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गाजियाबाद: दिल्ली के बगल में मौत की धारा, जहां बहता है कैंसर वाला पानी, हम बात कर रहें है उस नदी उस जहरीली नदी की जो कभी लोगों के लिए लाइफलाइन हुआ करती थी। आज वही हिंडन नदी विलुप्त होने के कगार पर है। इस मौत की धारा में न जाने कितनी ही बीमारी अपना घर बसा चुकी हैं।
श्राप बनती जा रही है हिंडन
इस मौत की धारा में पारा, कैडमियम, सल्फ़ाइड, क्लोराइड काफ़ी मात्रा में है। जो हिंडन कभी लोगों के लिए एक जीने का साधन थी आज वहीं हिंडन श्राप बनती जा रही है । हिंडन का पानी आज के समय में तारकोल से भी ज्यादा काला हो चुका है पानी पीना तो दूर, अगर कोई शख्स इस पानी में नहा भी ले तो उसके लिए ये जानलेवा साबित हो सकती है।
पांडवों के कारण हुई थी उत्पत्ति
कहते हैं हिंडन नदी पांच हजार साल पुरानी है, मान्यता है इस नदी की उत्पत्ति पांडवो के कारण हुई। इसी नदी के पानी से पांडवो ने खांडवप्रस्थ को इंद्रप्रस्थ बना दिया। जिस नदी का पानी लोगों की जिंदगी को खुशहाल करता था। आज उसी नदी का पानी लोगों की जिन्दगी के लिए खतरा बन गया है। बीते बीस साल में हिंडन इस तरह प्रदूषित हुई है कि वो खुद तो जहरीली हुई है। साथ ही साथ आस पास के गांवों को भी प्रदूषित कर दिया है। इस मौत की नदी के कारण गावों के हैंडपंप का पानी ज़हरीला हो चुका है। हिंडन नदी के पानी को लेकर यूं तो लोगों के मन में कई सवाल होंगे लेकिन कुछ ऐसे कड़वे सच हम आपको बताएंगे जिसे सुनकर आप भी सोच में पड़ जाएंगे। लेकिन उसे से पहले आपको बतातें है हिंडन आखिर कहां से कहां तक बहती है।
यूपी के इन गांवों से निकलती है हिंडन नदी
उत्तर प्रदेश के सहारनपुर से निकलने वाली नदी हिंडन, पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बागपत, शामली, मुज़फ़्फ़रनगर, मेरठ ,ग़ाज़ियाबाद और नोएडा से होती हुई यमुना में मिलती है। इनके अलावा कई गांव ऐसे है जो हिंडन की जहरीली पानी का प्रकोप झेल रहे हैं। कुछ गांव की पहचान इस नदी के चलते केंसर गांव के नाम से होने लगी है। भगवानपुर नाम का गांव केंसर गांव के नाम से मशहूर होने लगा है। यहां पानी लोगों को कतरा-कतरा मौत बांट रहा है। गांव के हर घर में केंसर और त्वचा के रोगी मिल जाऐंगे, कुछ गांव में आलम तो ये है कि कि हिंडन के पानी की वजह से कई मौते हो चुकी है। जिला प्रशासन की टीमें आती है नमूने लेती है, लेकिन कार्रवाई के नाम पर आज तक कुछ नहीं हुआ।
बीमारी के डर से गांव को छोड़कर भागने लगे लोग
मेरठ की अगर बात की जाए तो हालात यहां भी भयावह है। यहां लोग तो इस नदी को काली नदी तक पुकारने लगे है। पानी इस कदर प्रदूषित है कि लोगों के घरों में भी काला पीला पानी आता है। कुछ लोग तो बीमारी के डर से गांव को छोड़कर भागने लगे है।
हिंडन नदी में ऑक्सीजन की मात्रा बेहद कम है। लगातार कारखानों का कचरा, शहरीय नाले, पूजन सामग्री और मुर्दों का अवशेष मिलने से मोहन नगर के पास इसमें ऑक्सीजन की मात्रा महज दो तीन मिलीग्राम प्रति लीटर ही रह गई है। करहेड़ा और छजारसी में इस नदी में कोई जीव-जंतु तक नहीं बचा है जबकि करीब एक दशक पहले तक इसमें कछुए, मेंढक, मछलियां खूब थे। बीते साल आईआईटी दिल्ली के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के छात्रों ने यहां तीन महीने शोध किया था और अपनी रिपोर्ट में बताया था कि हिंडन का पानी इस हद तक गंदा हो गया है कि अब इससे यहां का भूजल भी प्रभावित हो रहा है।
