वन्दे मातरम् , भारतीय मुसलमान और राष्ट्रीय एकता: शादाब शम्स की दो टूक
देश में इन दिनों वन्दे मातरम् जिहाद की व्याख्या और बंगाल में बाबरी मस्जिद के नाम पर रखी गई नींव को लेकर तीखी बहस चल रही है। संसद से लेकर सड़कों तक इन मुद्दों पर टकराव की स्थिति है। इसी संदर्भ में उत्तराखंड वक़्फ़ बोर्ड के चेयरमैन शादाब शम्स ने जनतंत्र टीवी से लंबी और बेबाक बातचीत में भारतीय मुसलमानों की पहचान, देशभक्ति और मजहब को लेकर कई अहम सवालों पर अपनी स्पष्ट राय रखी।
“मैं गर्वित भारतीय मुसलमान हूं”
शादाब शम्स ने बातचीत की शुरुआत ही इस घोषणा से की कि वह एक मजबूत मुसलमान हैं और उतने ही गर्वित भारतीय भी। उन्होंने कहा कि भारतीय मुसलमान जब अरब देशों में जाते हैं, तो उन्हें “हिंदी” कहकर पहचाना जाता है और वे इसे गर्व के साथ स्वीकार करते हैं। ऐसे में सवाल यह है कि क्या भारत में रहकर अपने ही कल्चर और भाषा पर गर्व करना गलत है?
उनका कहना था कि वंदे मातरम कहना किसी भी मुसलमान को कमजोर मुसलमान नहीं बनाता। उन्होंने अशफाक उल्लाह खान, मौलाना अबुल कलाम आज़ाद और खान अब्दुल गफ्फार खान जैसे स्वतंत्रता सेनानियों का उदाहरण देते हुए कहा कि इन महान मुसलमानों ने वंदे मातरम कहते हुए फांसी के फंदे चूमे। यदि वे मुसलमान रह सकते हैं, तो आज के मुसलमान को इससे परहेज़ क्यों?
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वंदना और पूजा का फर्क
वन्दे मातरम् पर हो रहे विरोध को शादाब शम्स ने “अज्ञान पर आधारित” बताया। उन्होंने कहा कि वंदे मातरम का अर्थ ‘वंदना’ है, पूजा नहीं। वंदना प्रशंसा होती है, इबादत नहीं। भारत को मदर लैंड मानकर उसकी प्रशंसा करना इस्लाम के खिलाफ नहीं है।
उन्होंने सवाल उठाया कि जब मुसलमान “मादरे वतन हिंदुस्तान ज़िंदाबाद” कह सकते हैं, तो “भारत माता की जय” या वन्दे मातरम् कहने में आपत्ति क्यों? क्या समस्या संस्कृत या हिंदी भाषा से है? यदि ऐसा है, तो यह भारतीयता पर सवाल खड़ा करता है।
भारतीय डीएनए और आक्रांताओं से दूरी
शादाब शम्स ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि भारतीय मुसलमानों का मुगल आक्रांताओं से कोई लेना-देना नहीं है। बाबर, औरंगज़ेब जैसे शासक आक्रांता थे, वे भारतीय मुसलमानों के नायक नहीं हो सकते। उन्होंने कहा कि आज कुछ नेता 800 साल की हुकूमत का दावा करके आम हिंदुओं के मन में डर और नफरत पैदा करते हैं, जबकि सच्चाई यह है कि उस दौर में भी आम मुसलमान शोषित ही था।
उनके अनुसार, भारतीय मुसलमानों का डीएनए भारतीय है। वे यहीं के कबीरपंथी जुलाहा, तेली, लोहार और अन्य जातियों से इस्लाम में आए हैं। इसलिए खुद को अरब, मंगोल या फारसी बताने की होड़ छोड़कर भारतीय पहचान को अपनाना होगा।
बंगाल में बाबरी मस्जिद के नाम पर नींव: “नफरत की बुनियाद”
बंगाल में बाबरी मस्जिद के नाम पर रखी गई नींव को लेकर शादाब शम्स ने कड़ा विरोध जताया। उन्होंने कहा कि मस्जिद बनाने से किसी को आपत्ति नहीं है, लेकिन आक्रांताओं के नाम पर मस्जिद का नाम रखना नफरत को बढ़ावा देता है।
उनका कहना था कि यह कदम उन घावों को फिर से हरा करने की कोशिश है, जो राम मंदिर–बाबरी मस्जिद के फैसले के बाद भरने लगे थे। उन्होंने सवाल किया कि जब मस्जिदों के नाम पैगंबरों, सहाबाओं या देश के महान मुस्लिम नायकों के नाम पर रखे जा सकते हैं, तो बाबर जैसे आक्रांता के नाम पर ज़िद क्यों?
