जनतंत्र डेस्क Dussehra 2021: याद है आपको आप आखिरी बार मेले में कब गए थे? कब आपने रावण दहन देखा था? कोरोना ने हमारे रहन सहन ही नहीं हमारी लोक परंपराओं पर भी गहरा असर डाला है। त्यौहार और उत्सव लोक संस्कृति के वो रंग है जिनमें किसी तरह के भेदभाव की मिलावट नहीं है। जात-पात नहीं है, ऊंच नीच नहीं है। है तो बस प्रेम और आपसी सद्भभाव, उत्साह है उमंग है। त्यौहार एक बहाना है जिसमें मन के गिले शिकवे दूर कर प्यार और सौहार्द की भाषा बोली जाती है। लेकिन पिछले दो साल से तीज त्यौहारों पर सकंट मंडरा गया। कोरोना के कारण त्यौहार के पारंपरिक तौर तरिकों में बदलाव आ गया। माना ये युग डिजिटल का है मगर क्या हमारे तीज त्यौहारों को इस वर्चुअल फ्रेम में देखना सुखद अहसास है ? कोविड 19 वायरस ने लोक कलाओं पर्वों उत्सवों और मानव के बीच दूरी बढ़ा दी।
त्यौहार और रोजगार
त्यौहारों से लोगों की आमदनी भी जुड़ी रहती है। मेलों में लगने वाले स्टॉल, बाजारों में सजावट, खिलौने, झूले और ना जाने कितने छोटे छोटे व्यापारी समारोह और आयोजनों की बाट जोहते हैं। महामारी में जहां पहले ही रोजगार के साधन सिमित हो गए। लोगों की नौकरियां चली गईं। लॉकडाउन में धंधे बंद हो गए। वहीं, अब त्यौहारों पर महामारी के कारण आतिशबादी, समारोह, मेलों और अन्य बड़े आयोजनों पर रोक लगा दी गई। जिससे अजीविका पर भी संकट मंडरा गया।
कोरोना ने घटा दी रावण की हाइट
दशहरे में होने वाले रावण दहन कार्यक्रम पर पिछले 2 साल से कारोना काल का असर देखने को मिल रहा है। अब रावण की हाइट छोटी हो गई। देहरादून में इस बार भी बन्नू बिरादरी की ओर से सीमित तरीके से रावण का पुतला बनाया जा रहा है। बन्नू बिरादरी के अध्यक्ष हरीश विरमानी ने बताया कि जो पुतला पहले 65 फीट का होता था और रावण के साथ विभीषण और कुंभकरण के भी पुतले परेड ग्राउंड पर लगाए जाते थे। लेकिन अब कोरोना के कारण ज्यादा भीड़ भी नहीं जमा होनी चाहिए, साथ ही आतिशबाजी पर भी रोक है। ऐसे में दो साल से रावण के छोटे पुतले ही बन रहे हैं। वहीं, रावण दहन कार्यक्रम कोरोना गाइडलाइन के साथ किया जाएगा।
क्या अच्छा लगेगा रावण को ऑनलाइन जलते देखना ?
