- मोदी राज में आए ‘महंगे’ दिन
- साढ़े पांच साल के शिखर पर खुदरा महंगाई दर
- सरकारी बजट से पहले बिगड़ा आम आदमी का बजट
नई दिल्ली- दिसंबर में खुदरा महंगाई दर के जो आंकड़े आएं हैं। वो चौंका देने वाले हैं। सीएसओ के मुताबिक दिसंबर में खुदरा महंगाई दर बढ़कर 7.35 फीसदी हो गई है। खुदरा महंगाई दर में बढ़ोतरी का सीधा असर आम लोगों पर पड़ता है। SBI की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश इस साल करीब 16 लाख रोजगार के अवसर कम हो जायेंगे। आर्थिक मंदी के बीच बेरोजगारी और महंगाई से देश में स्टैगफ्लेशन का खतरा भी बढ़ गया है।
अर्थव्यवस्था के स्टैगफ्लेशन में जाने का खतरा
देश के सांख्यिकी दफ्तर यानि CSO ने जो नए आंकड़े जारी किए हैं वो आर्थिक मोर्चे पर झटके देने वाले हैं। इन आंकड़ों के मुताबिक खुदरा महंगाई दर उन्हीं स्तरों पर पहुंच गई है। जो 2014 में मोदी सरकार के आने के वक्त थी। जुलाई 2014 में यह दर 7.39 फीसदी थी। अब दिसंबर 2019 में भी ये आंकड़ा 7.35 फीसदी है। यानि महंगाई के मोर्चे पर मोदी सरकार फिर वहीं पहुंच गई है। जहां से उसने शुरुआत की थी।
पिछले 1 साल में ही महंगाई में साढ़े तीन गुना की बढ़ोतरी हो चुकी पिछले पांच महीने का अगर आंकड़ा देंखें तो पाएंगे कि महंगाई दर का ग्राफ लगातार बढ़ा है। जुलाई 2019 में खुदरा मंहगाई दर 3.15 फीसदी थी जो अगस्त में बढ़कर 3.28 फीसदी हो गई।सितंबर में ये आंकड़ा 3.99 फीसदी हो गया। अक्टूबर में 4.62 फीसदी, नवंबर में 5.54 फीसदी और दिसंबर में खुदरा महंगाई दर 7.35 फीसदी पर पहुंच गई।
खुदरा महंगाई बढ़ने से चिंता भी बढ़ी
खुदरा महंगाई दर में बढ़ोतरी आम आदमी खासकर गरीब लोगों की चिंता को बढ़ने वाला है। खुदरा महंगाई दर नापने के लिए जिन चीजों और वस्तुओं को शामिल किया जाता है उनमें ज्यादातर रोजमर्रा के इस्तेमाल की चीजें होती हैं। खुदरा महंगाई दर जनता को सीधे तौर पर प्रभावित करती है।
भारत में खुदरा महंगाई दर में खाद्य और पेय पदार्थ से जुड़ी चीजों, एजुकेशन, कम्युनिकेशन, ट्रांसपोर्टेशन, रीक्रिएशन, अपैरल, हाउसिंग और मेडिकल केयर जैसी सेवाओं की कीमतों में आ रहे बदलावों को शामिल किया जाता है। आप समझ सकते हैं कि खुदरा महंगाई बढ़ने से लोगों की जेब कितनी तेजी से ढीली होना शुरू हो जाती हैं।
यहीं नहीं गरीब आदमी इन चीजों को खरीदने की हालत में नहीं रहता आपको रोजमर्रा की इस्तेमाल होने वाली कुछ चीजों की महंगाई दर दिखाते हैं जो दिसंबर में आसमान छूने लगी हैं। सब्जियों की महंगाई दर रिकॉर्ड तोड़ कर 60.5 फीसदी पहुंच गई है। दालें और उनके उत्पाद 15.44 फीसदी, मांस और मछली में 9.57 फीसदी अनाज और उनके उत्पाद में 4.36 फीसदी अंडे में 8.79 फीसदी, दूध 4.22 फीसदी, फल 4.45 फीसदी, और मसाले में महंगाई दर बढ़कर 5.76 फीसदी पहुंच गई है।
कांग्रेस समेत सभी विपक्षी दलों ने महंगाई बढ़ने पर मोदी सरकार को घेरा है। प्रियंका गांधी ने ट्वीट कर कहा, ‘सब्जियां, खाने पीने की चीजों के दाम आम लोगों की पहुंच से बाहर हो रहे हैं। जब सब्जी, तेल, दाल और आटा महंगा हो जाएगा तो गरीब खाएगा क्या?कांग्रेस ने मोदी सरकार से 30 दिन के अंदर महंगाई कम करने का रोडमैप बताने की मांग की है।
क्या ये महंगाई मौसमी है?
