जनतंत्र डेस्क, नई दिल्ली: योग सिर्फ एक शारीरिक अभ्यास नहीं है, यह गूढ़ता पूर्ण भावनात्मक एकीकरण एवम आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग है, जिससे हमें सभी कल्पनाओं से परे स्थित आयाम की एक झलक मिलती है। ‘योग’ यह शब्द 19 वीं शताब्दी में संस्कृत से लिया गया है जिसका अर्थ है ‘संघ’ और ‘आसन’, या ‘मुद्रा’।
योग एक पूर्ण विज्ञान है; यह शरीर, मन, आत्मा और ब्रह्मांड को एकजुट करती है। यह हर व्यक्ति को शांति और आनंद प्रदान करता है। यह एक व्यक्ति के व्यवहार, विचारों और रवैये में भी महत्वपूर्ण परिवर्तन लाता है। योग के दैनिक अभ्यास से हमारी अंतः शांति, संवेदनशीलता, अंतर्ज्ञान और जागरूकता बढ़ती है।
योगा का महत्व
योग का अर्थ है जोड़ना। जीवात्मा का परमात्मा से पूरी तरह से एक हो जाना ही योग है। योगाचार्य महर्षि पतंजली के अनुसार, अपने चित्त को एक ही जगह स्थापित करना योग है, ‘योगश्च चित्तवृत्ति निरोध’।
जैसे पतंजलि के योग सूत्र में वर्णित है – ‘स्थिरम सुख़म आसनम’ का अर्थ है की योगासन प्रयास और विश्राम का संतुलन है। हम आसन में आने के लिए प्रयास करते हैं और फिर हम वहीं विश्राम करते हैं। योगासन हमारे जीवन के हर पहलू में संतुलन लाती है। यह हमें प्रयास करने के लिए सिखाता है और फिर समर्पण, परिणाम से मुक्त होने का ज्ञान देता है। योगासन हमारे शारीरिक लचीलेपन को बढ़ाता है और हमारे विचारों को विकसित करता है।
योगासन साँसों के लिए एवम् सजगता के साथ किया जाना चाहिए। जब हम अपने हाथों को योग के लिए उठाते हैं, तो पहले हम अपने हाथ के प्रति सजग होते हैं और फिर हम इसे धीरे-धीरे उठाते हैं, साँस के साथ लय में करते हैं। योगासन के एक मुद्रा से दुसरे मुद्रा में जाना एक नृत्य की तरह सुंदर है। प्रत्येक आसन में हम जो कुछ भी सहजता से कर सकते है, उससे थोड़ा ज्यादा करें और फिर उसी में आराम से विश्राम करे यही योगाभ्यास की कुंजी है। शरीर को अपनी स्वीकार्य सीमा से परे ले जाने पर ये आसन हमारे मन का विकास करते हैं।
पारंपरिक बैठे योगासनों के कुछ उदाहरण हैं:
- पद्मासन (कमल मुद्रा) – जांघों के ऊपर पैरों को टिकाकर क्रॉस-लेग किया जाता है।
- सिद्धासन (संपूर्ण या पूर्ण मुद्रा) – शरीर के करीब पैरों के साथ क्रॉस-लेग किया हुआ और एक पैर दूसरे के ऊपर टिका होता है।
- वज्रासन (वज्र मुद्रा) – पैरों के तलवे और पैरों को जमीन पर टिकाकर और नितंबों को एड़ी पर टिकाकर बैठे।