश्मीर को दो केंद्रशासित प्रदेशों में विभाजित किया गया, जिसमें से एक हिस्सा जम्मू-कश्मीर तो दूसरा लद्दाख बनाया गया था।
सुप्रीम कोर्ट की एक संवैधानिक पीठ कई याचिकाओं पर अपना फैसला सुनाएगी। इन याचिकाओं में अगस्त 2019 में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने और जम्मू-कश्मीर राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों में विभाजित करने को चुनौती दी गई है। अनुच्छेद 370 के जरिए जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष राज्य का दर्जा दिया गया था। अब ऐसे में आइए जानते हैं कि कोर्ट के फैसले से पहले नेताओं का क्या कहना है? अनुच्छेद 370 क्या था और इसे किस तरह से हटाया गया?
कोर्ट के फैसले से पहले क्या बोले कश्मीर के नेता?
एक रिपोर्ट के मुताबिक, जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी की नेता महबूबा मुफ्ती ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने इस अहम फैसले को सुनने में पांच साल लगा दिए। महबूबा ने कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट ने अपने पहले के फैसलों में कहा था कि अनुच्छेद 370 को सिर्फ जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा की सिफारिशों के आधार पर ही खत्म किया जा सकता है। इस प्रक्रिया के उलट कोई भी फैसला संविधान के साथ-साथ भारत के विचार के खिलाफ होगा।’
उन्होंने कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट के दिए जाने वाला फैसला सिर्फ अनुच्छेद 370 के बारे में नहीं है, बल्कि भारत की पहचान के भविष्य को निर्धारित करने वाला एक महत्वपूर्ण पल होने वाला है। मुझे उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट राजनीतिक बदलावों से परे जाकर परिणामों को पहचानेगा।’ पूर्व मुख्यमंत्री ने लोगों से उम्मीद नहीं खोने की अपील भी की। उन्होंने अपने अधिकारों को सुरक्षित करने और अपनी पहचान एवं गरिमा को बहाल करने के लिए एकता के महत्व पर जोर दिया।
स्थानीय लोगों के बीच क्या है चर्चा ?
आपको बता दें कि, जम्मू-कश्मीर के स्थानीय लोगों को बेसब्री से सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार कर रही है। पूर्व सरकारी कर्मचारी राशिद खान ने कहा, ‘इतिहास पर नजर डाले तो यह विशेष दर्जा हमसे कभी नहीं छीना जाना चाहिए था। हालांकि, अब ऐसा हो चुका है, इसलिए सुप्रीम कोर्ट ही इसे हमें वापस दे सकता है,’ उन्होंने कहा कि उन्हें सोमवार को अच्छे फैसले की उम्मीद है।
क्या है अनुच्छेद 370 ?
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि, 1947 में अंग्रेजों से आजादी के बाद तत्कालीन रियासतों के पास भारत या पाकिस्तान में से किसी एक में शामिल होने का विकल्प था। उस समय अनुच्छेद 370 जम्मू-कश्मीर के भारत का हिस्सा बनने के अधिकार था। भारत के संविधान में 17 अक्टूबर, 1949 को अनुच्छेद 370 को जगह दी गई थी। इसने जम्मू-कश्मीर राज्य को भारतीय संविधान से अलग रखने का काम किया था। इसके तहत राज्य को अधिकार मिले कि वह अपना खुद का संविधान तैयार कर पाए।
अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा मिला हुआ था। रक्षा, विदेश मामले और संचार के विषय में कानून बनाने का अधिकार नहीं होने के अलावा राज्य विधानसभा अन्य कानूनों को बना सकती थी। सरकार को भी ऊपर बताए गए तीन विषयों को छोड़कर सभी पर कानून बनाने के बाद राज्य सरकार से मंजूरी की जरूरत होती थी। अन्य राज्य के लोगों को जम्मू-कश्मीर में जमीन खरीदने के अधिकार भी नहीं दिए गए थे।
कैसे हटाया गया अनुच्छेद 370 ?
बता दें कि, केंद्र सरकार ने 5 अगस्त, 2019 को अनुच्छेद 370 को हटा दिया था। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में आकर इस बारे में देश को बताया था। अनुच्छेद 370 को हटाने के साथ-साथ जम्मू-कश्मीर राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों में बांट दिया गया था, जिसमें से एक जम्मू-कश्मीर तो दूसरा लद्दाख बना, अमित शाह ने संसद को संबोधित करते हुए कहा था कि अनुच्छेद 370 के प्रावधान लिंग, वर्ग, जाति और मूल स्थान के आधार पर भेदभावपूर्ण है। युवाओं को राजनीतिक अभिजात वर्ग के जरिए धोखा दिया जा रहा है. यह प्रावधान अस्थायी था और इसे जम्मू-कश्मीर के लोगों हितों को ध्यान में रखते हुए हटाना होगा।