रश्मि सिंह|karnataka: दिवाली की त्योहार पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन लोगों के द्वारा नए कपड़े पहनकर पटाखे फोड़कर त्योहार मनाने की प्रथा है। पर एक ऐसा गांव भी है जहां आज भी दिवाली नहीं मनाया जाता है। इतर जिले के लोकिकेरे के ग्रामीणों द्वारा दिवाली को नहीं मनाया जाता है। बताया जाता है कि पिछले कुछ सदियों से इस शहर के लोगों ने दिवाली को मनाना बंद कर दिया है।
कर्नाटक के इस गांव में नहीं मनाई जाती दिवाली
इतर जिले लोकिकेरे गांव में आज से करीब 200 साल पहले दिवाली के दिन वहीं ग्रामीणों का कहना है कि त्योहार के दौरान कोई भी शुभ कार्य नहीं करने की पीढ़ी-दर पीढ़ी यही परंपरा चली आ रही है। अनुसूचित समुदाय के कई लोगों के अलावा नेताओं और चरवाहों की आबादी वाले इस गांव में दिवाली नहीं मनाई जाती है। यह व्यवस्था गांव के बुजुर्गों द्वारा दो सौ वर्षों से भी अधिक समय से चलायी जा रही है। हालांकि अधिक ग्रामीण विजयदशमी और महालया अमावस्या के दिन ज्येष्ठ उत्सव करते है। उस समय उनके द्वारा दिवाली की तरह जश्न मनाया जाता है। इसके अलावा ग्रामीणों का मानना है कि अगर दिवाली के दिन त्योहार मनाया गया तो ज्यादा अशुभ होगा। दिवाली के त्योहार के दौरान वे उत्सव मनाना छोड़ा देते है और दूसरे शहरों में बसे अपने रिश्तेदारों के घर चले जाते है और भोजन और दावत करते है। ग्रामीणों ने बताया कि दिवाली केवल लोकिकेरे गांव में नहीं मनाई जाती है।
इस वजह से नहीं मनाती दिवाली यहां
दो शताब्ती पहले लोकिकेरे गांव के कुछ बुजुर्ग त्योहार मनाने के लिए काशी घास लाने के लिए जंगल में गए थे। लेकिन घास लाने गया कोई भी वापस नहीं आया। ग्रामीणों द्वारा हर जगह तलाश करने पर भी उनका कोई पता नहीं चल सका। इसके बाद गांव के बुर्जुर्गों ने गांव में दिवाली उत्सव नहीं मनाने का निर्णय लिया। ग्रामीणों का मानना है कि अगर गांव में यह त्योहार मनाया गया तो अशुभ होगा। ऐसे भी उदाहरण है कि जब वे गांव में त्योहार मनाने की कोशिश करते है तो कुछ बुरा घटित होता है।