समाजवादी पार्टी (सपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव के आधिकारिक फेसबुक पेज को अचानक सस्पेंड कर दिए जाने से न केवल पार्टी कार्यकर्ताओं में आक्रोश बढ़ गया, बल्कि पूरे राजनीतिक परिदृश्य में यह मुद्दा गरमा गया। तकरीबन 18 घंटे बाद 11अक्टूबर की सुबह अखिलेश यादव का फेसबुक पेज बहाल कर दिया।
अखिलेश यादव का फेसबुक पेज जिसमें 80 लाख से अधिक फॉलोअर्स थे, जो कि अखिलेश के लिए इतनी बड़ी संख्या में जनता से सीधे संवाद का प्रमुख माध्यम था। अखिलेश अक्सर अपने फेसबुक पेज पर राजनीतिक मुद्दों, सामाजिक न्याय और जनहित के विषयों पर सक्रिय रूप से पोस्ट करते रहे हैं। सस्पेंशन के ठीक बाद सपा नेताओं ने इसे लोकतंत्र पर हमला बताया था, जबकि विपक्षी दलों ने इसे ‘अघोषित इमरजेंसी’ का हिस्सा बताया। सपा ने इस कदम को केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार की साजिश का हिस्सा बताया था, जो कि विपक्षी आवाजों को दबाने की कोशिश थी। फेसबुक ने कोई आधिकारिक कारण नहीं बताया, लेकिन सरकारी सूत्रों के अनुसार यह एक पोस्ट के कारण था जो प्लेटफॉर्म के सामुदायिक दिशानिर्देशों का उल्लंघन करती थी। सपा ने इसे राजनीतिक दबाव का परिणाम बताया, जबकि सरकार ने इनकार किया। सपा प्रमुख अखिलेश यादव के अकाउंट सस्पेंड होने पर सपा के तमाम नेताओं की प्रतिक्रियाएं आई।
पार्टी प्रवक्ता फखरुल हसन चांद ने एक्स (पूर्व ट्विटर) पर लिखा, “देश की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव का फेसबुक अकाउंट सस्पेंड करना लोकतंत्र पर सीधा हमला है। भाजपा सरकार ने अघोषित इमरजेंसी लगा दी है, जहां हर विरोधी आवाज को दबाया जा रहा है।” इसी तरह, सपा की राष्ट्रीय महासचिव पूजा शुक्ला ने कहा, “यह कोई साधारण अकाउंट नहीं है—यह अखिलेश यादव की आवाज है, करोड़ों लोगों की आवाज! फेसबुक को अपनी सीमाएं याद रखनी चाहिए। मेरठ की सरधना विधानसभा सीट से सपा विधायक अतुल प्रधान ने भी एक्स पर तीखी प्रतिक्रिया दी है,अखिलेश यादव का फेसबुक अकाउंट बंद करवाकर सरकार उनको जनता के दिलों से दूर नहीं कर सकती! जनप्रिय लोक नेता है! इस पूरे मामले पर अभी तक बीजेपी की ओर से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है, लेकिन सपा ने इसे ‘विपक्ष दमन’ का हिस्सा बताया. अखिलेश यादव का फेसबुक पेज सस्पेंड होने और फिर बहाल किए जाने से राजनीतिक और डिजिटल दोनों स्तरों पर एक नई बहस शुरू हो गई है,क्या सोशल मीडिया अब वाकई ‘स्वतंत्र’ मंच रह गया है? उधर भाजपा समर्थक और आलोचक इसे “टेक्निकल ग्लिच” या “फेक न्यूज/कास्ट प्रोपेगैंडा” बता रहे हैं,सोशल मीडिया के प्लेटफार्म X पर @SaffronChargers हैंडल से टिप्पणी की गई है कि “फेसबुक ने अखिलेश का पेज सस्पेंड किया जैसे कोई लो-लेवल ट्रोल हो। ग्राम प्रधानों को भी इतना सम्मान मिलता है! लेकिन फायदा यह कि फेसबुक पर कम कास्ट-बेस्ड फेक न्यूज और प्रोपेगैंडा दिखेगा ।
@MeghUpdates हैंडल से लिखा गया “सपा चीफ के लिए बड़ी शर्मिंदगी—8 मिलियन फॉलोअर्स वाला पेज बिना नोटिस सस्पेंड। नेटिजन्स कह रहे हैं कम कास्ट प्रोपेगैंडा, सपा नेता दबाव का रो रहे।” भारत में फेसबुक (मेटा) जैसे प्लेटफॉर्म्स पर राजनीतिक कंटेंट की निगरानी पहले से ही विवादास्पद रही है। फिलहाल अखिलेश यादव के फेसबुक पेज क्यों सस्पेंड और बहाल हुआ इसको लेकर फेसबुक (Meta)की ओर से अभी तक कोई आधिकारिक स्पष्टीकरण या बयान नहीं दिया गया है. लेकिन सपा का दावा है कि यह मेटा का ‘सरकारी दबाव’ में लिया गया फैसला है। जबकि भाजपा की तरफ से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है.. सोशल मीडिया पर यह बहस जारी है कि क्या यह टेक्निकल एरर था या कुछ और? समय बताएगा।