PM MODI US VISIT : अमेरिकी दौरे पर गए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वहां के राष्ट्रपति जो बाइडेन और वहा की फर्स्ट लेडी को अपनी ओर से कई तोहफे दिए, जिनकी खूब चर्चा की जा रही है. खुद बाइडेन ने पीएम मोदी को बहुत से उपहार देकर सम्मानित किया, जिसमें अमेरिकी विंटेज कैमरा भी शामिल है. लेकिन तोहफा चाहे कितना ही खूबसूरत क्यो ना हो, क्या ये दोनों ही लीडर उन तौहफो को रख सकेंगे अपने पास? जानिए, क्या कहता है डिप्लोमेसी का निय म ?
मोदी अपनी स्टेट विजिट के दौरान व्हाइट हाउस भी पहुंचे. राजकीय भोज से पहले उनके और अमेरिकी राष्ट्रपति के बीच तोहफों का लेन-देन हुआ. एक से बढ़कर एक ये गिफ्ट्स सुर्खियों में बने हुए हैं,
आखिर क्या है गिफ्ट डिप्लोमेसी ?
दो देशों के बीच तोहफों का लेन-देन काफी पुराना है. ये उनके बीच की दोस्ती का प्रतीक है. पहले दो देशों के बीच गिफ्ट्स देना या स्वीकार करना वर्जित था. माना जाता था कि इससे गिफ्ट लेने वाले को हरदम देने वाले से दबकर रहना होता हे, सभी देश मानने लगे कि तोहफों के लेनदेन से रिश्ते मजबूत होते हैं
क्यूं बरतनी पड़ती है सावधानी?
तोहफे दिये तो अच्छे इरादे से जाते है, लेकिन लेने वाले को कई बार पसंद नहीं आता. निजी रिश्तों में इससे कोई खास फर्क नहीं पड़ता, लेकिन दो देशों के बीच गलत तोहफा, गलत संदेश देता है. अगर दो देशों के बीच पहले से तनाव चला आ रहा हो, तब इससे और दूरी आ सकती है साल 2012 में अमेरिकी राष्ट्रपति को ब्रिटिश टेबल टेनिस दी गई. बाद में पता लगा कि ये मेड-इन-चाइना थी. जाहिर है, कि गिफ्ट की अहमियत उसी समय कम हो गई थी।
आखिर क्या होता है गिफ्टस के साथ
विदेशी दौरे से लौटने के महीनेभर के भीतर तोहफे को मिनिस्ट्री ऑफ एक्सटर्नल अफेयर्स को देना होता है, 5 हजार से कम कीमत का उपहार तो अपने पास रखा जा सकता है, अगर कीमत इससे ज्यादा होती हे तो उसे अपने पास नहीं रख सकते। क्योंकि कोई भी देश किसी व्यक्ति को गिफ्ट नहीं देता, बल्कि उसके ओहदे को देता है. तो ये तोहफे असल में देश के ही होते हैं, यही वजह है कि उन्हें अपने पास नहीं रख सकते।