Supreme Court : एक नागरिक की आजादी सर्वोपरि है और उससे जुड़े मामले में तेजी से निर्णय न करना व्यक्ति को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मिले बहुमूल्य अधिकार से वंचित करेगा। सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की। शीर्ष न्यायालय ने अनुच्छेद-21 को जीवन और व्यक्तिगत आजादी की सुरक्षा से जुड़े अनुच्छेद-21 को संविधान की आत्मा बताया। अदालत ने कहा कि बंबई उच्च न्यायालय से ऐसे कई मामले सामने आए हैं, जहां जमानत या अग्रिम जमानत के आवेदनों पर तेजी से फैसला नहीं किया जा रहा है।
मामलों को दबाने के लिए बहाने ढूंढ रहे हैं
न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ सुनवाई कर रही थी। पीठ ने अपने 16 फरवरी के आदेश में कहा था कि हमारे सामने ऐसे कई मामले आए हैं जिनमें न्यायाधीश गुण-दोष के आधार पर मामले पर फैसला नहीं कर रहे हैं। लेकिन, कई आधारों पर मामलों को दबाने के लिए बहाने ढूंढ रहे हैं। इसलिए, हम बंबई उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से अनुरोध करते हैं कि वह आपराधिक अधिकार क्षेत्र का उपयोग करने वाले सभी न्यायाधीशों से जल्द से जल्द जमानत से जुड़े मामले पर फैसला करने का अनुरोध करें।
पीठ ने क्या कहा?
पीठ ने कहा कि यह कहने की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए कि भारत के संविधान का अनुच्छेद-21 संविधान की आत्मा है। नागरिकों की आजादी सर्वोपरि है। इसमें कहा गया है कि किसी नागरिक की आजादी से जुड़े मामले में तेजी से फैसला न करना और किसी न किसी आधार पर मामले को दबाना भारत के संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत गारंटीकृत उनके बहुमूल्य अधिकार से वंचित करेगा। पीठ ने सर्वोच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार (न्यायिक) से कहा कि वह उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार (न्यायिक) को अपने आदेश से अवगत कराए।
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