पंडित छन्नूलाल मिश्र का नाम भारतीय शास्त्रीय संगीत के उन महान विभूतियों में लिया जाता है, जिन्होंने अपनी आवाज़ और कला के माध्यम से बनारस घराने की परंपरा को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया। उनका जन्म वाराणसी में हुआ था और बचपन से ही उन्हें संगीत का वातावरण मिला। बनारस की गलियों से निकले इस गायक ने अपनी साधना और लगन से देश-विदेश में भारतीय संगीत की प्रतिष्ठा को स्थापित किया। उनका निधन संगीत जगत के लिए अपूरणीय क्षति माना जा रहा है।
पंडित मिश्र ठुमरी, दादरा, चैती और कजरी जैसे लोकनिष्ठ शास्त्रीय रूपों के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध रहे। उनकी गायकी में बनारस की मिट्टी की खुशबू और गंगा-जमुनी तहज़ीब की झलक मिलती थी। वे गायन के साथ-साथ मंच पर अपनी आत्मीयता और भक्ति भाव से श्रोताओं को बांधने में माहिर थे। उनकी आवाज़ में लोक और शास्त्र का अद्भुत संगम दिखाई देता था।
उनके संगीत का एक बड़ा हिस्सा भक्तिमय रहा। विशेषकर भजन और रामायण-महाभारत से जुड़ी प्रस्तुतियों ने उन्हें आम जनमानस से जोड़े रखा। वे न केवल शास्त्रीय संगीत के विद्वान थे, बल्कि भारतीय संस्कृति और अध्यात्म के प्रचारक के रूप में भी पहचाने जाते थे। यही वजह थी कि उनकी गायकी श्रोताओं के हृदय तक सीधा असर करती थी।
पंडित छन्नूलाल मिश्र को भारत सरकार ने पद्मभूषण और पद्मविभूषण जैसे उच्च सम्मान प्रदान किए थे। उनकी पहचान केवल एक गायक की नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति के जीवित प्रतीक के रूप में होती थी। देश-विदेश में उनकी प्रस्तुतियाँ भारतीय संगीत की विरासत को सम्मान दिलाती रही। वे बनारस घराने के ऐसे ध्वजवाहक थे, जिनकी परंपरा पीढ़ियों तक गाई और याद की जाएगी।
उनके निधन से शास्त्रीय संगीत की दुनिया में एक गहरा खालीपन आ गया है। वाराणसी ही नहीं, पूरा देश आज एक ऐसे कलाकार को खोने का शोक मना रहा है, जिसने अपने सुरों से जीवन भर लोगों को भक्ति, प्रेम और कला का संदेश दिया। पंडित मिश्र की स्मृतियाँ और उनका संगीत आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा का स्रोत बने रहेंगे।