अदालतों के कामकाज में आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस की भूमिका
आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस (AI) आज आधुनिक समाज के लगभग हर क्षेत्र में बदलाव ला रहा है, और न्याय व्यवस्था भी इससे अछूती नहीं रही है। दुनियाभर में अदालतें मामलों के बढ़ते बोझ, जटिल कानूनी प्रक्रियाओं और सीमित संसाधनों का सामना कर रही हैं। ऐसे समय में AI न्याय प्रणाली के लिए एक महत्वपूर्ण सहायक तकनीक बनकर उभरा है। यह तकनीक न्यायाधीशों, वकीलों और प्रशासनिक कर्मचारियों को तेज़, सटीक और संगठित तरीके से काम करने में मदद कर रही है। हालांकि AI अभी भी एक उपकरण ही है, निर्णय लेने का अधिकार इंसानों के पास ही रहता है, लेकिन इसके द्वारा न्यायिक दक्षता और सुविधा दोनों में उल्लेखनीय सुधार हो रहा है।
पहला महत्वपूर्ण क्षेत्र जिसमें AI बड़ी भूमिका निभा रहा है, वह है केस मैनेजमेंट। अदालतों में अक्सर लाखों मामलों का बैकलॉग होता है और हर केस की सुनवाई प्रक्रिया जटिल और लंबी होती है। AI आधारित केस मैनेजमेंट सिस्टम मामलों को उनकी प्रकृति, गंभीरता और प्राथमिकता के आधार पर वर्गीकृत कर सकते हैं। ये सिस्टम सुनवाई की तिथियों का निर्धारण, दस्तावेज़ों का व्यवस्थितकरण और वकीलों व न्यायाधीशों को महत्वपूर्ण सूचनाएँ भेजने जैसे प्रशासनिक कार्यों को स्वचालित करते हैं। इससे अदालतों का बोझ कम होता है और न्यायिक प्रक्रिया अधिक व्यवस्थित होती है।
दूसरा क्षेत्र है कानूनी अनुसंधान (Legal Research)। किसी भी केस में फैसला देने से पहले न्यायाधीशों और वकीलों को कई पुराने फैसलों, कानूनों और मिसालों का अध्ययन करना पड़ता है। यह कार्य समय लेने वाला और मेहनत वाला होता है। AI इस प्रक्रिया को काफी तेज़ और सरल बनाता है। AI टूल्स कुछ ही मिनटों में संबंधित केस लॉ, धाराएँ और न्यायालय के पूर्व निर्णय खोज लेते हैं। इससे शोध की गुणवत्ता बढ़ती है और कानूनी पेशेवरों को बेहतर और सटीक तर्क प्रस्तुत करने में मदद मिलती है।
तीसरा क्षेत्र जिसमें AI अहम योगदान दे रहा है, वह है दस्तावेज़ विश्लेषण (Document Analysis)। अदालतों में आने वाले दस्तावेज़ अक्सर सैकड़ों या हजारों पन्नों के होते हैं, जिन्हें पढ़ना और समझना समयसाध्य होता है। AI आधारित सॉफ्टवेयर दस्तावेज़ों को स्कैन करके महत्वपूर्ण तथ्य निकालते हैं, विरोधाभासों को चिन्हित करते हैं और संवेदनशील जानकारी को हाइलाइट करते हैं। इससे न्यायाधीशों को केस की बारीकियों को समझने में मदद मिलती है और किसी भी गलती या भ्रम की संभावना कम होती है।
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कोविड-19 महामारी के बाद वर्चुअल सुनवाई (Virtual Hearing) और ऑनलाइन विवाद समाधान (ODR) का विस्तार हुआ है, जिसमें AI की भूमिका अत्यधिक महत्व की बन गई है। कई कोर्ट AI आधारित सिस्टम का उपयोग करके सुनवाई का रियल-टाइम ट्रांसक्रिप्शन तैयार करती हैं। कुछ ऑनलाइन विवाद निपटान प्लेटफ़ॉर्म AI का उपयोग मामलों को विश्लेषित करने और पक्षकारों को वैकल्पिक समाधान सुझाने के लिए करते हैं। छोटे विवादों में AI चैटबॉट के माध्यम से त्वरित निपटान जैसी अवधारणाएँ भी उभर रही हैं, जिससे न्याय आम जनता के लिए अधिक सुलभ हो रहा है।
