रश्मि सिंह|Vasundhara Raje: राजस्थान के मुख्यमंत्री का ऐलान हो गया है। बीजेपी ने एक बार फिर से चौंकाने वाला ऐलान किया है। इससे पहले पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे 2 बार राजस्थान की सीएम बनी थी। लेकिन इस बार मोदी-शाह के दबाव के चलते उन्हें पीछे हटना पड़ा। आइए मेरे साथ जानिए वो पांच कारण जिसके वजह से वसुंधरा सीएम की रेस से बाहर हुई है।
नई लीडर शिप है वजह
आपको बता दें कि, पार्टी सारे बड़े दिग्गज शुरु से ही यह कहते आए है कि इस बार का चुनाव कमल और पीएम मोदी के चेहरे पर लड़ा जाएगा। ऐसे में वसुंधरा कई बार दिल्ली जाकर पार्टी के बड़े नेताओं से मिली लेकिन उनको पार्टी ने यह बताने से इंकार कर दिया कि चुनाव में उनकी क्या भूमिका होगी। यानी हर बार उन्हें पार्टी ने यह संकेत दिया कि आप इस बार पार्टी के सीएम कैंडिडेट नहीं होंगे। इसके बावजूद वसुंधरा हरी झंडी मिलने का इंतजार करती रही। रिपोर्ट की मानें तो पार्टी अब राज्यों के सीनियर नेताओं को केंद्र में लाकर राज्य में नई लीडरशिप तैयार करना चाहती है इसी क्रम में छत्तीसगढ़ और राजस्थान में नए सीएम बने है।
2018 में हार की वजह
बचा दें कि, पार्टी ने 2018 में वसुंधरा को सीएम फेस बनाकर चुनाव लड़ी थी। लेकिन पार्टी चुनाव में 163 सीटों से 72 पर सिमट गई। इस दोरान प्रदेश की सियासी फिजाओं में एक ही नारा गुंजता था वसुंधरा तेरी खैर नहीं, मोदी तुझसे बैर नहीं। यानी लोगों का स्पष्ट संदेश था कि पार्टी वसुंधरा को सीएम के पद से उतारकर किसी अन्य को चेहरा बनाए।
सीएम गहलोत से करीबी ले डूबी
दरअसल, राजस्थान की राजनीति में वसुंधरा और गहलोत का सियासी मेल मिलाप हर समय चर्चा में रहता है। पिछले दिनों सीएम गहलोत ने धौलपुर की एक रैली में कहा था कि वसुंधरा और कैलाश मेघवाल की वजह से उनकी सरकार जाने से बच गई। हालांकि जब गहलोत सत्ता में होते हैं तो वे वसुंधरा सरकार के दौरान हुए भ्रष्टाचार पर कोई एक्शन नहीं लेते हैं। वहीं जब वसुंधरा सत्ता में होती है तो वे गहलोत सरकार के भ्रष्टाचार पर कोई एक्शन नहीं लेती थी। देश में दो विरोधी दलों के शीर्ष नेताओं में ऐसा गठजोड़ कहीं नहीं देखा गया।
2018 में हार के बाद सिनेरियो से गायब है वजह
बता दें कि, वसुंधरा के सीएम की रेस से बाहर होने का एक महत्वपूर्ण कारण उनकी निष्क्रियता भी है। वसुंधरा पार्टी के सत्ता से बाहर होते ही एकदम निष्क्रिय हो जाती है। वे कभी भी किसी भी सार्वजनिक कार्यक्रमों में नहीं जाती, ना ही पार्टी के विरोध कार्यक्रमों का हिस्सा लेती है। इसकी बानगी मार्च में प्रदेश सरकार के खिलाफ हुए प्रदर्शन के दौरान देखने को मिला। वो हमेशा ही पार्टी के विरोध में कार्य करती है। एक उदाहरण यह है जब पार्टी ने 8 मार्च को महिला दिवस पर विधानसभा के सामने विशाल धरना प्रदर्शन का आयोजन किया था। जिसमें सभी विधायकों को पहुंचने के लिए कहा गया था। इस में ना जाकर वसुंधरा ने इस दिन चूरू के सालासर बालाजी में अपने जन्मदिन पर शक्ति प्रदर्शन किया जिसमें 57 से ज्यादा विधायक भी पहुंचे थे।
भाजपा के रिवाज बदलने में बनी रोड़ा
आपको बता दें कि, वसुंधरा अटल-आडवाणी के समय की नेता है, उस समय पार्टी हिंदी भाषी राज्यों तक सीमित हुआ करती थी। भैंरोसिंह शेखावत से नजदीकी होने के कारण उन्हें राजनीति में उतरने का मौका मिला और इसके बाद वे लगातार सीएम बनती गई। 2014 में जब से भाजपा की सरकार बनी है पार्टी सभी राज्य इकाइयों में लगातार बदलाव कर रही है। उसी का नतीजा है कि वसुंधरा अब प्रदेश में सीएम की रेस से बाहर हो गई है। इसके अलावा कई मौकों पर उनकी आलाकमान से ठन भी गई। 2018 में हार के बाद मदनलाल सैनी प्रदेश अध्यक्ष बनाए गए। पद पर रहते हुए उनका देहांत हो गया। इसके बाद करीब 2 महीने तक पार्टी नया अध्यक्ष नहीं बना पाई। वजह थी वसुंधरा राजे क्योंकि वसुंधरा अपनी पसंद का अध्यक्ष चाहती थी। ऐसे में पार्टी ने सतीश पूनिया को पार्टी का अध्यक्ष बनाया। हालांकि उनके साथ भी वसुंधरा के रिश्ते कभी सहज नहीं रहे।
सीएम रहते खास कमाल नहीं दिखा पाई
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि, राजस्थान में वसुंधरा 2003-2008 और 2013-2018 तक सीएम रही थी। इस कार्यकाल के दौरान पार्टी ऐसी कोई खास रणनीति नहीं बना पाई जिससे वो पुनः सत्ता में वापसी सुनिश्चित कर सके। वहीं राज परिवार से होने के कारण और अन्य कारणों के चलते वह जनता के कभी करीब नहीं हो पाई। अक्सर ऐसी शिकायतें सुनने को मिलती थी कि वसुंधरा लोगों के लिए आसानी से उपलब्ध नहीं है। ऐसे में पार्टी के बड़े-बड़े नेताओं ने उन्हें सीएम उम्मीदवार के तौर पर कभी पहली पसंद में नहीं रखा। वहीं एक और जरुरी कारण 2023 चुनावों के बाद बाड़ेबंदी भी है। हालांकि उसका खंडन एक विधायक ने किया था। इसके बाद लगातार उनका अपने समर्थक विधायकों से मिलना भी एक कारण था।