उच्चतम न्यायालय ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा है कि बच्चों को छोटी उम्र से ही यौन शिक्षा दी जानी चाहिए। अदालत ने यह बात एक 15 वर्षीय किशोर से जुड़े बलात्कार के मामले की सुनवाई के दौरान कही। न्यायालय का मानना है कि आज के दौर में बच्चों को यौन व्यवहार, सहमति और संबंधों की समझ देना समय की आवश्यकता बन गई है। कोर्ट ने कहा कि अगर बच्चों को शुरुआती उम्र में ही इन विषयों पर सही शिक्षा और जानकारी दी जाए, तो कई तरह की गलतफहमियों और अपराधों को रोका जा सकता है।
मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि आरोपी किशोर और पीड़िता दोनों ही नाबालिग थे और घटना सहमति से जुड़ी जटिल परिस्थितियों में हुई थी। इस पर अदालत ने कहा कि कई बार बच्चों को यह समझ नहीं होती कि उनका व्यवहार कानूनी रूप से अपराध की श्रेणी में आ सकता है। ऐसे में, शिक्षा व्यवस्था का दायित्व बनता है कि वह उन्हें इस दिशा में सही जानकारी और मार्गदर्शन दे ताकि वे गलत कदम उठाने से बच सकें।
अदालत ने स्पष्ट किया कि भारत जैसे देश में अब भी यौन शिक्षा को लेकर समाज में झिझक और असहजता मौजूद है, लेकिन इस विषय पर खुलकर बात करना जरूरी है। न्यायालय ने कहा कि बच्चों को शरीर, भावनाओं और सहमति की समझ देने से वे जिम्मेदार और संवेदनशील नागरिक बन सकेंगे। यह केवल अपराध रोकने का उपाय नहीं, बल्कि समाज में मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य को मजबूत करने का माध्यम भी है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस टिप्पणी के साथ आरोपी किशोर को जमानत दी और कहा कि इस उम्र में बच्चों को दंडित करने के बजाय उन्हें सुधारने और समझाने की दिशा में काम किया जाना चाहिए। अदालत ने कहा कि न्याय केवल सजा देने तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि यह भी देखना चाहिए कि गलती किस कारण से हुई और उसे दोहराने से कैसे रोका जाए।
अंत में न्यायालय ने केंद्र और राज्य सरकारों को सुझाव दिया कि वे स्कूलों में यौन शिक्षा को लेकर स्पष्ट नीति बनाएं और इसे पाठ्यक्रम का अनिवार्य हिस्सा बनाया जाए। कोर्ट की इस टिप्पणी को विशेषज्ञों ने सराहते हुए कहा कि यह कदम न केवल बच्चों की सुरक्षा के लिए जरूरी है, बल्कि एक प्रगतिशील समाज की दिशा में भी महत्वपूर्ण बदलाव ला सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि देश में अभी भी सेक्स एजुकेशन को लेकर झिझक और संकोच बना हुआ है, लेकिन अब समय आ गया है कि इस विषय को सामाजिक और शैक्षणिक दोनों स्तरों पर सामान्य बनाया जाए। अदालत ने यह भी जोड़ा कि अगर बच्चों को छोटी उम्र से ही सही ज्ञान दिया जाए, तो भविष्य में अपराधों की दर में कमी लाई जा सकती है और समाज में एक स्वस्थ दृष्टिकोण विकसित होगा।
15 साल के आरोपी को जमानत देते हुए अदालत ने कहा कि यह मामला सजा से ज्यादा सुधार का है। कोर्ट ने माना कि किशोर उम्र में की गई गलती का कारण कई बार जानकारी की कमी और सामाजिक दबाव भी होता है। इसलिए ऐसे मामलों में न्याय प्रणाली को दंडात्मक दृष्टिकोण से ज्यादा सुधारात्मक रुख अपनाना चाहिए ताकि बच्चे अपना जीवन सुधार सकें।
अंत में सुप्रीम कोर्ट ने सरकार और शैक्षणिक संस्थानों से आग्रह किया कि वे सेक्स एजुकेशन को लेकर स्पष्ट नीतियां तैयार करें और इसे स्कूलों में अनिवार्य विषय बनाया जाए। अदालत ने कहा कि बच्चों को सुरक्षित, शिक्षित और जागरूक बनाना समाज की जिम्मेदारी है। इस फैसले को कई शिक्षाविदों और बाल अधिकार संगठनों ने सराहा है, क्योंकि यह देश में सेक्स एजुकेशन के प्रति नई सोच को बढ़ावा देने वाला कदम माना जा रहा है।