एक और महत्वपूर्ण क्षेत्र है भविष्यवाणी विश्लेषण (Predictive Analysis), जहाँ AI पिछले मामलों और आंकड़ों का विश्लेषण करके यह अनुमान लगाता है कि किसी मामले में संभावित परिणाम क्या हो सकता है। जबकि ऐसा विश्लेषण अंतिम निर्णय को प्रभावित नहीं करता, यह न्यायाधीशों और वकीलों को केस की दिशा समझने में मदद करता है। हालांकि इस तरह के सिस्टम पर नैतिक और वास्तविकता से जुड़ी कई बहसें चल रही हैं, इसलिए इसे सतर्कता के साथ अपनाया जा रहा है।
भारत समेत कई देशों में AI न्यायिक अनुवाद को भी आसान बना रहा है। भारत जैसे देश में जहां कई भाषाएँ बोली जाती हैं, AI आधारित अनुवाद उपकरण अदालतों में भाषाई बाधाओं को कम करने में अहम भूमिका निभा रहे हैं। ये सिस्टम दस्तावेज़ों का अनुवाद, कोर्ट कार्यवाही का लाइव सबटाइटलिंग और भाषा समझ में मदद करते हैं। इससे न केवल न्याय प्रक्रिया तेज़ होती है, बल्कि यह नागरिकों के लिए अधिक अनुकूल भी बनती है।
AI का एक बड़ा फायदा यह है कि यह न्यायिक प्रशासन को पारदर्शी और तेज़ बनाता है। केस फाइलिंग से लेकर सुनवाई तक कई कार्य स्वचालित हो जाते हैं, जिससे मानवीय त्रुटियाँ कम होती हैं। इसके अलावा, AI अदालतों को लागत कम करने में भी मदद करता है—कागदपत्र, समय, संसाधन और कर्मचारियों का भार घटता है। साथ ही, दूर-दराज़ के क्षेत्रों में रहने वाले लोग ऑनलाइन माध्यम से अदालतों तक जुड़ पाते हैं, जिससे न्याय तक पहुंच आसान होती है।
हालांकि AI के इन फायदों के साथ कई चुनौतियाँ भी हैं। सबसे बड़ी चिंता है डेटा गोपनीयता। चूंकि अदालतों में संवेदनशील दस्तावेज़ और निजी जानकारी होती है, इसलिए AI सिस्टम में डेटा की सुरक्षा सुनिश्चित करना बहुत जरूरी है। दूसरी चुनौती है एल्गोरिद्मिक पक्षपात (Algorithmic Bias)। यदि AI को गलत या अधूरे डेटा पर प्रशिक्षित किया जाए, तो वह पक्षपातपूर्ण परिणाम दे सकता है। ऐसी स्थिति में न्याय प्रभावित हो सकता है। इसके अलावा AI पर अत्यधिक निर्भरता भी जोखिमपूर्ण हो सकती है, क्योंकि भावनात्मक समझ, नैतिकता और सामाजिक संदर्भ जैसे तत्व मशीन पूरी तरह नहीं समझ सकती।
कानूनी और नैतिक सवाल भी उत्पन्न होते हैं, जैसे—क्या AI द्वारा सुझाए गए विश्लेषण को सबूत माना जा सकता है? अगर AI किसी केस में गलत सलाह दे, तो जिम्मेदार कौन होगा? न्याय प्रणाली एक संवेदनशील क्षेत्र है, इसलिए इसमें AI का उपयोग हमेशा सावधानी, पारदर्शिता और मानवीय निगरानी के साथ होना चाहिए।
भविष्य में AI अदालतों को स्मार्ट कोर्ट में बदलने की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। डिजिटल केस फाइलें, स्वचालित दस्तावेज़ विश्लेषण, वर्चुअल जज अवतार और छोटे मामलों के लिए चैटबॉट आधारित समाधान जैसी तकनीकें न्याय प्रणाली को और अधिक कुशल बना सकती हैं। हालांकि, यह ध्यान रखना आवश्यक है कि AI न्याय की प्रक्रिया में सिर्फ़ एक सहायक होगा, और अंतिम निर्णय हमेशा मानव न्यायाधीश द्वारा ही लिया जाएगा।














