नई दिल्लीः भारत की बेटियों के जीवन में सुधर लाने के लिए मोदी सरकार द्वारा शुरू किए गए अभियान बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ का असर अब दिखने लगा है. दरअसल पिछले छह साल में लिंगानुपात में सुधार आया है। 2014 से 15 तक 1,000 बालकों में बालिकाओं की संख्या 918 थी, जो कि 2019-20 में बढ़कर 934 हो गई है।
लिंगानुपात में सुधार-
बात करें तो लिंगानुपात में खराब स्थिति वाले हरियाणा, चंडीग़़ढ, पंजाब, उत्तर प्रदेश और हिमाचल प्रदेश में अच्छा सुधार आया है। हालांकि बिहार, कर्नाटक, केरल, ओडिशा, नगालैंड, त्रिपुरा, दादर नागर हवेली और लक्षद्वीप में लिंगानुपात गिरा है और स्थिति पहले से खराब हुई है। इसके अलावा बाकी राज्यों में बालिकाओं की संख्या में पहले से सुधार आया है।
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‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ कारगर अभियान-
बता दें की झारखंड और मिजोरम में स्थिति ठीक वैसी ही है जैसी छह साल पहले थी। झारखंड में प्रति 1,000 बालकों पर बालिकाओं की संख्या 920 और मिजोरम में 971 है.बालकों की तुलना में बालिकाओं की घटती संख्या से देश की सरकारें चितित तो बहुत पहले थीं और इस दिशा में कदम भी उठाए जा रहे थे। लेकिन मोदी सरकार द्वारा चलाया गया ‘बेटी बचाओ, बेटी प़़ढाओ’ अभियान इस दिशा में सबसे कारगर साबित हुआ।
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उच्च स्तरीय जागरूकता-
बेटियों के प्रति लोगों की नकारात्मक सोच पिछले छह वर्षो में कितनी बदली है, इसका उदाहरण सुधरता लिगानुपात है। मोदी सरकार ने पिछले कार्यकाल में 2014 में ‘बेटी बचाओ, बेटी प़़ढाओ’ अभियान की शुरआत की। योजना का उद्देश्य घटते लिंगानुपात को सुधारना था। नीति आयोग की आकलन रिपोर्ट भी मानती है कि यह योजना लैंगिक भेदभाव कम करने, लड़कियों को महत्व प्रदान करने और जन भागीदारी पैदा करने में कारगर रही है। इस योजना से लोगों में बेटियों को लेकर उच्च स्तरीय जागरूकता आई है।
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