नई दिल्ली: बर्खास्त किए गए आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट और उनके सहयोगी को हत्या के आरोप में दोषी पाया गया है। गुजरात के जामनगर कोर्ट ने उन्हें इस केस में उम्रकैद की सजा सुनाई है।
बता दें कि 1990 में भारत बंद के दौरान जामनगर में हिंसा हो गई थी, जिसमें पुलिस ने 133 लोगों को गिरफ्तार किया था। इस दौरान 25 लोग घायल हो गए थे। जिस दौरान ये घटना घट, उस समय संजीव भट्ट जामनगर के एसएसपी थे।
प्रभुदास माधवजी वैश्नानी की न्यायिक हिरासत के दौरान मौत हो गई थी। इस दौरान पुलिस प्रशासन पर आरोप लगे थे। संजीव भट्ट और अन्य पुलिसकर्मियों के खिलाफ मुकदमा भी दर्ज किया गया था। वहीं, गुजरात सरकार ने मुकदमा चलाने की इजाजत नहीं दी। 2011 में राज्य सरकार ने भट्ट के खिलाफ ट्रायल की अनुमति दे दी।
इसके बाद संजीव भट्ट ने सुप्रीम कोर्ट से याचिका पर विचार करने की अपील की थी, लेकिन कोर्ट ने इनकार कर दिया था। इसके बाद गुजरात हाई कोर्ट ने उनके खिलाफ मुकदमे के दौरान कुछ अतिरिक्त गवाहों को गवाही के लिए समन देने के उनके अनुरोध से इनकार कर दिया था। गुजरात सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया कि निचली अदालत ने 30 साल पुराने हिरासत में हुई मौत के मामले में पहले ही फैसले को 20 जून के लिए सुरक्षित रखा है।
जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस अजय रस्तोगी की सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने गुजरात सरकार व अभियोजन पक्ष की दलील को माना कि सभी गवाहों को पेश किया गया था, जिसके बाद फैसला सुरक्षित रखा गया है।
बर्खास्त, आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट, सहयोगी को हत्या के आरोप में दोषी पाया गया है। गुजरात के जामनगर कोर्ट ने उन्हें इस केस में उम्रकैद की सजा सुनाई है।