नई दिल्ली : भारत में कोरोना संक्रमित मरीजों का इलाज (Plasma Therapy Coronavirus) जल्दी प्लाज्मा थेरेपी से शुरू हो सकता है प्लाज्मा थेरेपी का मतलब है करोना से ठीक हुए मरीजों का खून लेकर संक्रमित लोगों का इलाज किया जाता है, इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च ने कोरोना वायरस से गंभीर रूप से बीमार लोगों पर प्लाज्मा तकनीक के ट्रायल को मंजूरी दे दी है।
Plasma Therapy Coronavirus क्या है?
जानकारी के मुताबिक जो लोग कोरोना संक्रमण से पूरी तरह ठीक हो चुके हैं (Plasma Therapy Coronavirus)उनके शरीर से 800 मिली खून लिया जाता है और एंटीबॉडी से संयुक्त प्लाज्मा अलग कर लिया जाता है इसके बाद प्लाज्मा को कोरोना वायरस के मरीजों में इंजेक्ट किया जाता हैं। जब शरीर किसी बैक्टीरिया या रोगाणु के संपर्क में आता है तो प्रतिरक्षा तंत्र अपने आप सक्रिय हो जाता है और एंटीबॉडीज रिलीज होने लगती हैं, कोरोना वायरस संक्रमण से ठीक हो चुके मरीजों के प्लाज्मा में ऐसी एंटीबॉडीज होती हैं जो पहले ही कोरोना वायरस से लड़ चुकी होती हैं।
प्लाज्मा थेरेपी थेरेपी काफी हद तक इलाज के लिए असरदार
वहीं आपको बता दे कि प्लाज्मा थेरेपी थेरेपी काफी हद तक इलाज के लिए असरदार साबित हो रही है क्योंकि इसका ट्रायल और देशों में भी चल रहा है जैसे दक्षिण कोरिया चीन यूएस यूके और वही भारत भी इसका परीक्षण कर रहा है।
प्लाजमा थेरेपी से करोना का इलाज करने के लिए जो भी संस्था या अस्पताल की योजना बना रहे हैं सबसे पहले इंस्टिट्यूशनल एथिक्स कमिटी के प्रोटोकॉल के तहत क्लीनिकल ट्रायल करना होगा ऑल ट्रायल करने से पहले ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया की अनुमति लेनी जरूरी होगी इसके अलावा अस्पतालों का क्लीनिकल ट्रायल रजिस्ट्री ऑफ इंडिया में रजिस्टर भी भी क्लीनिकल ट्रायल रजिस्ट्री ऑफ इंडिया में रजिस्टर भी भी करवाना होग।
आईसीएमआर का कहना है कि अभी क्लीनिकल ट्रायल से बाहर प्लाज्मा थेरेपी का इस्तेमाल हीं किया जाना चाहिए,
केरल देश का ऐसा पहला राज्य है जिसने प्लाज्मा थेरेपी पर रिसर्च और प्रोटोकॉल को शुरू किया हैं, वहीं आईसीएमआर ने प्लाज्मा थेरेपी के परीक्षण के लिए श्री चित्रा तिरुनल इंस्टिट्यूट फॉर मेडिकल साइंसेज ऐंड टेक्नॉलजी (SCTIMST) को 11 अप्रैल को मंजूरी दे दी थी।
डीसीजीआई की तरफ से मंजूरी नहीं मिली है ,डीसीजीआई ने ब्लड डोनेट करने को लेकर कई नियम बनाए हैं, जैसे ब्लड डोनर का पिछले तीन महीनों में विदेशी यात्रा का कोई रिकॉर्ड नहीं होना चाहिए, SCTIMST ने ट्रायल के लिए नियमों में ढील देने की अपील की है. दिल्ली में भी प्लाज्मा थेरेपी के परीक्षण की तैयारी की जा रही हैं।
केरल ने प्लाज्मा थेरेपी का परीक्षण तभी शुरू कर दिया गया था जब यूएस फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन ने इसकी मंजूरी भी नहीं दी थी आईएसीएमआर का कहना है कि कुछ दिनों में पता चल जाएगा देश भर में कुल कितने ट्रायल कराए जाएंगे। 2003 में सार्स नामक महामारी,एच-1एन-1 इन्फ्लुएंजा और 2012 में मार्स की महामारी के दौरान भी प्लाज्मा थेरेपी पर स्टडीज की गई थी, शोधकर्ताओं का कहना है कि इबोला में भी इसका परीक्षण किया गया था लेकिन उसमें ये असरदार साबित नहीं हुई।
जर्नल ऑफ अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन (जामा) की 27 मार्च को प्रकाशित हुई एक स्टडी के मुताबिक, शोधकर्ताओं ने पाया कि प्लाज्मा थेरेपी (सीपीटी) से कोरोना वायरस संक्रमण से गंभीर रूप से बीमार पांच मरीजों में सुधार देखने को मिला. 6 अप्रैल को प्रकाशित हुई एक स्टडी में बताया गया है कि कोरोना वायरस के मरीजों में सीपीटी के उत्साहजनक नतीजे देखने को मिले हैं. यूएस एफडीए ने कहा है, प्लाज्मा थेरेपी में उम्मीदें नजर आ रही हैं लेकिन अभी तक इसके सुरक्षित और असरदार होने की बात साबित नहीं हो सकी है. इसलिए क्लीनिकल ट्रायल में इसकी सुरक्षा और प्रभावी होने की जांच किया जाना जरूरी हैं।