Atal Bihari Vajpayee : आज 95वीं जयंती
नई दिल्ली- आज यानिकी 25 दिसंबर को भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) की 95वीं जयंती देशभर में मनाई जा रही। बता दे कि अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म 25 दिसंबर 1925 को मध्य प्रदेश ग्वालियर में हुआ था। 1996 में लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के बड़ी पार्टी के रुप में उभर कर सामने आई जिस दौरान राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने उन्हें सरकार बनाने के लिए निमंत्रित किया।
- अटल जी ने पीएम की शपथ तीन बार ली
- पहली बार साल 1996 में 16 मई से 1 जून तक,
- 19 मार्च 1998 से 26 अप्रैल 1999 तक
- 13 अक्टूबर 1999 से 22 मई 2004 तक देश के पीएम रहे
अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) ने पहली बार साल 1996 में प्रधानमंत्री पद की शपथ ली थी। लेकिन संसद में बहुमत साबित नहीं कर पाए, जिस कारण 13 दिन में ही सरकार गिर गई थी। वहीं अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय जनता पार्टी के संस्थापक के रुप में भी जाने जाते हैं। वहीं दूसरी बार 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी 13 महीने के लिए ही पीएम पद पर रहे।
1999 में लोकसभा चुनाव के दौरान भारतीय जनता पार्टी एक बार फिर बड़ी पार्टी के रुप में उभर के सामने आई और 182 सीटें हासिल करते हुए भारतीय जनता पार्टी ने 5 साल के लिए देश की सत्ता का कार्यकाल संभाला और भाजपा के नेता अटल बिहारी वाजपेयी ने इस तरीके से तीसरी बार भारत के प्रधानमंत्री के रुप में शपथ ली। इस बार अटल बिहारी वाजपेयी ने पूरे पांच साल का कार्यभार संभाला जो कि 1999 से 22 मई 2004 तक का था।
अटल जी की प्रसिद्ध रचनाएं
हवाओं, तुमने क्यूं घुसने दिया मौत को, घड़ी, तुमने क्यूं सुनाई पेंडुलम की सिसकियां, कलेण्डर, तुमने क्यूं लिखी माथे पर, सियासी तवारीख की सबसे मनहूस तारीख, रुको-रुको रास्तों रुको, रुको-रुको ज़मीन रुको, ठहरों ज़रा आसमानों, हवाएं पूछ रही हैं, क्या हुआ है खुदा की दुनिया में, सुनों नक्षत्र के सितारों सुनों, मंदिरों, मस्जिदों, गुरुद्वारों सुनों, ज़िन्दगी के इम्तिहान से, ज़मीन ओ आसमान के दरमियान से, मां तेरे हिन्दुस्तान से, अटल चले गए, अटल चले गए, अटल चले गए…..
हटो-हटो फिजाओं हटो, जमीं पर उतर रहे हैं फरिश्ते…बचो-बचो आसूओं बचो…आसमान से उतर रहे चांद सितारे…जरा रास्ता दो ए ज़मी, आ रहे हैं समंदर के किनारे…बुझ गया वो चराग जिससे रौशन था मुल्क…आज कतरा रहा है सूरज, रौशनी से…रो रहा है मश्रिक, रो रहा है मगरिव, बेसुद पड़ा है उत्तर, रुंध गया है दक्षिण गला….के अब कौन जलाएगा दिशाओं की देहरियों पर दीपक…खामोश हो गई वो आवाज़ जिसके हौसले से धड़कती थी मुल्क की धड़कन… खत्म हो गए वो लफ्ज़ जिनसे ज़िन्दा थी किताबें…संसद के आह्वान पर….बुलंदियों के मचान पर, अमन के दीवान पर, ये कौन लिख गया है….अटल चले गए…अटल चले गए…अटल चले…
ये जाना सिर्फ अटल जी का जाना नहीं युग का मर जाना है
ये जाना सिर्फ अटल बिहारी का जाना नहीं है, एक युग का मर जाना है, एक सोच का खत्म हो जाना है, हिन्दुस्तान का खाली हो जाना है, सहम गई धरती, सूना हो गया आसमान, ठहर गई लहरें, मुल्क का रहबर नहीं, एक रास्ता खो गया है, रास्ता, लिपटकर रो रही है सरहदें के अब कौन सुनाए अमन का कलाम…कहां से लाएं इतने आंसू के दर्द को निकाल दें आंखों से बाहर, कहां से लाएं लफ्ज़ जो खत्म कर सके किस्से, रो रहीं किताबें पढ़ के नया गीत, मोहब्बत के द्वार पर, सुबहो के अखबार पर, उजालों की दीवार पर, ये कौन लिख गया है, अटल चले गए, अटल गए…..
मैं अटल हूं….मैं अटल हूं…मैं अटल हूं….
कौन कहता है अटल चले गए, कौन कहता है अटल नहीं रहे, अटल नहीं वक्त मरा है वक्त, ये बदनसीबी है इस युग की, जो नहीं जी पाया अटल के साथ, वो अब भी ज़िन्दा है, मेरी मुल्क की धड़कन में, वो अब भी जिन्दा है मेरी आंहों मे, वो बोल रहे हैं किताबों के हर सफे पर, मैं अटल हूं….मैं अटल हूं…मैं अटल हूं….