कहां से हुई हिंडन नदी की शुरुआत
हिंडन का पुराना नाम हरनदी या हरनंदी है। हिंडन की शुरुआत सहारनपुर जिले में हिमालय क्षेत्र के ऊपरी शिवालिक पहाड़ियों में पुर का टंका गांव से होती है। इसका जल बहाव क्षेत्र सात हजार वर्ग किलोमीटर से ज्यादा है। हिंडन नदी के चलते छोटी नदियां भी अपने साथ ढेर सारी गंदगी और रसायन ले कर आती हैं और हिंडन को और जहरीला बनाती हैं। कभी पश्चिमी उत्तर प्रदेश की जीवन रेखा कहलाने वाली हिंडन का पानी इंसान तो क्या जानवरों के लायक भी नहीं बचा है। वहीं गाज़ियाबाद से लेकर ग्रेटर नोएडा तक हिंडन अतिक्रमण का भी शिकार है।
भूमाफिया और अधिकारियों की मिलीभगत से हिंडन के डूब छेत्र में धड़ल्ले से अवैध कालोनियां बसाई जा रही हैॆ ,लेकिन अधिकारी खुद के पूरे मामले से अंजान ही बता रहे हैं, हालांकि जब जनतंत्र टीवी की टीम ने उन्हें हकीकत बताई तो उन्होने जल्द कार्रवाई का भरोसा दिया है ।
वहीं हिंडन के डूब क्षेत्र की जमीन पर प्लॉट काट कर बेचने वाले सक्रिय हो गए। कहने की जरूरत नहीं है कि ऐसे लोग रसूखदार होते हैं। आज कोई 10 हजार अवैध निर्माण हिंडन के डूब क्षेत्र में सिर उठाए हैं स्थानीय प्रशासन ने इन अवैध निर्माणों को बिजली-पानी का कनेक्शन भी दे रखा है। एनजीटी ने इन निर्माणों को हटाने के आदेश दिए हैं तो लोग इसके खिलाफ हाईकोर्ट से स्टे ले आए। करहेड़ा में तो सरकारी बिजलीघर का निर्माण भी डूब क्षेत्र में कर दिया गया। जिले का हज हाउस भी नदी के डूब क्षेत्र में ही खड़ा कर दिया गया। पर्यावरण के लिए काम कर रहे अधिवक्ता संजय कश्यप बताते हैं कि अभी कुछ साल पहले तक इसका जल प्रवाह दोनों सिरों पर चार-चार सौ मीटर था जो अब सिकुड कर कुल जमा दो सौ मीटर रह गया है।
वहीं उ.प्र. प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का दावा है कि छह ज़िलों में लगभग 316 जल प्रदूषणकारी कारखाने हैं। जिसमें से 216 एमएलडी गंदा पानी निकलता है, हालांकि सभी इकाइयों में Effluent Treatment Plant लगा है। इन दावों की हकीकत तो करहेड़ा गांव में आ रहे नाले से ही मिल जाती है, दरअसल कारखानों में ईटीपी तो लगे हैं, लेकिन बिजली बचाने के लिए इन्हें कभी कभी ही चलाया जाता है। हिंडन का दर्द अकेले इसमें गंदगी मिलना नहीं है, इसके अस्तित्व पर संकट का असल कारण तो इसके प्राकृतिक बहाव से छेड़छाड़ रहा है।
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक ज्यादातर फैक्ट्रियों का कचरा नदियों में जाता है। इसलिए नदी का पानी ज़हरीला हो चुका है। ऐसे में गांव के लोग नदी का पानी पीने के बजाए कुएं, ट्यूब्वेल या हैंडपंप का पानी पी सकते थे। लेकिन हिंडन के ज़हरीले पानी ने ज़मीन के नीचे भी कब्जा कर लिया है। जिसकी वजह से गांव वालों के पास अब कोई विकल्प नहीं बचा है ।
ऐसे में सवाल ये उठता है कि मौत की धारा कब तक बहती रहेगी, कब लोगों को साफ पानी मिल पाएगा। सरकार ने जल्द ही अगर इसको लेकर कोई कदम नहीं उठाएं तो इस दम घोंटू जहरीली पानी के चलते मरने वालों की संख्या घटने की बजाए बढ़ती जाएगी और आस पास का इलाका जल्द ही खाली हो जाएगा। लेकिन उससे भी बड़ी चिंता इस बात की भी है कि कहीं आने वाले वक्त में हिंडन का अस्तित्व सिर्फ कागज़ों में न सिमट कर रह जाए।
गाजियाबाद से इंदरसेन यादव , जनतंत्र टीवी