राजस्थान में कोरोना संक्रमण और उसके बाद लागू हुई गाइडलाइन की वजह से लगातार दूसरे साल विजयादशमी सादगी से मनाई जाएगी। इस बार जयपुर में चुनिंदा लोगों की मौजूदगी में ही रावण दहन किया जाएगा। यहां लाखों लोगों को ऑनलाइन दहन दिखाने की तैयारी है। वहीं, कोटा में रावण की लंबाई को कम कर दिया गया है, यहां सिर्फ 25 फीट के रावण का दहन किया जाएगा। इसके साथ ही जोधपुर, उदयपुर, अजमेर में सांकेतिक तौर पर रावण दहन होगा। कई जिलों में रावण दहन के कार्यक्रम को स्थगित कर दिया गया।
Dussehra 2021: विश्व प्रसिद्ध मेले रद्द
कोटा का दशहरा मेला देश में ही नहीं विदेशों में भी अपनी पहचान रखता है। दशहरे से पहले शुरू होकर यह मेला दिवाली तक चलता है। जिसे देखने विदेशों से भी टूरिस्ट राजस्थान का रुख करते हैं। लेकिन लगातार दो साल से यहां मेले का आयोजन नहीं हो रहा। वहीं, रावण के साथ यहां भी धोखा हुआ है। रावण दहन कार्यक्रम के आयोजकों ने दशानन की हाइट छोटी कर दी। प्रशासन ने तो यहां 15 फीट के ही रावण को मंजूरी दी थी। इसी के साथ जयपुर के मानसरोवर में भी कोरोना के कारण मेले को रद्द कर दिया गया और लोगों को घर बैेठे वर्चुअल रावण दहन दिखाया जाएगा। ऐसे में सोशल मीडिया भले ही भरा रहेगा। लेकिन मैदान और मेला ग्राउंड सूने ही रहने वाले हैं।
Dussehra 2021: गंगा-जमुनी तहजीब की झलक
भारत विभिन्नताओं में एकता का देश है। यहां कदम कदम पर बोली बदलती है। खाना बदलता है पहनावा बदलता है। भले ही सदियों से हमारा समाज जाति व्यवस्था में बंटा हुआ हो, लेकिन त्यौहारों में ये दूरी कहीं मायनें नहीं रखती। जहां रामलीला में मुस्लिम कलाकार रामायण के किरदारों का मंचन करते हैं, तो वहीं, मुस्लिम कारीगर दशहरे में रावण और नवरात्रि में मां दुर्गे की मूर्ति बनाते नजर आते हैं। यूपी के रामपुर से एक तस्वीर आई जहां मुस्लिम कारीगर रावण का पुतला बनाते दिखे।
Dussehra 2021: रावण के साथ महामारी का भी दहन
कोविड 19 के दौर में हमने भयावह दृश्य देखे। हॉस्पिटल के बाहर लगी लाइनें, दम तोड़ती जिंदगिया, भूख से बिलखती सांसे। अब इस महामारी की रफ्तरा थोड़ी कम जरूर हुई है, लेकिन वायरस का खतरा टला नहीं है। लिहाजा लोग ये ही प्रार्थना करते हैं कि ये बिमारी अब अपने पैर ना पसारे। इस दशहरा लोग रावण के साथ साथ कोरोना के पुतले भी दहन करेंगे। रुड़की के नेहरू स्टेडियम में रावण के साथ साथ कोरोना के पुतले भी तैयार किए गए। यहां दशहरे पर रावण के 70 फीट पुतले का दहन होगा तो वहीं, 55 फीट ऊंचा कोरोना का पुतला भी जलेगा। ताकि इस दशहरे के बाद कोरोना महामारी देश और दुनिया से पूरी तरह से मिट जाए।
बुराई पर अच्छाई की जीत का उत्सव
जब अहंकार हावी हो गया था और बुराई की जड़ें मजबूत हो गई थीं। तब संसार को ये बताना जरूरी हो गया था कि बुराई की जड़ें कितनी भी मजबूतो हों, लेकिन अच्छाई की रोशनी में उनका जलना तय है। भगवान श्री राम ने माता सीता को बचाने और अधर्मी रावण का नाश करने के लिए कई दिनों रावण के साथ युद्ध किया था। आखिरकार भगवान राम ने रावण का वध कर उस पर विजय प्राप्त की। ये जीत बुराई पर अच्छाई की थी। तभी से विजयादशमी का पर्व मनाया जाने लगा। इसे जश्न का त्यौहार कहते हैं। आज के वक्त में यह बुराई पर अच्छाई की जीत का ही प्रतीक हैं। बुराई किसी भी रूप में हो सकती हैं जैसे क्रोध, असत्य, बैर,इर्षा, दुःख, आलस्य किसी भी आतंरिक बुराई को ख़त्म करना भी एक आत्म विजय है।