भारत ने ढूंढ लिया कोरोना का इलाज़
कोरोना का भयावह रूप मेडिकल साइंस के लिए एक बड़ी चुनौती है। लगातार संक्रमण से बचाव की जुगत चल रही है। विश्व भर के डॉक्टर्स मेडिकल साइंटिस्ट वैक्सीन और दवाई की जुगत में हैं। अब तक एक लाख से ज्यादा लोगों को लील चुका है कोरोना। विश्व के बड़े और विकसित देश भी कोरोना के सामने हारते दिख रहे हैं। ऐसे में भारत में अब कोरोना मरीज़ों का इलाज करने की नयी तकनीक सामने आयी है – ‘प्लाज़्मा ट्रीटमेंट’
> ICMR ने भी दिया परमिशन
> कोरोना के मरीज़ का इलाज किया जा सकता है
> अब तक के स्थिति के अनुसार 3 -4 दिन में मरीज फिट
कोरोना के खौफ के बीच ‘प्लाज़्मा थेरेपी’ रहत भरी खबर है। ऐसे में आपको बताते हैं ‘प्लाज़्मा थेरेपी’ और इससे जुडी तमाम बातें। ..
प्लाज़्मा है क्या
कई बार महज़ चोट या काटने से खून बहना बंद होने के बाद पानी निकलता है जो पीलापन लिया होता है , यही प्लाज़्मा कहलाता है। प्लाज़्मा हमारे शरीर के ख़ून का ज़रूरी हिस्सा होता है, जो पूरे शरीर में पोषक चीज़ें और तमाम हार्मोन ले जाता है। जब किसी आदमी को इंफ़ेक्शन होता है, तो उसके शरीर में इंफ़ेक्शन फैलाने वाले वायरस या बैक्टीरिया के खिलाफ़ एंटीबॉडी बनने लगती है ये एंटीबॉडी उस इंफ़ेक्शन से लड़ती हैं, और शरीर को रोगमुक्त बनाती हैं।
प्लाज़्मा से इम्यूनिटी बढ़ता है , इसीलिए ब्लड बैंकों में जैसे ख़ून का दान किया जाता है, वैसे प्लाज़्मा का भी दान किया जाता है। एक स्वस्थ आदमी के शरीर से आधे लीटर से 1 लीटर तक प्लाज़्मा लिया जा सकता है। ये व्यक्ति की उम्र और उसके वज़न जैसे तमाम फ़ैक्टर पर निर्भर करता है कि कितना प्लाज़्मा लिया जाये।
प्लाज़्मा ट्रीटमेंट क्या है?
प्लाज़्मा ट्रीटमेंट तब महत्वपूर्ण हो गए जब कोरोना संक्रमित मरीज स्वस्थ होने लगे। कोरोनावायरस से संक्रमित जो लोग ठीक हो रहे हैं, उनके शरीर के प्लाज़्मा में कोरोनावायरस के खिलाफ़ एंटीबॉडी बन गई है। जो लोग स्वस्थ हो रहे हैं मतलब उनके शरीर में वायरस भी मौजूद नहीं है। ऐसे में , जो संक्रमण से बरी हो चुके हैं, वे प्लाज़्मा डोनेट कर सकते हैं। इन स्वस्थ हो चुके लोगों के प्लाज़्मा में कोरोनावायरस के खिलाफ़ बनी एंटीबॉडी मौजूद होंगी। अब इस प्लाज़्मा को कोरोनावायरस से संक्रमित व्यक्ति को ट्रान्स्फ़र किया जाएगा। ट्रान्स्फ़र के बाद ये प्लाज़्मा उनके शरीर में वायरस से लड़ेगा और उन्हें रोगमुक्त करेगा। इस प्रक्रिया को ‘passive immunisation’ कहते हैं।
मेडिकल साइंस कहता है कि प्लाज़्मा तकनीकी में एंटीबॉडी का इस्तेमाल किया जाता है। संक्रमण के खिलाफ शरीर में एंटी बॉडी तभी बनता है जब उक्त शरीर पहले संक्रमण की चपेट में आ चुका हो। ऐसे में , अभी जो लोग स्वस्थ हो चुके हैं उनके प्लाज़्मा में एंटी बॉडी बन गई होगी कोरोना वायरस के खिलाफ .
