रश्मि सिंह| Eid-e-Milad-Un-Nabi 2023: ईस्लाम धर्म को मानने वालों के लिए Eid-e-Milad-Un-Nabi का पर्व बहुत ही खास होता है। इस पर्व को ईदों की ईद कहा जाता है। क्योंकि इस दिन अल्लाह के दूत “पैगंबर हरजत मुहम्मद” (Prophet Muhammad) की जयंती होती है। पैगंबर मुहम्मद साहब की जयंती होने के कारण इस पर्व को महत्वपूर्ण माना जाता है और इसे एक उत्सव की तरह मनाया जाता है। इस्लाम धर्म से जुड़े लोग इस दिन घर-मस्जिद को सजाते हैं और अल्लाह की इबादत करते हैं। तरह-तरह के पकवान बनाए जाते हैं, साथ ही इस दिन पवित्र कुरान भी पढ़ा जाता है और गले मिलकर लोग एक दूसरे को ईद-ए-मिलाद-उन-नबी की मुबारकबाद भी देते हैं।
ईद मिलादुन्नबी का इतिहास
इस्लाम के आखिरी ‘पैगंबर हजरत मोहम्मद’ का जन्म 571 ईस्वी में सऊदी अरब के “मक्का” शहर में हुआ था। जिस दिन हजरत मोहम्मद का जन्म हुआ था वह दिन 12 रबी उल अव्वल की तारीख थी। हजरत मोहम्मद के पिता का नाम अब्दुल्ला था। इस्लामिक कैलेंडर के हिसाब से रबी उल अव्वल तीसरा महीना है। आमतौर पर 12 रबी अव्वल को ही तमाम मुसलमान पैगंबर मोहम्मद साहब का जन्म दिवस मानते हैं लेकिन कई लोग इस बारे में उनके जन्म दिवस की तारीख 9 रबी उल अव्वल भी बताते हैं। इस हिसाब से पूरा सप्ताह ही हज़रत मोहम्मद की दिखाई रौशनी के नाम रहता है। हजरत मोहम्मद के जन्म दिवस के कारण यह दिन सारी दुनिया के मुसलमानों के लिए बहुत ही खास और महत्वपूर्ण होता है।
इस तरह मनाया जाता है यह पर्व
इस दिन मुहम्मद पैगंबर द्वारा दी गई शिक्षाओं को याद किया जाता है। साथ ही इस्लाम के पवित्र ग्रंथ “कुरान” की तिलावत की जाती है। इस्लामिक लोग पैगम्बर मुहम्मद के एक प्रतीक को शीशे के ताबूत में रखकर जुलूस निकालते हैं और हजरत मुहम्मद के जीवन का बखान करते हुए शांति संदेश देते हैं। इस दिन मिठाईयां और पकवान बांटे जाते हैं। साथ ही इस दिन शहद बांटने का भी विशेष महत्व है, क्योंकि यह माना जाता है कि मोहम्मद पैगंबर को शहद बहुत पसंद था। इस दिन विशेष रूप से मस्जिद में जाकर नमाज पढ़ा जाता है। साथ ही यह भी माना जाता है कि जो भी अनुयायी इस दिन सारे नियमों का पालन करता है अल्लाह उसके और भी करीब आ जाता है।