जनतंत्र डेस्क, नई दिल्ली: प्रकृति ने हमें कितना कुछ दिया है। वो भी बिना किसी शर्त, बिना किसी कीमत। प्रकृति को हम जितना भी थैंक्स कहें वह कम ही रहेगा। अगर हम कुछ कर सकते हैं तो वो है नेचर का ख्याल रखना। जिसे बेंगलुरू के आनंद मल्लिगावड बखूबी कर रहे हैं। प्रकृति के लिए आनंद का प्यार और त्याग ऐसा था कि उन्होंने अपनी इंजीनियर की नौकरी भी छोड़ दी और जुट गए नेचर की सेवा में…
कोई उन्हें झील संरक्षणवादी कहता है तो कोई वॉटर हिरो…मैकेनिकल इंजीनियर आनंद मल्लिगावड ने बेंगलुरु में मरती हुई झीलों को पुनर्जीवित करने के लिए अपनी नौकरी छोड़ दी। आनंद ने ऐसी झीलों को जिंदा करने की ठानी जो दम तोड़ चुकी थी। बेंगलुरू में आनंद ने 12 झीलों का कायाकल्प कर उन्हें फिर से जिंदगी दे दी। आनंद कहते हैं, “तेजी से शहरीकरण के कारण, बेंगलुरु ने अधिकांश जल निकायों को बुनियादी ढांचा परियोजनाओं में खो दिया गया। आनंद लगातार झीलों के लिए काम कर रहे हैं।
कैसे हुई शुरूआत
आनंद कहते हैं, उन्होंने एक साल तक बेंगलुरु में 180 झीलों की बेहतर समझ के लिए उनका दौरा किया। उनका मरता देख आनंद ने ऐसा तरीका निकाला जो कम समय लेने वाला, कम खर्चीला और टिकाऊ था। 2016 में, Sansera Engineering के साथ काम करते हुए, बेंगलुरू के कई लोगों की तरह, मल्लिगावड को पता चला कि उनके शहर में जल्द ही पानी खत्म हो जाएगा।
‘जो कभी झीले हुआ करती थीं’
आनंद कहते हैं, ‘’मैंने बेंगलुरु की झीलों के बारे में अधिक अध्ययन करना शुरू किया और हम इस बिंदु तक कैसे पहुंचे। मुझे पता चला कि एक समय बेंगलुरु में करीब 1000 झीलें थीं और उनमें से कई नष्ट हो गई हैं। मुझे ये भी पता था कि, बेंगलुरु की कई प्रमुख बुनियादी ढांचा परियोजनाएं जैसे मैजेस्टिक बस स्टैंड, हॉकी स्टेडियम आदि उस जमीन पर बने हैं जो कभी झील हुआ करती थी।” इसलिए मैंने तय किया कि मैं मूल कारण पर काम करूंगा, जो कि बेंगलुरु के मामले में झीलें हैं। अगले कुछ महीनों में, मैंने झीलों की संरचना, आकार, मिट्टी की स्थिति, स्थलाकृति, पारिस्थितिकी तंत्र, झीलों के अंतर- जुड़ा, आदि। मैंने इसके लिए एक साल में लगभग 180 झीलों का दौरा किया।”
आनंद ने झीलों को बचाने और उन्हें नई जिंदगी देने का जो प्रण लिया था उसमें वह कामयाब हो रहे हैं। झीलों को बचाने के लिए उनका प्रयास लगातार जारी है।