जनतंत्र डेस्क, Ladakh: लद्दाख चुनौतीपूर्ण मौसम के बावजूद अपनी संस्कृति को संजोए हुए है। यहां कड़ाके की ठंड में भी प्रसिद्ध फेस्टिवल ‘स्पिटुक गस्टर’ जोरों शोरों से शुरू किया गया। इस रंगारंग कार्यक्रम को देखने हजारों लोग उमड़े। फेस्टिवल में मुख्य आकर्षण रंगीन मुखौटा नृत्य था।
इस पारंपरिक मुखौटा नृत्य को स्थानीय रूप से मठ के भिक्षुओं ने प्रस्तुत किया। कलाकारों ने महाकाल (गोंबो), पलदान ल्हामो (श्रीदेवी), सफेद महाकाल, रक्षक देवता जैसे विभिन्न देवताओं का चित्रण किया।
लद्दाख की संस्कृति और पारंपरिक विरासत का वार्षिक उत्सव ‘स्पिटुक गस्टर’ यह फेस्टिवल ‘स्पिटुक मठ में शुरू हुआ। जो लेह से 8 किलोमीटर दूर है। फेस्टिवल का उद्देश्य समाज में शांति, समृद्धि और सद्भाव लाना है। इस मौके पर बौद्ध धर्म गुरूओं ने विश्व शांति के लिए प्रार्थना की।
खास है मुखौटा नृत्य
बौद्ध भिक्षुओं के मुताबिक, फेस्टिवल के मुख्य आकर्षण मुखौटा नृत्य का रिहर्सल हफ्तों पहले ही शुरू हो जाता है। इसके अलावा त्यौंहार के 7 सात दिन पहले प्रार्थना भी शुरू हो जाती है। मान्यता है कि इस त्योहार के बाद कड़ाके की सर्दी का मौसम गर्म और सुहावना होने लगता है।