अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की बेबाक और विवादास्पद छवि एक बार फिर चर्चा में है, जब एक अमेरिकी राजनीतिशास्त्री ने उनके लिए सार्वजनिक रूप से अपशब्द का इस्तेमाल किया। जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी की एसोसिएट प्रोफेसर कैरल क्रिस्टीन फेयर ने एक टॉक शो में पाकिस्तानी मूल के ब्रिटिश पत्रकार मोइद पीरजादा के साथ बातचीत के दौरान ट्रंप को “चू…या” कहकर संबोधित किया। हिंदी में इस शब्द का सामान्य अर्थ “मूर्ख” है, लेकिन यह एक अपशब्द के रूप में जाना जाता है। इस बयान ने सोशल मीडिया पर तहलका मचा दिया और व्यापक बहस छिड़ गई।
फेयर ने न केवल ट्रंप के लिए आपत्तिजनक शब्द का उपयोग किया, बल्कि उनके प्रशासन की कार्यक्षमता पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा, “मेरे भीतर का आशावादी मानता है कि हमारी नौकरशाही स्थिति को संभाल लेगी, लेकिन मेरा निराशावादी पक्ष कहता है कि अभी तो सिर्फ छह महीने हुए हैं, और हमें इस हमें चार साल इस चू…या को झेलना पड़ेगा।’ इस पर पीरजादा ने कहा, ‘यही वह शब्द है जो मैं उर्दू में बार-बार इस्तेमाल करता हूं और मेरे कई दर्शक इस पर आपत्ति जताते हैं। आपने इसे एक अंग्रेजी चर्चा में इस्तेमाल कर लिया है।’ मोइद पीरजादा ने आगे कहा कि इस शब्द का इतना महत्व है कि कई बार आप इसे कहे बिना किसी स्थिति को समझा ही नहीं सकते।
ट्रंप प्रशासन पर कड़ा प्रहार
कैरल क्रिस्टीन फेयर ने ट्रंप प्रशासन के अधिकारियों की योग्यता पर भी तीखी टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि प्रशासन के कई अधिकारी अपने क्षेत्र में पर्याप्त विशेषज्ञता नहीं रखते, जिसके कारण उन्हें एकमात्र प्रभावशाली शक्ति मानना आकर्षक लगता है। हालांकि, उन्होंने अमेरिकी नौकरशाही की ताकत पर भरोसा जताया, जो पिछले 25 वर्षों से भारत-अमेरिका संबंधों को मजबूत करने में लगी है। फेयर ने यह भी कहा कि हाल के वर्षों में विदेश विभाग के कई अनुभवी कर्मचारियों का नुकसान हुआ है, जिससे विशेषज्ञता की कमी एक बड़ी चुनौती बन गई है।
कौन है कैरल क्रिस्टीन फेयर?
कैरल क्रिस्टीन फेयर एक प्रख्यात अमेरिकी राजनीतिशास्त्री हैं, जो जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी के वॉल्श स्कूल ऑफ फॉरेन सर्विस में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। उनकी विशेषज्ञता दक्षिण एशियाई राजनीति और सैन्य मामलों में है। उन्होंने रैंड कॉर्पोरेशन, अफगानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र सहायता मिशन, और यूनाइटेड स्टेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ पीस में महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाई हैं। फेयर ने पाकिस्तानी सेना और आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा पर कई किताबें लिखी हैं, जिनमें उनकी बेबाक और विवादास्पद टिप्पणियों ने उन्हें सुर्खियों में रखा है। उनकी यह स्पष्टवादिता पहले भी कई बार विवादों का कारण बनी है, जैसे कि 2017 में एक श्वेत राष्ट्रवादी के साथ उनकी सार्वजनिक झड़प।
इस घटना ने न केवल ट्रंप प्रशासन की आलोचना को बल दिया, बल्कि यह भी दिखाया कि राजनीतिक चर्चाओं में भाषा की सीमाएं कितनी पतली हो सकती हैं। सोशल मीडिया पर इस वीडियो के वायरल होने के बाद कुछ यूजर्स ने इसे मजाकिया बताया, तो कुछ ने सार्वजनिक मंच पर ऐसी भाषा के इस्तेमाल पर सवाल उठाए