दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ (DUSU) का इतिहास –
दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ (DUSU) चुनावों का इतिहास भारतीय छात्र राजनीति का एक अहम हिस्सा माना जाता है। इन चुनावों की शुरुआत 1954 में हुई थी और तब से यह दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रों के लिए लोकतांत्रिक भागीदारी का बड़ा मंच बन गया। DUSU को देश की छात्र राजनीति की सबसे प्रतिष्ठित और प्रभावशाली संस्था माना जाता है, क्योंकि यहां से राजनीति की शुरुआत करने वाले कई नेता बाद में राष्ट्रीय राजनीति में भी बड़े पदों तक पहुंचे।
शुरुआती दौर में यह चुनाव एक तरह से छात्र नेतृत्व और विश्वविद्यालय प्रशासन के बीच सेतु का काम करते थे। 1970 और 1980 के दशक में DUSU चुनावों में राष्ट्रीय छात्र संगठन जैसे ABVP (अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद) और NSUI (नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ इंडिया) की सक्रियता बढ़ी। धीरे-धीरे ये चुनाव अखिल भारतीय राजनीति की दिशा तय करने वाले मंच की तरह माने जाने लगे।कई बड़े नेता जैसे अरुण जेटली, अजय माकन, विजय गोयल, राजीव गोस्वामी और अलका लांबा ने DUSU से अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की। यह भी खास है कि यहां से निकले कई छात्र नेता राष्ट्रीय संसद और सरकार में अहम पदों तक पहुंचे।
समय के साथ इन चुनावों में मुद्दों का स्वरूप भी बदलता गया। पहले जहां मुख्य रूप से छात्र-संबंधी मुद्दों पर बहस होती थी, वहीं बाद में राष्ट्रीय राजनीति और वैचारिक टकराव भी चुनाव का अहम हिस्सा बनने लगे। पोस्टर, नारेबाजी और पर्चों से लेकर सोशल मीडिया तक का इस्तेमाल इन चुनावों को और व्यापक बनाता गया।आज DUSU चुनाव केवल विश्वविद्यालय के छात्रों की आवाज़ नहीं हैं, बल्कि इन्हें भारतीय राजनीति का भविष्य समझा जाता है। यहां जीतने वाला संगठन या उम्मीदवार राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाने में सफल रहता है और यही वजह है कि DUSU चुनावों को छात्र राजनीति का “मिनी लोकसभा चुनाव” भी कहा जाता है ।
2025 के DUSU चुनाव-