नई दिल्ली : भारत में आरक्षण (Reservation In India) को लेकर तमाम तरह की बहस होती रहती है। कई लोग आरक्षण को जहाँ प्रतिभाओं का हनन मानते हैं, वहीं कई लोग इस व्यवस्था को सामजिक बराबरी का अभिन्न अस्त्र, जिससे पिछड़ों को अगड़ों से समान्तर आने का मौका मिल सके। आरक्षण को लेकर वोट बैंक की राजनीति (Politics On Resrvation) भी चुनाव के समय चरम पर रहती है। इसी बीच सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने आरक्षण पर बड़ी टिप्पणी करते हुए कहा है कि आरक्षण मौलिक अधिकार (Fundamental Rights) नहीं है। माना जा रहा है कि सर्वोच्च न्यायालय के इस टिप्पणी के बाद एक बार फिर से आरक्षण को लेकर बहस छिड़ सकती है।
Reservation In India : तमिलनाडु की राजनीतिक पार्टियों ने दायर की थी याचिका
दरअसल सुप्रीम कोर्ट में तमिलनाडु (Tamilnadu) की तकरीबन सभी राजनीतिक पार्टी, सत्तारूढ़ AIADMK, विपक्षी दल DMK, MDMK से वाइको, TN कांग्रेस समिति, CPI और CPM और PMK से अंबुमणि रामदास की तरफ से एक याचिका दाखिल की गई थी, जिसमें स्नातक, पीजी और डिप्लोमा मेडिकल सीटों में OBC वर्ग के लिए राज्य कानून के अनुसार 50 प्रतिशत आरक्षण की मांग की थी, जिसपर सुनवाई से सुप्रीम कोर्ट ने इंकार कर दिया।
राज्य सरकार के फैसले पर केंद्र सरकार ने लगा रखी है रोक
दरअसल राज्य की तमाम राजनीतिक पार्टियां जहाँ स्नातक, पीजी और डिप्लोमा मेडिकल सीटों में OBC वर्ग के लिए राज्य कानून के अनुसार 50 प्रतिशत आरक्षण लागू किये जाने के पक्ष में है, वहीं केंद्र ने इस पर रोक लगा रखी है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि राज्य में आरक्षण देने से अखिल भारतीय कोटा के लिए सीटों को मंजूरी ना देना असंवैधानिक है। यह संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन करता है और संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 16 के खिलाफ है।
सुप्रीम कोर्ट ने दिए हाईकोर्ट में सुनवाई के निर्देश
हालाँकि सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम इस याचिका को ख़ारिज नहीं कर रहे हैं, बल्कि आप इस याचिका को लेकर मद्रास हाईकोर्ट जाइये, जहाँ इस मामले की सुनवाई होगी। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम मानते हैं कि आप सभी तमिलनाडु के नागरिकों के मौलिक अधिकारों में रूचि रखते हैं, लेकिन आरक्षण कोई मौलिक अधिकार नहीं है।