पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एक बार फिर बीजेपी के विरोध के लिए एकला चलों की राह पकड़ी है …दरअसल ये उम्मीद की जा रही थी कि बीजेपी के विरोध में समूचा विपक्ष एकजुट होकर आगे बढ़ेगा लेकिन ममता बनर्जी ने कांग्रेस सहित पूरे विपक्ष को बड़ा झटका दे दिया है…दरअसल उन्होने साफ कर दिया है सकि वो दिल्ली में 13 जनवरी को होने वाली विपक्षी दलों की गेालबंदी का हिस्सा नहीं होंगी और उसका बहिष्कार करेंगी
आखिर ममता भी बीजेपी के विरोध में हैं और विपक्ष भी …फिर दो धड़े क्यों …तो ममता के इस विरोध की वजह है कांग्रेस और वामदलों की बढ़ती नजदीकियां…क्योंकि वाम दलों के खिलाफ ही मिशन चलाकर ममता ने अपनी सियासी जमीन तैयार की…तो अब ममता उनके साथ मंच कैसे साझा करेंगी…वो भी तब जबकि अगले ही साल बंगाल में विधानसभा चुनाव है….जहां लेफ्ट टीएमसी सियासी विरोधी है।
यही वजह है कि बीते दिनों जब कांग्रेस और लेफ्ट समर्थित भारत बंद पर बंगाल में बंदी हुई तो ममता ने इसे गंदी राजनीति करार दिया..यानि साफ है कि लेफ्ट और कांग्रेस का ये गठजोड़ दीदी को बर्दाश्त नहीं….लिहाजा उन्होने साफ कर दिया है कि वो CAA, NRC जैसे मुद्दों पर अपनी जंग अकेले ही लड़ेंगी…ममता का ये स्टैंड कई मायनों में खास है…क्योंकि वो शायद अकेली सीएम हैं जिन्होने केन्द्र के फैसलों के खिलाफ अकेले ही मोर्चा संभाल रखा है…और वो शायद अब अपने संघर्ष में किसी को भी भागीदार नहीं बनाना चाहती कि वो उनकी मोर्चेबंदी का कोई सियासी फायदा ले सके । ये ममता का अपना सियासी स्टाइल है ..कई बार वो सियासी पंडितों के लिए भी बेहद ही Unpredicable साबित होती हैं
पश्चिम बंगाल की इस फायरब्रांड नेता का करियर बीते 3 दशकों के दौरान काफी उतर चढ़ाव से गुजरा और उतना ही इंट्रेस्टिंग भी रहा..जिस तरह से ममता बनर्जी ने लोगों के बीच अपनी पैठ बनाई है चाहे आप बांग्लाभाषी हों या नहीं, चाहे आप ममता समर्थक हो या नहीं लेकिन फिर भी आप उन्हें अनदेखा नहीं कर सकते..अब जबकि ममता बनर्जी मुख्यमंत्री के तौर पर अपना दूसरा टर्म पूरा कर रही हैं उनका मानना है कि वो उनके विरोधियों से बंगाल में सड़कों पर लोगों के बीच जा कर अपने विरोधियों से लड़ेंगी और उन्हें हराएंगी भी…एक छात्र नेता से शुरू हुए दीदी के इस सफर में उन्होंने उस वक्त भी ‘एकला चलो रे’ की राह पकड़ी थी…और आज भी वो उसी राह पर कदम बढ़ा रही हैं
दिलचस्प ये भी है कि दशकों तक राज्य में सत्ताधारी वामदलों से लोहा लेती रहीं ममता बनर्जी राज्य में वाम दलों और कांग्रेस के पुराने वोट बैंक पर अपनी छाप छोड़ने में खासी कामयाब रही हैं लिहाजा आज वो कांग्रेस के साथ जाने में ज्यादा दिलचस्पी नहीं ले रही हैं …बात अगर राज्य के सियासी गणित की करें तो मुस्लिम, अनुसूचित जाति और जनजाति मिलाकर कुल 53% वोट हैं और ममता पर इनको लेकर ‘थोड़ा नरम रहने’ के आरोप भी लगते रहे हैं..हालांकि इस बात में कोई दो राय नहीं कि तीसरी बार ममता की राह आसान नहीं रहने वाली…इस बार उनके सामने चुनौतियां भी कम नहीं हैं…विकास के दावों पर सवाल…सांप्रदायिक हिंसा..चुनावी हिंसा..राज्यपाल से टकराव..केन्द्र का विरोध जैसी कई चुनौतियों से गुजरते हुए ममता को रायटर्स बिल्डिंग की राह बनानी है।
