क्या है Citizenship Amendment Bill का नार्थ-ईस्ट कनेक्शन ? क्यों हो रहा है विरोध
नई दिल्ली : नागरिकता संशोधन (Citizenship Amendment Bill) लोकसभा से पास होने के बाद अब राज्यसभा से पास हो गया है, जिसके बाद अब राष्ट्रपति के मुहर के बाद ये बिल कानून का शक्ल अख्तियार कर लेगा। लेकिन, नागरिकता संशोधन बिल को लेकर नॉर्थ-ईस्ट (North-East) में विरोध प्रदर्शन जारी है। सरकार के आश्वासनों के बावजूद आज तीसरे दिन भी लोग सड़क पर उतरे और जमकर नारेबाजी हुई।
- नॉर्थ-ईस्ट में 10 साल का सबसे बड़ा बंद
- नॉर्थ-ईस्ट में 3 दिन से ठप है जनजीवन
- नॉर्थ-ईस्ट की सड़कों पर प्रदर्शनकारियों का कब्जा
- नॉर्थ-ईस्ट में CAB के खिलाफ विरोध की आग
नागरिकता संशोधन बिल के खिलाफ नॉर्थ-ईस्ट में जोरदार प्रदर्शन जारी है। बिल के विरोध का सबसे ज्यादा असर असम (Asam), त्रिपुरा (Tripura) और मेघालय (Meghalaya) में दिखाई दे रहा है। यहां जनजवीन पूरी तरह से ठप पड़ा हुआ है और सड़कें सूनी पड़ी हैं। बाजार, पेट्रोल पंप सब बंद हैं और असम की सड़कों पर छात्रों का जबरदस्त विरोध देखने को मिल रहा है। छात्र-छात्राएं पोस्टर बैनर लेकर नारेबाजी कर रही हैं। असम के सभी छात्र संगठन नागरिकता संशोधन बिल के खिलाफ है। असम में विरोध इस कदर है कि आम लोग भी अपने घरों से बाहर निकल कर प्रदर्शन में शामिल हो रहे हैं।
असम के डिब्रूगढ़, तिनसुकिया और गुवाहाटी में प्रदर्शन के दौरान जमकर हंगामा हुआ है। डिब्रूगढ़ में हंगामा बढ़ने पर पुलिस को आंसू गैस छोड़नी पड़ी। यहां पुलिस और प्रदर्शनाकरियों के बीच झडप भी हुई है। बंद को देखकर लोगों को 70-80 के दशक में हुए असम आंदोलन की याद आ गई है।
असम के साथ त्रिपुरा, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश में भी बिल के खिलाफ लोग सड़कों पर हैं। त्रिपुरा में प्रदर्शन के साथ अफवाहें भी फैलाई जा रहीं हैं। अफवाहों से बचने के लिए त्रिपुरा की सरकार ने राज्य में मोबाइल इंटरनेट, एसएमएस सर्विस पर 48 घंटे के लिए रोक लगा दी है। अगरतला में लगातार तीसरे दिन लोग सड़क पर उतरे। अरुणाचल प्रदेश में भी छात्र संगठनों ने बंद बुलाया है। यहां स्कूल, बैंक और बाजार बंद हैं। दफ्तरों में कर्मचारियों की संख्या ना के बराबर है। बंद से अस्पताल जाने वाले मरीजों को काफी परेशानी हो रही है। पेट्रोल पंप बंद होने से लोग अपनी निजी गाड़ियों से भी अस्पताल नहीं पहुंच पा रहे।
नार्थ-ईस्ट में क्यों हो रहा है इस बिल का विरोध ?
नॉर्थ-ईस्ट का एक बड़ा तबका बिल से इसलिए डरा हुआ्र है क्योंकि उनको लगता है कि बिल पास होने से यहां के शरणार्थियों को नागरिकता मिल जाएगी जिससे उनकी पहचान, भाषा और संस्कृति खतरे में पड़ जाएगी। मिसाल के तौर पर असम के लोगों का मानना है कि बिल पास होने के बाद असम में असमिया भाषी अल्पसंख्यक हो जाएंगे। असम में NRC से बाहर हुए 12 लाख हिंदू बंगाली भी नागरिक बन जाएंगे। असम के लोगों को मानना है कि बिल लागू होने के बाद असम में असमिया बोलने वाले 36 फीसदी लोग ही बचेंगे, जबकि बंगाली बोलने वाले 40 फीसदी तक पहुंच जाएंगे। त्रिपुरा, मेघालय, अरणाचल प्रदेश, मणिपुर और सिक्किम के लोगों में भी ऐसी ही आशंकाएं हैं, लेकिन केंद्र सरकार ने ऐसी सभी आशंकाओं को खारिज कर दिया है। गृहमंत्री अमित शाह ने संसद में बिल पेश करते हुए नॉर्थ-ईस्ट के सभी राज्यों को भरोसा दिलाया कि बिल से उनकी पहचान को कोई संकट नहीं है।
बगैर परमिट के कोई भी भारतीय नागरिक इनर लाइन परमिट वाले राज्यों में न तो जा सकता है और न ठहर सकता है। अरुणाचल प्रदेश, मिज़ोरम और नगालैंड में यह व्यवस्था थी और अब मोदी सरकार ने मणिपुर में भी इनर लाइन परमिट लागू करने का वादा किया है। असम और सिक्किम को लेकर भी केंद्र सरकार ने भरोसा दिया है। सरकार का मानना है कि बिल जब लागू होगा तो नॉर्थ-ईस्ट के लोगों की सभी आशंकाएं बेबुनियाद साबित होगी।