डोनाल्ड ट्रंप का नाम नोबेल शांति पुरस्कार के लिए कई बार सुझाया गया था, खासकर उनके राष्ट्रपति कार्यकाल के दौरान मध्य पूर्व में इज़राइल और अरब देशों के बीच संबंध सुधारने की कोशिशों के बाद। हालांकि, इसके बावजूद उन्हें यह प्रतिष्ठित सम्मान नहीं मिल सका। इसके पीछे कई कारण माने जा रहे हैं, जिनमें राजनीतिक विवाद, नीतिगत अस्थिरता और अंतरराष्ट्रीय समुदाय की मिली-जुली राय प्रमुख हैं।
पहला कारण यह है कि नोबेल शांति पुरस्कार सिर्फ किसी एक समझौते या पहल के लिए नहीं दिया जाता, बल्कि यह देखा जाता है कि उस व्यक्ति ने वैश्विक शांति और स्थिरता के लिए लगातार और व्यापक प्रयास किए हैं या नहीं। ट्रंप के मामले में उनकी विदेश नीति में कई ऐसे कदम शामिल थे जिन्हें विवादास्पद माना गया — जैसे ईरान परमाणु समझौते से हटना, पेरिस जलवायु समझौते से बाहर निकलना और उत्तर कोरिया के साथ अस्थायी संवाद के बाद बढ़ा तनाव।
दूसरा कारण उनकी घरेलू नीतियां और राजनीतिक भाषा रही। ट्रंप का कार्यकाल कई बार विभाजनकारी बयानबाजी और सामाजिक तनावों से जुड़ा रहा। नोबेल समिति आमतौर पर ऐसे नेताओं को प्राथमिकता देती है जिनकी छवि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शांति, संवाद और सहयोग की प्रतीक हो। ट्रंप की नीतियों ने इसके उलट कई देशों के साथ रिश्तों में खटास पैदा की।
तीसरा कारण यह है कि नोबेल समिति राजनीतिक दबाव से स्वतंत्र होकर निर्णय लेती है। हालांकि ट्रंप के समर्थकों का दावा था कि उन्होंने अब्राहम समझौते के माध्यम से ऐतिहासिक काम किया, लेकिन समिति ने इसे “स्थायी वैश्विक शांति” के स्तर पर नहीं माना। उनका मानना था कि ये समझौते सीमित दायरे में थे और लंबे समय की स्थिरता की गारंटी नहीं दे सकते।
आखिरी बात यह है कि नोबेल शांति पुरस्कार केवल “राजनीतिक उपलब्धि” पर नहीं बल्कि “मानवीय दृष्टिकोण” पर दिया जाता है। ट्रंप की नीतियों में प्रवासियों, जलवायु और वैश्विक सहयोग पर सख्ती दिखी, जिससे उनकी छवि “शांति दूत” जैसी नहीं बन पाई। यही वजह रही कि नामांकन होने के बावजूद ट्रंप को यह पुरस्कार नहीं मिल सका।
025 का नोबेल शांति पुरस्कार मैरिया कोरिना माचाडो (María Corina Machado) को दिया गया है।
उनका यह पुरस्का इस कारण दिया गया है क्योंकि उन्होंने वेनेज़ुएला में लोकतंत्र, मानवाधिकार और शांतिपूर्ण बदलाव के लिए लगातार संघर्ष किया है। उनके खिलाफ कार्रवाई, असुरक्षा और राजनीतिक दमन की स्थितियों के बावजूद उन्होंने देश में लोकतांत्रिक आवाज बनाए रखने की कोशिश की।
बेल शांति पुरस्कार का इतिहास यह बताता है कि यह पुरस्कार उन व्यक्तियों या संस्थाओं को दिया जाता है जिन्होंने “राष्ट्रों के बीच भ्रातृत्व बढ़ाने, स्थायी शांति स्थापित करने या संघर्षों को हल करने” में विशेष योगदान दिया हो। इसलिए, न केवल एक समय की घटना या राजनीतिक बयान ही निर्णायक नहीं होते, बल्कि उस व्यक्ति या संस्था की समय में निरंतर और प्रभावशाली भूमिका देखी जाती है।