रश्मि सिंह|Jawaharlal Nehru Birthday: देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु का आज 134 वा जन्मदिवस है। आज हम लोग जवाहरलाल नेहरु के पूरी जिवनी के बारे में बताएगें। आपको बता दें जवहारलाल नेहरु और उनके पिता मोतीलाल नेहरु में कुछ समानताएं और अंतर है। पिता मोतिलाल चाहते थे कि जवाहर बैरिस्टर बनें, लेकिन क्या वे अपने पिता के नक्शेकदम पर चल सके थे या फिर उन्होंने अपने लिए एक अलग ही रास्ता चुना लिया था। देखा जाए तो जहां एक मामले में नेहरु पिता का अनुसरण करने में नाकाम रहे तो वहीं दूसरे मामले में तो वे अपने पिता से कहीं आगे निकल गए थे। 14 नवंबर को जवाहर लाल नेहरु का जन्मदिन है और इस दिन भारतीय इतिहास के बड़े किरदारों के करियर की रोचक जानकारी देने वाला है।

घर से हुई थी पढ़ाई की शुरुआत
पंडित जवाहरलाल नेहरु का जन्म 14 नवंबर 1889 को इलाहबाद में हुआ था। उनके पिता मोतीलाल नेहरु एक धनी वकील और सारस्वत कौल ब्राह्मण समुदाय के कश्मीरी पंडित थे। उनकी माता स्वरुपरानी थुस्सू लाहौर के कश्मीरी ब्राह्मण परिवार से थी। उनकी शुरुआत पढ़ाई घर में ही हुई। घर में ही उन्हें पढ़ाने शिक्षक आया करते थे। एक शिक्षक फार्डिनेंड टी ब्रूक्स के प्रभाव के कारण ही उनकी विज्ञान और थोयोसॉफी में हरही रुचि पैदा हुई थी।
वकालत करने के प्रयास
1910 में इंग्लैडं आने के बाद नेहरु ने इनर टेम्पल में कानून की पढ़ाई की और 1912 में भारत में लौटने के लिए बाद इलाहबाद उच्च न्यायालय में अधिवक्ता के तौर पर पंजीकृत हुए और बैरिस्टर का काम शुरु कर दिया। लेकिन पिता के मश्हूर और काबिल वकील होने के बावजूद उनकी रुचि वकालत में नहीं थी।
राजनीति में रूचि बढी
कॉलेज के समय से ही जवागरलाल की रुचि वकालत में कम राजनीति में अधिक थी। इंग्लैंड में बिताए सात साल में उनमें फैबियन समाजवाद और आयरिश राष्ट्रवाद के ले एक तर्क संगत नजरिया पनप चुका था। भारत लौटने के बाद ही वे राष्ट्रीय राजनीति में गहरी रुचि लेने लगे थे। उस समय कांग्रेस में नरमपंथियों को बोलबाला था। वे कांग्रेस के कामकाज और स्वतंत्रता आंदोलन में की गति से खुश नहीं थे।
राजनीति में पिता को भी पीछे छोड़ दिए
जहां पिता मोतीलाल नेहरु एक वरिष्ठ कानूनविद और प्रमुख कांग्रेसी नेता थे, वहीं नेहरु एक युवा नेता के रुप में उभर रहे थे। जब कांग्रेस में नेहरु रिपोर्ट पर विवाद हुआ तो जवाहरलाल नेहरु उसका विरोध करने में सबसे अग्रणी नेताओं में से एक थे क्योंकि इस रिपोर्ट में पूर्ण स्वराज की मांग नहीं की गई थी। इसके बाद से नेहरु ने पीछे मुडकर नहीं देखा और धीरे-धीरे उनकी कांग्रेस में साख बहुत अधिक बढ़ती चली गई और 1940 के बाद ही वे देश के प्रधानमंत्री पद के दावेदार हो गए थे। राजनीति में वे अपने पिता से कहीं आगे निकल गए थे।