लोकनायक जयप्रकाश नारायण आंदोलन की उपज और चौधरी चरण सिंह के कट्टर अनुयायी प्रोफेसर किरणपाल के निधन को 1 वर्ष बीत गया.. पश्चिमी यूपी में जाटों के लिए शिक्षा और कृषि योजनाओं में सुधार उनके प्रमुख एजेंडे थे, जो समुदाय की आर्थिक उन्नति से जुड़े थे। जाट इतिहासकारों और समुदायिक स्रोतों के अनुसार, वे जाटों व किसानो के पारंपरिक मुद्दे जैसे गन्ना किसानों की समस्या और आरक्षण की मांग पर मुखर रहे।
पश्चिमी यूपी में जाट राजनीति चौधरी चरण सिंह और चौधरी अजित सिंह जैसे नेताओं की विरासत पर टिकी है, और चौधरी किरण पाल सिंह इस कड़ी का महत्वपूर्ण हिस्सा थे। वे बुलंदशहर के अलावा पश्चिमी उत्तर प्रदेश में तमाम जाट खाप पंचायतों और किसान संगठनों से जुड़े थे, जो क्षेत्र में जाटों की सामाजिक-राजनीतिक एकता बनाए रखने में सहायक होते हैं। पश्चिमी यूपी में जाट बिरादरी की लगभग 17% प्रतिशत आबादी है जो चुनावों में 45 से 50 सीटों पर निर्णायक भूमिका निभाते हैं. 21 अक्टूबर 2024 को मुलायम सिंह यादव सरकार में बेसिक शिक्षा मंत्री रहे प्रोफेसर किरणपाल सिंह के निधन को 1 वर्ष पूरा होने जा रहा है.. प्रोफेसर किरण पाल सिंह की दो बेटियां हैं.. बड़ी बेटी वासु चौधरी (Judicial Service Exam) पास करने के बाद जज के पद पर नियुक्त हुई थी, लेकिन उन्होंने इस पद से इस्तीफा दे दिया है और छोटी बेटी वान्या चौधरी डॉक्टर है..
2013 के मुजफ्फरनगर दंगों के बाद जाट एकता पर संकट आने के बावजूद उन्होंने समुदाय को एकजुट रखने की कोशिश की। सपा के माध्यम से वे जाट-मुस्लिम गठबंधन को मजबूत करने वाले नेताओं में शुमार थे, पूर्व में रही अगौता विधानसभा सीट से प्रो. किरण पाल सिंह पांच बार विधायक चुने गए। यह क्षेत्र पश्चिमी यूपी के बुलंदशहर जिले में आता है, जहां जाट समुदाय की आबादी लगभग 20-25% है,और कृषि-आधारित अर्थव्यवस्था प्रमुख है। बाद में अगौता विधानसभा परिसीमन के चलते खत्म हो गई, उनके लगातार चुनाव जीतने से जाट वोट बैंक को मजबूत करने में समाजवादी पार्टी को मदद मिली, खासकर मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व वाली सपा सरकार में। 2012 में किरनपाल सिंह चुनाव से ठीक पहले रालोद में शामिल हो गए और बुलंदशहर की शिकारपुर विधानसभा सीट से रालोद-कांग्रेस गठबंधन प्रत्याशी रहे लेकिन इस बार उन्हें समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी के आगे हार का सामना करना पड़ा. 22 अक्टूबर 2020 में बुलंदशहर सदर सीट पर हुए उपचुनाव से पहले समाजवादी पार्टी (SPA) छोड़कर भारतीय जनता पार्टी (BJP) का दामन थामा था। इस दौरान सीएम योगी आदित्यनाथ ने पूर्व मंत्री किरणपाल सिंह को बीजेपी की सदस्यता दिलाई थी। लेकिन महज 14 महीने बाद ही एक बार फिर, 21 दिसंबर 2021 को दिल्ली में राष्ट्रीय लोकदल ज्वाइन कर लिया। इस बार उन्हें आरएलडी अध्यक्ष जयंत चौधरी ने पार्टी की सदस्यता दिलाई। पूर्व मंत्री किरनपाल सिंह के देहांत को 21अक्टूबर 2025 को 1 वर्ष पूरा होने जा रहा है.
