जनतंत्र डेस्क Delhi: इस साल दिवाली से पहले कुंभकारो में खुशी का माहौल है। मिट्टी के दीए बनाने वाले कारीगर बाजार के रुख से काफी खुश हैं। दरअसल इस बार बढ़ती महंगाई के बीच दिए की कीमतों में भी 100 फीसदी का उछाल आया है। जो दिए बनाने वालों के लिए अच्छी खबर है। दिवाली से पहले कुंभकारो को देश से ही नहीं विदेशों से भी दिए बनाने के ऑर्डर मिल रहे हैं।
पिछले दो साल से वैश्विक महामारी कोरोना ने तीज त्यौहारों को काफी प्रभावित किया। लोग सार्वजनिक रूप से त्यौहार नहीं मना पाए जिससे व्यापारियों को भी काफी नुकसान हुआ। इस बार कोविड संक्रमण में थोड़ी राहत से नियमों में ढील दी गई है। जिससे लोग अब हर्षोल्लास के साथ त्यौहार मना रहे हैं। इसी कड़ी में मिट्टी के बर्तन और दीए बनाने वाले कारीगर भी बेहद खुश हैं। पिछले साल दीयों की किमत जहां 250-300 प्रति हजार दीए थी। वहीं, इस बार बढ़कर 600 के आसपास हो गई है। हालांकि कुंभकारों का कहना है कि मिट्टी की कीमत में भी इतना ही इजाफा हुआ है, क्योंकि दीए बनाने के लिए मिट्टी नजफगढ़ के दूरदराज इलाके के साथ-साथ हरियाणा बॉर्डर से मंगाई जाती है। जिसकी कीमत पिछले साल ढाई हजार रुपे प्रति ट्रॉली थी जो इस बार बढ़कर 5 हजार प्रति ट्रोली हो गई है।
दिन-रात दीए बनाने में जुटे कुंभकार
दिल्ली के विकास विकास नगर में कुम्हार कॉलोनी में काफी संख्या में कारोबारी मिट्टी के बर्तन सहित दिए बनाते हैं। इनके बनाए बर्तन और दीए विदेशों में भी जाते हैं। पिछले 5 दशक से भी ज्यादा समय से यहां दिए बनाने वाले कारोबारी का कहना है कि इस बार जिस तरह से अलग-अलग राज्यों से दीए बनाने के ऑर्डर मिल रहे है। उन ऑर्डर को पूरा करने के लिए वक्त नहीं मिल रहा। उनका कहना है कि कई दिये लेने वाले को तो वापस भेजना पड़ता है। मुंबई बेंगलुरु कोलकाता के साथ-साथ अन्य शहरों से ऑर्डर आ रहे हैं। कोरोना काल से पहले ये कारोबारी मिट्टी के दीए विदेशों में भी भेजते थे। जैसा कि सर्दियों के साथ दिल्ली में प्रदूषण भी बढ़ जाता है।
हर साल की तरह इस बार भी दिल्ली सरकार ने पटाखों पर रोक लगा दी है। ऐसे में मिट्टी के दीयों की डिमांड भी बढ़ गई है। वहीं, लोगों में चाइनीज सामान के बहिष्कार का चलन भी बढ़ रहा है। मिट्टी के दीए स्वदेशी हैं और इनसे प्रदूषण भी नहीं फैलता। दीयों की बढ़ती डिमांड को देख लगता है लोग इस बार इको फ्रैंडली दिवाली मनाना चाहते हैं।