सरकार में शामिल कुछ अर्थशास्त्रीयों का मानना है कि अभी जो खुदरा महंगाई बढ़ी है ये मौसमी घटना है और 2-3 महीने में कम हो जाएगी। उनका मानना है कि खुदरा महंगाई दर अगले तीन महीनों में 6% और इसके बाद के तीन महीनों में 5% तक आ जाएगी। बीजेपी ने कहा है कि महंगाई पर मोदी सरकार से सवाल पूछने वाली कांग्रेस भूल गई कि उसके कार्यकाल में महंगाई कहां थी।
रोजगार के मोर्चे पर भी झटका
आर्थिक मोर्चे पर देश के लिए एक और बुरी खबर ये है कि स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की रिसर्च रिपोर्ट इकोमैप के मुताबिक इस साल यानि 2019-20 में करीब 16 लाख रोजगार के अवसर घटने का अनुमान है। रिपोर्ट के मुताबिक अर्थव्यस्था में सुस्ती की वजह से रोजगार प्रभावित हो रहे हैं। असम, बिहार, राजस्थान, ओडिशा और यूपी में पैसे भेजने में आई कमी से पता चलता है कि बाहर काम करने वाले इन राज्यों के लोगों के कॉन्ट्रैक्ट काम घट रहे हैं।
ईपीएफओ के आंकड़ों के मुताबिक 2018-19 में करीब 90 लाख रोजगार बढ़े थे लेकिन 2019-20 में इसमें करीब 16 लाख की कमी आ सकती है। एनपीएस यानि नेशनल पेंशन स्कीम के तहत आने वाली स्थाई सरकारी और प्राइवेट नौकरियों में भी इस साल 39 हजार अवसर कम होने का अनुमान है। कुछ रिपोर्टस के मुताबिक बेरोजगारी इस वक्त 45 साल में सबसे अधिक है। इसका एक और बुरा पहलू भी है। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक 2018 में आत्महत्या करने वालों में 12 हजार से ज्यादा लोग बेरोजगारी से परेशान थे।
स्टैगफ्लेशन का खतरा
ऊंची महंगाई दर , बेरोजगारी में बढ़ोतरी, आर्थिक मंदी यानी चीजों की मांग घटने को स्टैगफ्लेशन कहते हैं। जहां तक देश की जीडीपी ग्रोथ का सवाल है तो ये जुलाई-सितंबर तिमाही में घटकर सिर्फ 4.5% रह गई है। केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय का अनुमान है कि 2019-20 में ग्रोथ सिर्फ 5% रहेगी। ऐसा हुआ तो यह 11 साल में सबसे कम होगी। इससे कम 3.1% ग्रोथ 2008-09 में दर्ज की गई थी। उस वक्त दुनियाभर में मंदी आई थी। एक्सपर्ट का मानना है कि सरकार ने वक्त पर ध्यान नहीं दिया तो महंगाई दर, बेरोजगारी और आर्थिक मंदी की मार से देश स्टैगफ्लेशन में जा सकता है। जो देश की अर्तव्यवस्था के लिए घातक हो सकता है।