हालांकि इन सबके बीच ममता की प्रशासनिक पकड़ उनके लिए प्लस प्वाइंट साबित हो सकती है ..हालत ये है कि किसी भी विवादित मुद्दे, घटना या दुर्घटना पर राय देने से पहले राज्य के आला अफ़सर, तृणमूल नेता या मंत्री पहले उन्ही की तरफ़ देखते हैं…हालांकि ये भी बड़ा फैक्ट है कि मौजूदा हालात में तो ममता को इसका फ़ायदा मिलता है लेकिन इसका दूरगामी असर नहीं होगा ये देखना होगा।
अब जबकि बंगाल में अगले साल ही चुनावी जंग होनी है लिहाजा बंगाल में अब सब कुछ चुनावी ही है ….हर कदम हर फैसला चुनावी कसौटी पर ही कसा जा रहा है ..खासकर जब टक्कर त्रिकोणीय होने वाली हो…क्योंकि हर दल का दावा है कि बंगाल में उनका बेस बढ़ा है..टीएमसी कहती है कि 2016 में उसका बेस मजबूत हुआ ..और 2019 के लोकसभा चुनाव में तो बढ़कर 43.3 फीसदी तक जा पहुंचा…हां ये जरूर हुआ कि लेफ्ट और कांग्रेस का वोट बीजेपी के साथ चला गया…वहीं बीजेपी भी लगातार अपनी स्थिति मजबूत बता रही है..लिहाजा इस समय टीएमसी की सबसे बड़ी चिंता बीजेपी को मिले 30 प्रतिशत हिंदू वोटों को अपनी ओर लाने की है ।
ममता बनर्जी के लिए अगले चुनाव से पहले हालात करो या मरो जैसे हैं क्योंकि मुस्लिमों के सबसे बड़े चेहरे के रूप में उभर रहे असदुद्दीन ओवैसी बंगाल चुनाव में उतरने की घोषणा कर चुके हैं. उनके आने से ममता बनर्जी को मिलने वाले मुस्लिम वोट में सेंध लग सकती है…क्योंकि पश्चिम बंगाल में 31 फीसदी मुस्लिम वोटर्स हैं. राज्य की राजनीति में किसी भी पार्टी के लिए ये वोटर सबसे अहम रहे हैं. 2011 में ममता बनर्जी के सत्ता में आने से पहले ये लेफ्ट की सत्ता का आधार रहे थे. ममता बनर्जी ये बात अच्छी तरह जानती हैं कि मुस्लिम वोट बैंक में किसी भी तरह का विभाजन 2021 के उनके सपने को तोड़ सकता है. राज्य की 294 विधानसभा सीटों में 90 सीटें ऐसी हैं जहां पर मुस्लिम वोटर्स निर्णायक भूमिका में हैं. ऐसे में ममता बनर्जी इस वोट बैंक को किसी भी कीमत पर बंटने नहीं देंगी ।
वहीं साथ ही साथ ममता का ध्यान हिंदू वोटर्स पर भी टिका है …यही वजह है कि आजकल वो अपनी रैलियों में श्लोक भी पढती हैं और दुर्गा-काली की स्तुति भी गाती हैं..कुल मिलाकर ममता तीसरी बार बंगाल पर राज के लिए हर पैंतरा अपना रही हैं लेकिन राह मुश्किल ही नजर आ रही है..एक तरफ केन्द्र की सत्ता में बैठी बीजेपी की चुनौती है तो वहीं कांग्रेस और लेफ्ट से गढ़ को बचाए रखना भी ममता के लिए बड़ा चैलेंज है लेकिन दीदी हैं कि वो अपने रुख पर जरा भी नरम पड़ने को तैयार नहीं..फिलहाल 2021 का इंतजार है कि रायटर्स बिल्डिंग पर तृणमूल कांग्रेस का कब्जा बरकरार रहता है या नहीं…लेकिन उसके पहले बंगाल को अभी बहुत सियासी दांवपेंचों से गुजरना है।
- वासिन्द्र मिश्र