उससे पहले उनके परिवार ने उनके पैतृक गांव में प्रतिमा के अनावरण का कार्यक्रम रखा गया, जिसे उनकी बेटी वासु चौधरी ने बनवाया था. कार्यक्रम में योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री लक्ष्मी नारायण सिंह, नेता प्रतिपक्ष माता प्रसाद पांडे, हरेंद्र मलिक सहित सपा व के भाजपा के कई दिग्गज नेता मौजूद रहे.आपको बता दें कि 2017 के चुनाव में बीजेपी ने पश्चिम यूपी में 109 में से 81 सीटों पर कब्जा किया था।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 2022 के विधानसभा चुनाव में “80 बनाम 20” का नारा दिया था. लेकिन पश्चिमी यूपी की 6 जिलों की 34 सीटों में से 18 पर गठबंधन ने कब्जा किया तो वहीं 16 सीटें भाजपा के खाते में गई. 2022 में सरकार के गठन पर बागपत जिले के बड़ौत से जीते विधायक
केपी मलिक और मथुरा जिले से लक्ष्मीनारायण के साथ मुरादाबाद से भूपेंद्र चौधरी को मंत्री पद से नवाजा गया। हालांकि 2022 में रालोद और सपा का गठबंधन था। इसलिए कहा गया कि भाजपा को यहां नुकसान उठाना पड़ा, लोकसभा चुनाव आते-आते यह गठबंधन टूट गया. 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा – रालोद के बीच गठबंधन हुआ। लेकिन भाजपा को रालोद का साथ रास नहीं आया
पश्चिमी यूपी की 29 लोकसभा सीटों में से 11 सीट पर सपा-कांग्रेस ने गठबंधन ने जीत दर्ज की। अगस्त 2025 में योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री लक्ष्मी नारायण सिंह ने राष्ट्रीय लोकदल को पनौती बताया था और यहां तक कह दिया था कि यह पार्टी जिसके साथ जाती है उसका बंटाधार हो जाता है। अगस्त महीने में ही राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष जयंत चौधरी का एक वीडियो वायरल हुआ.. जिसमें वह कहते नजर आए.. मेरी बंदिश है, इससे ज्यादा कुछ नहीं कह सकता। जयंत चौधरी के इस वीडियो के बाद BJP की टेंशन बढ़ गई, तमाम तरह के मायने निकाले जाने लगे। 2022 विधानसभा चुनाव और 2024 के लोकसभा चुनाव में जिस तरह से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा का प्रदर्शन रहा, इससे एक बात तो साफ है, कि जाटों का साथ भाजपा के साथ बहुत हद तक नहीं रहा। प्रोफेसर किरण पाल सिंह राजनीति में एक ऐसी शख्सियत थे जिनको अधिकांश जनता ने चंदा देकर चुनाव लड़ाया.. और इसकी वजह थी, उनका जनता के बीच का जुड़ाव पूर्व मंत्री किरणपाल सिंह की बेटी 35 वर्षीय वासु चौधरी ने महज 5 वर्ष की नौकरी के बाद, जज के पद से इस्तीफा दे दिया है। किरण पाल सिंह की राजनीतिक विरासत के तौर पर वासु चौधरी को जाटों में तमाम खाप पंचायतों, किसान संगठनों का अपार समर्थन मिल रहा है। दोनों ही संगठनों के शीर्ष नेता वासु चौधरी के संपर्क में है, यह सवाल कि वासु चौधरी सपा की होगी या भाजपा की अभी समय के गर्भ में है। हालांकि वासु चौधरी ने अभी सक्रिय राजनीति में आने का कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है। लेकिन पश्चिम के सियासी गलियारों में चर्चा तेज हो गई है कि वासु चौधरी 2027 के चुनाव से पहले सक्रिय राजनीति में कदम रखने जा रही है।