नई दिल्ली : जलियांवाला बाग हत्याकांड (Jallianwala Bagh Massacre) इतिहास का काला दिन है क्योंकि 13 अप्रैल 1919 को अंग्रेजों के अफसर जनरल डायर ने अमृतसर के जलियांवाला बाग में मौजूद भीड़ पर अंधाधुंध गोलियां चलवाई थी जिसकी वजह से लाखों मासूमों की जान चली गई थी और कई लोग घायल हो गए थे।
बता दें जिस दिन यह क्रूरतम घटना हुई उस दिन बैसाखी का त्यौहार था, इस हत्याकांड के बाद ब्रिटिश के हुकूमत का अंतिम दिन चालू हो गया था, तब देश को गुलामी से आजाद कराने के लिए भारत को क्रांतिकारी वीर मिले लोगों में देशभक्ति की लहर दौड़ गई।
I bow to those martyrs who were killed mercilessly in Jallianwala Bagh on this day. We will never forget their courage and sacrifice. Their valour will inspire Indians for the years to come. pic.twitter.com/JgDwAoWkAy
— Narendra Modi (@narendramodi) April 13, 2020
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जलियांवाला बाग हत्याकांड की बरसी पर उस घटना को याद करते हुए शहीदों को नमन किया. उन्होंने ट्वी करते हुए लिखा, “जो लोग जलियांवाला बाग की घटना के दौरान शहीद हुए थे, मैं उन्हें नमन करता हूं. हम उनके बलिदान को कभी भी नहीं भूलेंगे, उनका त्याग आने वाले कई वर्षों तक देशवासियों को प्रेरित करता रहेगा।
जिस दिन हमला हुआ उस दिन वैशाखी का त्यौहार था
अमृतसर के प्रसिद्ध् स्वर्ण मंदिर, यानी गोल्डन टेंपल से डेढ़ किलोमीटर दूर स्थित जलियांवाला बाग में 13 अप्रैल, 1919 को रॉलेट एक्ट का विरोध करने के लिए एक सभा हो रही थी, उस दिन बैसाखी का त्यौहार भी था, जलियांवाला बाग में कई सालों से बैसाखी के दिन मेला लगता आ रहा था, जिसमें शामिल होने के लिए उस दिन सैकड़ों लोग पंहुचते थे।
उस दिन ब्रिटिश आर्मी का ब्रिगेडियर जनरल रेजिनैल्ड डायर 90 सैनिकों को लेकर वहां पहुंच गया, लोगों पर गोलियां चलानी शुरू कर दीं,वहाँ पर मौजूद लोगों ने जान बचा कर भागने की कोशिश की लेकिन नाकाम रहे क्योंकि भागने वाले रास्ते को भी उनके सैनिकों ने चारों तरफ से घेर रखा था, इसी वजह से कोई बाहर नहीं निकल पाया और हिन्दुस्तानी जान बचाने में नाकाम रहे।
बता दें कि जनरल डायर के आदेश पर ब्रिटिश आर्मी ने बिना रुके लगभग 10 मिनट तक गोलियां बरसाईं, इस घटना में करीब 1,650 राउंड फायरिंग हुई थी, बताया जाता है कि सैनिकों के पास जब गोलियां खत्म हो गईं, तभी उनके हाथ रुके।
कई लोग जान बचाने के लिए बाग में बने कुएं में कूद गए थे, जिसे अब ‘शहीदी कुआं’ कहा जाता है, यह आज भी जलियांवाला बाग में मौजूद है और उन मासूमों की याद दिलाता है, जो अंग्रेज़ों के बुरे मंसूबों का शिकार हो गए थे।
जनरल डायर रॉलेट एक्ट का बहुत बड़ा समर्थक था, और उसे इसका विरोध मंज़ूर नहीं था, उसकी मंशा थी कि इस हत्याकांड के बाद भारतीय डर जाएंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ पूरा देश इसके खिलाफ खड़ा हो उठा और देश को आजाद कराने का आदोंलन छिड़ उठा और इस ह्त्याकांड की पूरी दुनियां में आलोचना होने लगी।
आखिरकार दबाव में भारत के लिए सेक्रेटरी ऑफ स्टेट एडविन मॉन्टेग्यू ने 1919 के अंत में इसकी जांच के लिए हंटर कमीशन बनाया, कमीशन की रिपोर्ट आने के बाद डायर का डिमोशन कर उसे कर्नल बना दिया गया, और साथ ही उसे ब्रिटेन वापस भेज दिया गया।
हाउस ऑफ कॉमन्स ने डायर के खिलाफ निंदा प्रस्ताव पारित किया, लेकिन हाउस ऑफ लॉर्ड्स ने इस हत्याकांड की तारीफ करते हुए उसका प्रशस्ति प्रस्ताव पारित किया. बाद में दबाव में ब्रिटिश सकार ने उसका निंदा प्रस्ताव पारित किया. 1920 में डायर को इस्तीफा देना पड़ा. जलियांवाला बाग हत्याकांड का बदला लेने के लिए 13 मार्च, 1940 को ऊधम सिंह लंदन गए. वहां उन्होंने कैक्सटन हॉल में डायर को गोली मारकर मौत के घाट उतार दिया. ऊधम सिंह को 31 जुलाई, 1940 को फांसी पर चढ़ा दिया गया. उत्तराखंड के ऊधम सिंह नगर का नाम उन्हीं के नाम पर रखा गया है