नई दिल्ली: यूपी के जनपद सोनभद्र में हुए खुनी संघर्ष में 10 लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी, जबकि 25 लोग घायल हो गए। सत्ता पक्ष और विपक्ष में इस मामले को लेकर जारी घमासान के बीच, इस मामले की जो वजहें सामने आयी है, वो हैरान कर देने वाली है। स्थानीय लोगों के मुताबिक 2 जातियों की लड़ाई और राजस्व विभाग के फर्जीवाड़े के कारण ये घटना हुई।
प्रधान के समर्थकों ने की फायरिंग
दरअसल पूरा मामला उस 100 बीघे जमीन से जुड़ा है,जिस पर कब्ज़ा ज़माने के लिए प्रधान अपने समर्थकों के साथ पहुंचे थे। जमीन पर कब्जे का जब ग्रामीणों ने विरोध किया तो प्रधान ने अपने समर्थकों को कहकर फायरिंग करवा दी, जिसमें 10 लोगों की मौत हो गयी और 25 लोग घायल हो गए। मरनेवालों में 3 महिलाएं भी शामिल है। वहीं घायलों में कई की हालत नाज़ुक बनी हुई है।
दो जातियां आमने-सामने
स्थानीय लोगों के मुताबिक उम्भा गांव में 200 बीघे जमीन का विवाद लंबे समय से चला आ रहा है और इस जमीन पर कब्जे को लेकर गुर्जर (भूर्तिया) और गोड़ बिरादरी के लोग आमने-सामने आते रहे हैं। हालांकि इससे पहले मामले को बातचीत से सुलझा लिया जाता था, लेकिन बुधवार को ऐसा नहीं हुआ। 2 साल पहले प्रधान ने 100 बीघे की रजिस्ट्री करवाई थी, जिसके बाद बुधवार को वो अपने काफिले के साथ जमीन पर कब्ज़ा ज़माने पहुंचे। लोगों की मानें तो प्रधान की मंशा 200 बीघे जमीन को जोतकर उस पर कब्ज़ा ज़माने की थी।
खूनी रंग में रंगी खेत की जमीन
प्रधान यज्ञदत्त सिंह, गुर्जर बिरादरी के लोगों के साथ जमीन पर कब्ज़ा ज़माने पहुंचे। जैसे ही इसकी खबर गोड़ बिरादरी के लोगों को मिली तो उन्होंने विरोध करना शुरू कर दिया। मामले ने तुल पकड़ लिया और दोनों पक्षों में झड़प शुरू हो गयी। गुर्जरों ने असलहे और गड़ासे से हमले किए जबकि गोड़ जाति के लोग पथराव करते रहे और लाठी डंडे विरोधियों पर बरसाते रहे। देखते देखते खेत की जमीन खून से रंग गई और चारों और चीख पुकार मच गई।
राजस्व विभाग का फर्जीवाडा
वहीं, इस पुरे मामले में राजस्व विभाग का फर्जीवाडा भी सामने आया है। आरोप है कि इस मामले में तीसरा पक्ष आदर्श कोऑपरेटिव सोसाइटी है, जिनके नाम से उम्भा गांव में 600 बीघा जमीन है। सोसाइटी का रजिस्ट्रेशन 1973 में ही समाप्त हो गया था, लेकिन तब से इस बात को लेकर विवाद है कि इस जमीन का मालिकाना हक़ किसके पास है। प्रधान का कहना है कि उन्होंने दो साल पहले जमीन खरीदी, लिहाज़ा इस जमीन पर उनका हक़ है, जबकि गोड़ बिरादरी के लोगों का कहना है कि जमीन को वो वर्षों से जोतते आये हैं और उपार्जन करते आये हैं।
ऐसे में सवाल ये उठता है कि जमीन पर विवाद को सुलझाने के लिए राजस्व विभाग ने क्या किया ? राजस्व विभाग को जब पता था कि जमीन के इतने बड़े हिस्से पर विवाद है तो उसने इसकी जानकारी प्रशासन को क्यों नहीं की या एहतियात के कदम क्यों नहीं उठाए ? प्रधान की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं कि, उन्होंने विवादित जमीन को किस तरह से अपने नाम करवाया। बहरहाल जांच जारी है और जल्द ही पूरी सच्चाई लोगों के सामने आने की उम्मीद है।