नई दिल्ली: UP Government: दस अगस्त को उच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार उच्च न्यायालय से बिना मंजूरी के सांसदों के खिलाफ अभियोजन वापस लेने के लिए राज्य अभियोजकों के अधिकार को कम कर दिया था। साथ ही केंद्र और सीबीआई एजेंसियों के द्वारा रिपोर्ट दाखिल नहीं करने पर कड़ी नाराजगी व्यक्त की गयी थी। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी संकेत दिया कि वह राजनेताओं के खिलाफ आपराधिक मामलों की निगरानी के लिए अदालत में एक विशेष पीठ का गठन करेगी।
दरअसल, उत्तर प्रदेश सरकार ने 2013 के मुजफ्फरनगर दंगे से संबंधित 77 मामलों को वापस ले लिया है, जो आजीवन कारावास की सजा से संबंधित थे। यह जानकारी सुप्रीम कोर्ट को मंगलवार को इस मामले में सांसदों और विधायकों के खिलाफ दर्ज मामलों का जल्द निपटारा किए जाने का आग्रह करने से संबंधित मामले में अदालत मित्र के रूप में नियुक्त किए गए वरिष्ठ कॉन्सेक विजय हंसारिया ने दी।
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बता दें, मामले में वरिष्ठ वकील विजय हंसरिया ने कहा कि 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों से संबंधित कुल 510 मामले दर्ज किये गए थे, जिनमें पांच जिलों के 6,869 आरोपियों के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कि गयी थी। इन 510 मामलों में से 175 आरोपियो के खिलाफ मामलों के आरोप पत्र दायर किए गए थे, जबकि 165 मामलों में सिर्फ अंतिम रिपोर्ट जमा की गई थी, और 170 मामलों को हटा दिया गया था।
विजय हंसारिया ने आगे कहा कि जनहित में धारा 321 CRPF के तहत अभियोजन से वापसी की अनुमति है। इस तरह के आवेदन में, सार्वजनिक नीति और न्याय के हित में किए जा सकते हैं। एमिकस क्यूरी (न्याय मित्र) ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि राजनीतिक और बाहरी कारणों से मामलों को वापस लेने में राज्य द्वारा सत्ता के बार-बार दुरुपयोग को देखते हुए, अदालत पहले से निर्धारित दिशानिर्देशों के अलावा कुछ निर्देश जारी कर सकती है।