इलेक्ट्रिक डेटोनेटर की जगह डिजिटल डेटोनेटर का प्रयोग करने के आदेश के बाद कोल कंपनियों ने बदलाव को स्वीकार नहीं किया अब जब पानी सिर के ऊपर निकल गया,तब डीजीएमएस का डंडा इन कंपनियों पर पड़ा है। कार्रवाई का नतीजा यह रहा कि कोल इंडिया लि. (सीआईएल) की देशभर में स्थित 300 अंडरग्राउंड माइंस में उत्पादन या तो प्रभावित हो गया है यह फिर उत्पादन पूरी तरह से ठप पड़ गया है। सीधे तौर पर प्रभावित हुई खदानों में उत्पादन न होने से देश भर में कोयले की कमी होने की संभावना जताई जा रही है। सूत्रों की मानें तो अब तक कंपनियां ‘स्टाक’ में रखे कोयले की आपूर्ति कर रही थीं लेकिन स्टाक भी खत्म होने की कगार पर पहुंच गया है। कोल इंडिया की सहायक कंपनी वेस्टर्न कोल फील्ड लिमिटेड में भी कई खदानों में कोयला उत्पादन न होने और कुछ में क्षतिग्रस्त होने की बात सामने आ रही है। गौरतलब है कि मोदी सरकार ने सुरक्षा चिंताओं और जन सुरक्षा के मद्देनजर अप्रैल 2025 से इलेक्ट्रिक डेटोनेटर के निर्माण, कब्जे और आयात पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया था। उद्योग एवं आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग ने अधिसूचना में कहा है कि केंद्र सरकार का मानना है कि इलेक्ट्रिक डेटोनेटर ‘खतरनाक’ प्रकृति का है, जबकि डिजिटल डेटोनेटर सुरक्षित है।

कोयला कारोबार से जुड़े जानकार बताते हैं कि पिलछे 1 वर्ष से यह प्रतिबंध लगाया जा रहा है और कोल कंपनियां बार-बार एक्सटेंशन ले रही थीं, 1 जुलाई को लगाए गए प्रतिबंध की अवधि 30 सितंबर को खत्म हो गई। कोयला कंपनियों को उम्मीद थी कि पिछले कुछ समय से मिल रहा एक्सटेंशन डीजीएमएस की तरफ से उन्हें राहत के तौर पर इस बार भी मिलेगा, लेकिन डीजीएमएस ने ‘सुरक्षा’ को प्राथमिकता दी और एक्सटेंशन देने से इनकार कर दिया। इसके बाद कोल कंपनियों के समक्ष संकट पैदा हो गया है। जानकारों के मुताबिक 1 अक्टूबर से ही कोयले का उत्पादन ठप पड़ हुआ है। अंडरग्राउंड में ब्लास्टिंग नहीं होने के कारण इस स्थिति का सामना करना पड़ रहा है। कोयला कंपनियों के बार-बार एक्सटेंशन मांगे जाने से डीजीएमएस खासा नाराज हुआ है। इसके पीछे की एक बजह कोल का रवैया भी है..जो डीजीएमएस को पसंद नहीं आया इसलिए एक्सटेंशन देने से डीजीएमएस ने इनकार कर दिया। बिजनेस स्टैंडर्ड की एक रिपोर्ट में कहा गया कि अगस्त महीने में कोल इंडिया के उत्पादन में 6% तक की गिरावट आई, जबकि इसके उलट सितंबर महीने के द हिंदू की एक रिपोर्ट में कहा गया की कोयला उत्पादन में 8% की वृद्धि सूत्रों ने बताया कि बारिश के पहले कंपनियां उत्पादन बढ़ा देती हैं, ताकि बारिश के दौरान कम उत्पादन का बैकलाग पूरा कर सकें। पिछले 15 दिनों से उत्पादन बंद होने के बाद इसी स्टाक के सहारे सप्लाई चेन को सुचारु सप्लाई की जार ही है। अब स्टाक अपने न्यूनतम स्तर पर पहुंच रहा है, इसलिए उद्योग सहित बिजली कंपनियां भी चिंतित हो गईं हैं। अगर समय पर कोयला उत्पादन शुरू नहीं होता है तो इन दोनों सेक्टरों के लिए हानिकारक हो सकता है।
सूत्रों के मुताबिक़ कोल कंपनियां इसलिए आनाकानी कर रही है क्योंकि डिजिटल डेटोनेटर की लागत काफी अधिक है। इलेक्ट्रिक डेटोनेटर जहां 7 रुपये में आता है वहीं डिजिटल डेटोनेटर 300 रुपये का है। दोनों के इस्तेमाल से अंडरग्राउंड में 1 टन कोयला और ओपन में 500 किलो कोयला निकलता है, इसलिए लागत के अनुसार डिजिटल मॉडल काफी महंगा हो रहा है और कोल कंपनियां समर्थन नहीं कर पा रही हैं।
इस बीच वेस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड वेकोलि का कहना है कि 17 अंडर ग्राउंड माइंस हैं जिनमें प्रति दिन 7,300 टन कोयला उत्पादन होता है। पुराने कॉपर डिले डेटोनेटर (सीडीडी) का स्टाक होने से कुछ दिनों तक उत्पादन संभव हो सका है, लेकिन 2 दिन पूर्व स्टाक खत्म हो गया है, जिसके कारण 15 खदानों में उत्पादन पूरी तरह से बंद हो गया है। 2 खदानों में इलेक्ट्रॉनिक्स डेटोनेटर का ट्रायल रन शुरू कर दिया गया है। अब तक 37,893 टन कोयला उत्पादन का नुकसान वेस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड को उठाना पड़ा है।