जब कोई मरीज बीमार रहता है तो उसमें एंटी बॉडी तुरंत नहीं बनता है। उसके शरीर में वायरस के खिलाफ एंटी बॉडी बनने में देरी की वजह से वह गंभीर हो जाता है। ऐसे में जो मरीज अभी अभी इस संक्रमण से ठीक हुआ है, उसके शरीर में एंटी बॉडी बना होता है, जो उसके शरीर से निकालकर दूसरे बीमार मरीज में डाल दिया जाता है। वहां जैसे ही एंटी बॉडी जाता है मरीज पर इसका असर होता है और वायरस कमजोर होने लगता है, इससे मरीज के ठीक होने की संभावना ज्यादा बढ़ जाती है। अब जब तक कोई और विकल्प सामने नहीं आता है तब तक कोरोना वायरस से लड़ने के लिए ‘ प्लाज़्मा थेरेपी’ एक मात्र रास्ता है।
कितने लोगों का इलाज
एक व्यक्ति से मिले प्लाज़्मा से कम से कम 2 और अधिक से अधिक 5 लोगों का इलाज किया जा सकता है। बतादें कि , एक व्यक्ति के इलाज में 200-250 ml प्लाज़्मा लग सकता है। ऐसे केसों में मरीज तेज़ी से रीकवर कर सकता है। कई शोध सामने आये हैं और दावा करते हैं कि 3 से 7 दिनों के भीतर संक्रमित व्यक्ति पूरी तरह से ठीक हो सकता है।
दो देशों का रिसर्च
यदि रिसर्च देखें तो अब तक दो देशों ने इस पर रिसर्च किया है। अमेरिका और चीन ने कोरोना संक्रमित मरीजों पर प्लाज़्मा थेरेपी किया। इन मरीजों में १ से ३ दिन के भीतर काफी सुधार देखने को मिला। लेकिन ये रीसर्च के स्तर पर ही था इससे आगे बड़े लेवल पर इलाज़ के रूप में शामिल नहीं किया गया। लेकिन इन मरीज़ों की हालत प्लाज़्मा ट्रीटमेंट दिए जाने के पहले तक बेहद ख़राब थी। कुछ मरीज जो वेंटिलेटर पर थे ,लेकिन प्लाज़्मा दिए जाने के कुछ ही समय के भीतर उनकी हालत में सुधार होने लगा। सबसे ज़रूरी बात , इन मरीज़ों में प्लाज़्मा ट्रीटमेंट का कोई साइडइफ़ेक्ट भी नहीं देखा गया। लेकिन अगर प्लाज़्मा की बात करें तो भारत में लोगों का स्टैमिना मजबूत है ऐसे में प्लाज़्मा ट्रीटमेंट सार्थक साबित हो सकता है।
‘इबोला’ में भी हुआ था फ़ायदा
गौरतलब है कि , कुछ सालों पहले ‘ईबोला’ नाम का वायरस धरती के अलग अलग हिस्सों में फैला था। इबोला भी वायरस से फैलने वाली बीमारी थी और इसका भी कोई इलाज़ न था। लेकिन WHO ने कहा कि मरीज़ों को ‘प्लाज़्मा ट्रीटमेंट’ दिया जा सकता है। और अंततः यही तरीक़ा इस्तेमाल में लाया गया। कुछ हद तक सफलता भी मिली। जब तक कोई और वैक्सीन या दवा नहीं बन जाये तब तक ‘प्लाज़्मा थेरेपी’ की जा सकती है।
क्या कहता है – भारतीय मेडिकल साइंस
देश में बिगड़ते हालात को देखते हुए ICMR ने ने प्लाज़्मा थेरेपी को मंजूरी दे दी है। AIIMS के निदेशक ने भी कहा है कि प्लाज़्मा ट्रीटमेंट दिया जा सकता है। चिकित्सा संस्थानों से कहा गया है कि – प्लाज़्मा ट्रीटमेंट में ट्रायल के लिए Drug Controller of India में रजिस्ट्रेशन करायें। Clinical Trial Ethics Committee में भी रजिस्ट्रेशन करवाना होगा। जब यहां से प्रोटोकॉल पास हो जायेंगे, तो बड़े स्केल पर प्लाज़्मा ट्रीटमेंट किया जा सकेगा। वहीं ने ये भी कहा कि सबसे पहले गम्भीर रूप से बीमार लोगों का ट्रीटमेंट किया जायेगा।
ख़तरा क्या है
कई बार यदि कोई व्यक्ति पूर्णतः स्वस्थ नहीं तो ऐसे में नतीजा गलत निकल सकता है। साधरणतः जब कोई ब्लड डोनेट करने जाता है तो उससे कई सवाल किये जाते हैं जैसे उसके स्वस्थ्य समबन्धित और फिर उससे जुड़े हेरिडिटिकल सवाल भी। साथ हीं डोनटर की मेडिकल हिस्ट्री भी पूछी जाती है। यदि डोनेटर की तबियत में खराबी हुई हो या उसका इम्यून मजबूत न हो , या फिर किसी भी हालात में पूर्ण स्वस्थ न हो तो रिसीवर और डोनेटर दोनों पर गलत इफ़ेक्ट पद सकता है। ऐसे में प्लाज़्मा थेरेपी रिस्की है। कोरोना केस में डोनर को भी दिक्कत का सामना करना पद सकता है , इसलिए प्लाज़्मा थेरेपी को लेकर मेडिकल साइंस पूर्णतः आश्वस्त नहीं है। हलाकि अब , स्थिति को देखते हुए ICMR ने दिल्ली समेत और भी जगहों पर इस थेरेपी की अनुमति दे दी है।