Electoral Bonds Scheme: चुनावी बॉन्ड्स पर सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने एक बड़ा फैसला सुनाया है। दरअसल, कोर्ट का आदेश है कि जो भी चुनावी बॉन्ड खरीदने वाले लोगे हैं उनके नाम जारी किया जाए। संवैधानिक बेंच का कहना है कि इलेक्टोरल बॉन्ड तो रहेगा, लेकिन उसे खरीदने वाले लोगों और संस्थाओं के नामों की जानकीर देनी होगी। हालांकि ये फैसला इलेक्टोरल बॉन्ड बेनाम खरीद के तहत लिए जाते हैं। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली बेंच का कहना है कि जनता को जानने का हक है कि आखिर राजनीतिक दलों के पास पैसे कहां से आते हैं और कहां जाते हैं। बेंच ने यह भी कहा कि सरकार को चुनावी प्रकिया में काला धन रोकने के लिए कुछ और तरीकों पर भी विचार करना चाहिए।
क्या कहा सीजेआई चंद्रचूड़ ने
बता दें कि सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा है कि चुनावी प्रकिया में नकदी तत्व को कम करने की जरूरत, अधिकृत बैंकिंग चैनलों के उपयोग को प्रोत्साहित करने की जरूरत, गोपनीयता द्वारा बैंकिंग चैनलों के उपयोग को प्रोत्साहित करना, पारदर्शिता, रिश्वत का वैधीकरण, इसके अलावा सीजेआई ने टिप्पणी की थी कि यह योजना सत्ता केंद्रों और उस सत्ता के हितैषी लोगों के बीच रिश्वत और बदले की भावना का वैधीकरण नहीं बननी चाहिए।
क्या है चुनावी बॉन्ड
बता दें कि चुनावी बॉन्ड वित्तीय साधन है, जो किसी संस्थान या किसी इंडिविजुअल को अपनी पहचान उजागर किए बिना किसी राजनीतिक पार्टी का चंदा यानी डोनेशन देने की अनुमति देता है। ये बॉन्ड एक हजार रुपये से लेकर 1 करोड़ तक हो सकता है। इस योजना को सरकार ने दो जनवरी साल 2018 में बनाया था। बता दें कि योजना के अनुसार, चुनावी बॉन्ड भारत के किसी भी नागरिक या देश में निगमित या स्थापित इकाई द्वारा खरीदा जा सकता है। कोई भी व्यक्ति अकेले या अन्य व्यक्तियों के साथ संयुक्त रूप में चुनावी बॉन्ड खरीद सकते हैं।