नई दिल्ली : भारत के हिस्से में आने वाले हिमालयी क्षेत्र में बर्फीली चोटियों के बीच स्थित रूपकुंड झील में एक अरसे से इंसानी हड्डियां बिखरी हैं….रूपकुंड झील समुद्रतल से क़रीब 16,500 फीट यानी 5,029 मीटर की ऊंचाई पर मौजूद है.
ये झील हिमालय की तीन चोटियों, जिन्हें त्रिशूल जैसी दिखने के कारण त्रिशूल के नाम से जाना जाता है, के बीच स्थित है…त्रिशूल को भारत की सबसे ऊंची पर्वत चोटियों में गिना जाता है जो कि उत्तराखंड के कुमाऊं क्षेत्र में स्थित हैं. रूपकुंड झील को “कंकालों की झील” कहा जाता है. यहां इंसानी हड्डियां जहां-तहां बर्फ़ में दबी हुई हैं.
साल 1942 में एक ब्रिटिश फॉरेस्ट रेंजर ने गश्त के दौरान इस झील की खोज की थी….. तकरीबन आधी सदी से मानवविज्ञानी और वैज्ञानिक इन कंकालों का अध्ययन कर रहे हैं. वहीं, बड़ी संख्या में पर्यटक यहां आते हैं और ये झील उनकी जिज्ञासा का कारण बनी हुई है……साल के ज़्यादातर वक़्त तक इस झील का पानी जमा रहता है, लेकिन मौसम के हिसाब से यह झील आकार में घटती – बढ़ती रहती है. जब झील पर जमी बर्फ़ पिघल जाती है तब ये इंसानी कंकाल दिखाई देने लगते हैं….कई बार तो इन हड्डियों के साथ पूरे इंसानी अंग भी होते हैं जैसे कि शरीर को अच्छी तरह से संरक्षित किया गया हो. अब तक यहां 600 से 800 लोगों के कंकाल पाए गए हैं..
.. पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए उत्तराखंड की सरकार इसे “रहस्यमयी झील” के तौर पर बताती है….वहीं पिछली आधी सदी से ज्यादा वर्षों से वैज्ञानिकों ने इस झील में पड़े कंकालों का अध्ययन किया है और कई अनसुलझी पहेलियों को सुलझाने की कोशिश की है….उनके सामने कई सवाल थे…. जैसे, ये कंकाल किन लोगों के हैं? इन लोगों की मौत कैसे हुई? ये लोग कहां से यहां आए थे?….इन मानव कंकालों को लेकर एक पुरानी कहानी यह बताई जाती है कि ये कंकाल एक भारतीय राजा, उनकी पत्नी और उनके सेवकों के हैं….. 870 साल पहले ये सभी लोग एक बर्फ़ीले तूफान का शिकार हो गए थे और यहीं दफ़न हो गए थे….