उन्होंने सुझाव दिया कि यदि देश की सबसे बड़ी मस्जिद बने, तो उसका नाम “मस्जिद अल हिंद” होना चाहिए। इससे मुसलमानों की देशभक्ति और राष्ट्रीय एकता का संदेश जाएगा।
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जिहाद की सही व्याख्या की ज़रूरत
जिहाद के मुद्दे पर शादाब शम्स ने कहा कि जिहाद का अर्थ आत्म-सुधार और गलत के खिलाफ संघर्ष है, न कि हिंसा। उन्होंने उलमा पर सवाल उठाया कि मस्जिदों और मदरसों में जिहाद की सही परिभाषा क्यों नहीं समझाई गई।
उनका कहना था कि यदि उलमा समय रहते जिहाद, तीन तलाक और अन्य मुद्दों की सही व्याख्या करते, तो समाज में इतनी गलतफहमियां न फैलतीं। उन्होंने कहा कि संविधान और शरीयत में टकराव नहीं, बल्कि सामंजस्य होना चाहिए।
मदरसों में आधुनिक शिक्षा जरूरी
मदरसों को लेकर शादाब शम्स का रुख स्पष्ट था। उन्होंने कहा कि मदरसों को बंद नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि उन्हें आधुनिक शिक्षा से जोड़ा जाना चाहिए। उनके अनुसार, मदरसों में आधे दिन राज्य बोर्ड का सिलेबस पढ़ाया जाए और आधे दिन धार्मिक शिक्षा दी जाए।
उन्होंने सवाल उठाया कि केवल हाफिज़ या मौलवी बनकर गरीब मुस्लिम बच्चे आगे क्या करेंगे? यदि उन्हें हिंदी, अंग्रेज़ी, विज्ञान और गणित की शिक्षा मिले, तो वे डॉक्टर, इंजीनियर और वैज्ञानिक भी बन सकते हैं, जैसे डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम बने।
क्या मुसलमान भारत में सुरक्षित हैं?
मुसलमानों की सुरक्षा को लेकर उठ रहे सवालों पर शादाब शम्स ने कहा कि भारतीय मुसलमान सुरक्षित हैं। उन्होंने लिंचिंग जैसी घटनाओं की निंदा की, लेकिन साफ किया कि अपराधी चाहे किसी भी धर्म का हो, उसे बख्शा नहीं जाना चाहिए।
उनका कहना था कि असुरक्षा का नैरेटिव राजनीतिक लाभ के लिए गढ़ा गया है। सरकार की योजनाओं—आयुष्मान भारत, आवास योजना, राशन—का लाभ मुसलमानों को बराबरी से मिल रहा है।
वक़्फ़ बोर्ड और उम्मीद पोर्टल
वक़्फ़ बोर्ड पर बोलते हुए शादाब शम्स ने कहा कि वर्षों से वक़्फ़ संपत्तियों की लूट होती रही है। नए कानून और उम्मीद पोर्टल का मकसद इन संपत्तियों को बचाकर गरीब मुसलमानों के हित में इस्तेमाल करना है।
उन्होंने सवाल उठाया कि यदि सरकार की मंशा लूट की होती, तो रजिस्ट्रेशन की समयसीमा बार-बार क्यों बढ़ाई जाती? उनके अनुसार, वक़्फ़ की ज़मीनों पर स्कूल, कॉलेज और अस्पताल बनने चाहिए, जिससे पूरे समाज को लाभ हो।
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निष्कर्ष
शादाब शम्स का संदेश साफ है—मजबूत ईमान और मजबूत भारतीयता एक-दूसरे के विरोधी नहीं हैं। भारतीय मुसलमानों को आक्रांताओं की विरासत से दूरी बनाकर अपनी भारतीय पहचान को अपनाना होगा। वंदे मातरम, भारत माता की जय और देशभक्ति के नारों से डरने के बजाय उन्हें राष्ट्रीय एकता का माध्यम बनाना होगा। उनका मानना है कि जब मुसलमान और हिंदू साथ चलेंगे, तभी भारत सच्चे अर्थों में आगे बढ़ेगा।













