नई दिल्ली- इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम यानी चमकी बुखार से सिर्फ भारत में बच्चों की जान नहीं जा रही है, बल्कि इसकी जद में एशिया के साथ विश्व के 24 देश शामिल हैं। WHO के आंकड़े बताते हैं कि 24 देशों के करीब 300 करोड़ लोगों पर इस संक्रमण का खतरा रहता है। भारत में पूर्वी उत्तर प्रदेश के साथ बिहार में इसका प्रकोप ज्यादा देखने को मिल रहा है।
8 सालों में 11254 लोगों की मौत
एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम यानी चमकी बुखार से सिर्फ भारत में बच्चों की जान नहीं जा रही है बल्कि इसकी जद में दक्षिण-पश्चिम एशिया और पश्चिमी प्रशांत के 24 देश आते हैं। WHO की माने तो इन 24 देशों के करीब 300 करोड़ लोगों पर इसके संक्रमण का खतरा बना रहता है। भारत में 2011 से अब तक आठ सालों में इंसेफेलाइटिस के 91 हजार 968 मामले सामने आ चुके हैं। इन आठ सालों में चमकी से 11254 लोगों की मौत हो चुकी है, जिसमें 99% 15 साल से कम उम्र के बच्चे थे।
दिलदहला देने वाले आंकड़े
महज 8 साल में देश में चमकी बुखार से 11 हजार से ज्यादा लोग मौत की नींद सो चुके हैं और इसका सबसे ज्यादा असर 15 साल से छोटे मासूम बच्चों पर है। हालांकि, देश के करीब 20 राज्यों में 178 जिलों में एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम और जैपेनीज इंसेफेलाइटिस का प्रकोप करीब-करीब हर साल ही देखने को मिलता है। 20 राज्यों में आंध्र प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, असम, बिहार, दिल्ली, गोवा, हरियाणा, झारखंड, कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र, मणिपुर, मेघालय, नगालैंड, पंजाब, त्रिपुरा, तमिलनाडु उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल शामिल हैं।
हर साल 13 हजार से ज्यादा बच्चों की मौत
बता दें कि एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम किन कारणों से होता है, इसका जवाब पुख्ता रूप से किसी के पास नहीं है। हालांकि, पिछली कुछ रिसर्च में ये पाया गया है कि क्यूलेक्स मच्छरों की वजह से बच्चे इसके शिकार बनते हैं। WHO की रिपोर्ट के अनुसार, इसकी वजह से हर साल दुनिया के 24 देशों में 13 हजार से 20 हजार बच्चों की मौत हो जाती है।
चमकी के लक्षण
चमकी बुखार 15 साल से छोटे बच्चों को सबसे पहले अपनी जद में लेता है। वहीं, अगर बात लक्षणों की करें, तो इस बुखार में बच्चे को लगातार तेज बुखार चढ़ता है और साथ ही बदन में ऐंठन होती है। बच्चे दांत पर दांत चढ़ाए रहते हैं और बार-बार बेहोश हो जाते हैं। बताते चलें कि इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम का अब तक कोई स्थाई समाधान नहीं निकाला जा सका है और यही कारण है कि हर साल भारत ही नहीं बल्कि वर्ल्ड में हजारों की संख्या में मासूम बच्चों की मौत हो रही है, लेकिन इन मौतों को रोकने के लिए कोई भी कदम कारगर साबित नहीं हो रहा है।