जनतंत्र डेस्क, नई दिल्ली: आम भारतीय शराब में बिना पानी मिलाए उसे पीने की कल्पना भी नहीं कर सकता। दारू के साथ पानी-सोडे के इस अटूट रिश्ते को शराब कंपनियां भी समझती हैं। शायद तभी शराब के विज्ञापन पर प्रतिबंध होने के बावजूद ये कंपनियां पानी, सोडे के ब्रांड के तौर पर टीवी-अखबार में नजर आती हैं और उनका संदेश आसानी से अपने टार्गेट ऑडियंस तक पहुंच जाता है।
शराब में पानी मिलाने का यह चलन हमारे यहां कुछ ज्यादा ही है। हम भारतीय पानी, सोडा, कोक, जूस और न जाने क्या-क्या मिलाकर इसे पीते हैं। क्या इसकी वजह यह है कि आम भारतीयों के लिए खालिस शराब सीधे हजम करना बस की बात नहीं? व्हिस्की की बोतल सीधे मुंह में लगाकर पीता हमारा हीरो क्यों मर्दानगी का प्रतीक बन जाता है? औसत भारतीय आखिर शराब में पानी क्यों मिलाते हैं? आइए, समझते हैं।
भारत में बहुत सारी व्हिस्की कंपनियां इसे तैयार करने में molasses या शीरे का इस्तेमाल करती हैं। इस शीरे से आम तौर पर रम बनती है। चूंकि, भारत में फिलहाल इसपर कानूनी रोक नहीं, इसलिए भारतीय मझोले व्हिस्की ब्रांड मॉल्ट के साथ-साथ molasses का भी इस्तेमाल करती हैं।
दरअसल, यह गन्ने से चीनी तैयार करते वक्त बनने वाला एक गहरे रंग का बाइ-प्रोडक्ट है. फर्मटेंशन की प्रक्रिया से गुजरने के बाद इस molasses को डिस्टिल करके शराब तैयार की जाती है। माना जाता है कि अधिकतर IMFL का बेस इसी से तैयार किया जाता है। ऐसे में जब आप इन इंडियन व्हिस्की को बिना तरल मिलाए सीधे ‘नीट’ पीएंगे तो यह हमारे हलक को चीरते हुए नीचे जाता महसूस होता है। यानी पानी मिलाकर इस कड़वाहट को बैलेंस करना एक बड़ी मजबूरी है। पीने वाले अब ये समझ गए होंगे कि भारतीय नीट क्यों नहीं पी सकते।